हमारे बुजुर्ग अकसर कहा करते थे कि यदि किसी को बैठकर खाने की आदत पड़ जाये तो उसके वश का कोई काम-धंधा करना नहीं होता है। इस बात में काफी हद तक सच्चाई भी है। आदत तो कोई भी पड़ जाये, वह जल्दी से छूटने का नाम नहीं लेती है।
आजकल भारत की राजनीति में देखने को मिल रहा है कि राजनीतिक लोग कुछ ठोस एवं स्थायी रास्ता निकालने के बजाय जनता को मुफ्त में कुछ देकर चुनाव जीतना चाहते हैं जबकि सच्चाई यह है कि मुफ्त में कुछ भी नहीं दिया जा सकता है। एक विभाग का पैसा दूसरे विभाग में लगा दिया जाये और दूसरे विभाग का पैसा तीसरे विभाग में। इस प्रवृत्ति से बचने की आवश्यकता है क्योंकि इस प्रवृत्ति से न तो किसी का व्यक्तिगत रूप से कोई भला हो सकता है और न ही समूह एवं राष्ट्र का।
हालांकि, मुफ्तखोरी को यदि वाइरस कहा जाये तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पूरे देश में इस वाइरस का जितना प्रचार-प्रसार होगा, उतना ही राष्ट्र एवं समाज खोखला होगा, इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इसके प्रति सतर्क रहा जाये। यह कार्य जितना शीघ्र कर लिया जाये, उतना ही अच्छा होगा, क्योंकि इस रास्ते पर एक न एक दिन तो आना ही होगा।
आजादी की भी एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए
भारतीय संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को यह आजादी दी गई है कि वह अपने अधिकारों का पूरा उपयोग करे और इसमें यदि कोई बाधा आती है तो उसके लिए व्यक्ति अकेले या समूह में आंदोलन एवं धरना-प्रदर्शन कर सकता है। इस दृष्टि से देखा जाये तो किसानों का आंदोलन भी आजकल देश में बहुत व्यापक स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है। धरना-प्रदर्शन के नाम पर किसानों ने दिल्ली-यूपी के बार्डर पर नेशनल हाइवे एवं हरियाणा-दिल्ली के बार्डर पर प्रमुख रोड घेर रखा है। इससे इन मार्गों से आने-जाने वालों को न सिर्फ परेशानी हो रही है बल्कि लोगों का धंधा भी प्रभावित हो रहा है।
किसानों के इस धरने से उन्हें क्या लाभ हो रहा है या आगे चलकर और क्या लाभ होगा यह तो वही जानें, किन्तु इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इससे स्थानीय लोगों में आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। वैसे भी यदि देखा जाये तो लोकतांत्रिक आजादी के नाम पर किसी को इतनी भी छूट नहीं मिलनी चाहिए कि कोई नेशनल हाइवे या प्रमुख सड़क घेर कर बैठ जाये। इसके लिए एक गाइड लाइन बननी चाहिए अन्यथा किसी दिन ऐसी स्थिति बन जायेगी कि लोग आपस में ही टकराने लगेंगे। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि आजादी की भी एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए।
कदम-कदम पर जिम्मेदारी और जवाबदेही का निर्धारण जरूरी…
राजनीति में घुमन्तू लोगों की संख्या निरंतर बढ़ रही है
राजनीति में अवसर का लाभ उठाना कोई नई बात नहीं है बल्कि यह एक सामान्य परंपरा हो गई है किन्तु हाल के वर्षों में देखने को मिला है कि कुछ लोग सिर्फ यही पता लगाते रहते हैं कि चुनाव में किस दल की हवा बह रही है। जिस दल की हवा बह रही होती है, उसी में वे भी बहने लगते हैं और इसी प्रवृत्ति के कारण राजनीति में आया राम-गया राम की स्थिति और मजबूत होती जा रही है। राजनीति में इस प्रकार के घुमन्तू लोगों से सभी दलों को परहेज करना चाहिए अन्यथा किसी दिन समर्पित कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ जायेगा।
कोरोना को लेकर सावधानी जरूरी
कोरोना को लेकर कुछ लोग भले ही बिल्कुल लापरवाह दिख रहे हैं किन्तु इस संबंध में लोगों को अभी बहुत सावधान रहने की जरूरत है। अब तो शासन-प्रशासन स्तर पर सर्वत्र यही कहा जा रहा है कि तीसरी लहर को रोकना काफी हद तक हम सभी लोगों के व्यवहार पर निर्भर है।
यदि लोग कोरोना के प्रोटोकाल को लेकर सजग एवं सतर्क रहेंगे तो इससे बचे रहेंगे अन्यथा लापरवाही की स्थिति में कुछ भी कहना असंभव है इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि लोग कोरोना के प्रति एहतियात बरतें और तीसरी लहर को रोकने के लिए सतर्क रहें।
– सुधीर कुमार मंडल, दरियागंज (दिल्ली)