यूं तो राजनैतिक क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक परंपरा सी बनी हुई है कि लोग करते कम हैं और बताते ज्यादा हैं। ऐसा अधिकांश मामलों में देखने को मिलता है किन्तु वैश्विक स्तर पर राजनैतिक हस्तियों में ऐसे लोग भी रहे हैं जिन्होंने राष्ट्र एवं समाज के लिए किया ज्यादा है किन्तु बताया कम है यानी उन्होंने अपनी तारीफ स्वयं नहीं की, न ही अपने किये गये कार्यों को बेवजह बढ़ा-चढ़ा कर बताने की कोशिश की। ऐसे लोगों में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का नाम बहुत ही आदर के साथ लिया जाता है।
इस लेख के माध्यम से मैं यह बताने का प्रयास करूंगा कि अटल बिहारी वाजपेयी जी के जीवन के कुछ ऐसे अनुछुये पहलू हैं जिसका उन्होंने राजनीतिक फायदे के लिए कभी सार्वजनिक रूप से इजहार एवं इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि उनके लिए राजनीति से बढ़कर सदा राष्ट्रनीति रही है। यदि इन पहलुओं की चर्चा वे राजनीतिक एवं सार्वजनिक मंचों से किये होते तो संभवतः 2004 में उनकी सरकार को सत्ता से बेदखल नहीं होना पड़ता।
दरअसल, हिन्दुस्तान की राजनीति में उपलब्धियों की दृष्टि से देखा जाये तो उन्होंने वह कार्य किया जो करने की हिम्मत हर कोई जुटा नहीं सकता है। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में 11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में पांच परमाणु बमों की श्रृंखलाबद्ध धमाकों से पूरी दुनिया की नींद में खलल पड़ गया और वैश्विक स्तर पर किसी को कानों-कान भनक तक नहीं लगी। इन धमाकों के पीछे उनकी स्पष्ट रूप से सोच यही थी कि जब ताकत बढ़ती है तो सम्मान अपने आप मिलना शुरू हो जाता है। वैश्विक स्तर पर भारत को यही सम्मान दिलाने की मंशा से वे प्रेरित हुए। वैसे भी, देखा जाये तो द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने जापान के नागाशाकी और हिरोशिमा शहरों पर परमाणु बम गिराकर भीषण तबाही मचायी तो पूरी दुनिया अमेरिका की और अधिक इज्जत करने लगी।
परमाणु संपन्न होने के कारण जो स्थिति पूरी दुनिया में अमेरिका एवं कुछ अन्य देशों की थी, वही स्थिति अटल जी वैश्विक स्तर पर भारत की भी बनाना चाहते थे किन्तु उन्हें इस बात का पता था कि परमाणु परीक्षण होने के बाद भारत की क्या स्थिति होगी और उसे कितने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध झेलने होंगे? संभवतः उसी भय के कारण अटल जी के पहले की सरकारें परमाणु परीक्षण की हिम्मत नहीं जुटा सकीं क्योंकि उन्हें इस बात का भय था कि प्रतिबंधों के कारण भारत को कहीं कटोरा लेकर दर-दर भटकने की नौबत न आ जाये किन्तु अटल जी इतने अधिक दूरदर्शी थे कि उन्होंने विस्फोट एवं वैज्ञानिकों को परमाणु बम की इजाजत देने से पहले मंत्रिमंडल के अपने सबसे वरिष्ठ सहयोगी श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री जसवंत सिंह, श्री यशवंत सिन्हा एवं अन्य सहयोगियों से व्यापक विचार-विमर्श किया और इसके बाद उन्होंने तीन प्रमुख कार्य किया जिससे परमाणु बम धमाकों के बाद प्रतिबंध के दुष्परिणामों से निपटा जा सके। सही मायनों में विश्लेषण किया जाये तो इसे कहते हैं दूरदर्शी, कूटनीतिक एवं संवेदनशील शासक या राजनेता। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि परमाणु विस्फोट से उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों से निपटने के उपाय पहले ही अटल जी ने ढूंढ़ लिया था।
बहरहाल, अटल जी की सरकार ने धमाकों से पहले जो तीन प्रमुख निर्णय लिये, उसमें सबसे प्रमुख यह था कि सरकारी कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष कर दी गई, उसके पीछे सरकार की मंशा यह थी कि 2 वर्ष तक रिटायर्ड होने वालों पर जो एक मुश्त राशि खर्च होगी, उससे बचा जा सकेगा और भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिबंध लगने से कुछ विशेष असर नहीं होगा। धमाकों के बाद इस निर्णय का सरकारी आदेश 19 मई 1998 को जारी किया गया। इसके अतिरिक्त एक निर्णय यह भी लिया गया कि अप्रवासी भारतीयों के लिए Resurgence Bond की घोषणा की गई, जिसके तहत पूरी दुनिया में बसे अप्रवासी भारतीय विस्फोटों के बाद बढ़ते गर्व, मान-सम्मान व स्वाभिमान के कारण तुरंत उस बांड को खरीदेंगे और भारत की अर्थव्यवस्था प्रतिबंधों के बावजूद डगमगाने से बच जायेगी और हुआ भी ऐसा ही। धमाकों के बाद इस बांड को 5 अगस्त 1998 को लांच किया गया। ऐसा निर्णय लेने के पीछे अटल जी के मन में था कि यदि प्रतिबंधों के बाद ऐसा किया जायेगा तो प्रतिबंधों से उत्पन्न दुष्प्रभावों को कम करने में आसानी होगी।
विस्फोटों के बाद आशानुरूप अप्रवासियों के मन में अपने देश के प्रति आत्म सम्मान एवं स्वाभिमान की भावना जागृत हुई और उन्हें इस बात का बेहद गर्व हुआ कि भारत अब संयुक्त राष्ट्र संघ के परमाणु संपन्न देशों के क्लब में छठवें देश के रूप में शामिल हो चुका है। इस गौरवपूर्ण उपलब्धि के बाद अप्रवासी भारतीयों ने Resurgence Bond की खूब खरीदारी की और भारत को दुनिया के समक्ष झुकना न पड़े, इस दृष्टि से बहुत मदद की। अटल जी का यह निर्णय दर्शाता है कि भविष्य के प्रति उनकी क्या सोच थी और उनकी दूरदर्शी दृष्टि कितनी प्रखर थी।
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अटल जी का तीसरा महत्वपूर्ण निर्णय यह था कि अमेरिकी जासूसों एवं सेटेलाइटों को धोखा देकर अपने परमाणु कार्यक्रमों को आगे कैसे बढ़ाया जाये? इसके लिए सरकार ने एक स्टडी करवाया कि अमेरिका के सेटेलाइट भारतीय अंतरिक्ष में कितने घंटे तक रहते हैं। सरकार को जब इस बात का पूर्ण विश्वास हो गया कि जो समय पूरी तरह अमेरिकी सेटेलाइटों एवं जासूसों से सुरक्षित है, उसी में काम किया जाये। इस स्टडी के आधार पर तीन महीने सिर्फ 9 घंटे तक ही काम होता था और उस काम की किसी को भनक नहीं लग पाती थी। जहां काम होता था, वहां बाद में ऐसा लगता था कि पिछले 9 घंटों में कोई काम हुआ ही नहीं।
वास्तव में देखा जाये तो अटल जी की दूरदर्शिता एवं कूटनीति के अतिरिक्त उनका दृढ़ संकल्प भी लाजवाब था। वास्तव में 1996 में अटल जी जब 13 दिनी सरकार के मुखिया बने थे, तभी उन्होंने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का निर्णय कर लिया था किन्तु यह अलग बात है कि धमाकों की स्थिति उनके निर्णय के दो वर्ष बाद बन पायी। एक बात यह भी बहुत महत्वूपूर्ण है कि 1996 में अटल जी जब प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो उस समारोह में बैठे पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहा राव ने उनके हाथ में एक कागज थमा दिया, जिसमें लिखा था कि बम बनकर तैयार है, इसे किसी भी कीमत पर फोड़ना है, पीछे नहीं हटना है। अटल जी इतने दरियादिल थे कि उन्होंने एक बार चर्चा में यह कहा भी कि परमाणु परीक्षण का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव जी को है। इसे उनका बड़प्पन कहा जा सकता है। इतना बड़ा काम करके किसी दूसरे को श्रेय देना सबके बस की बात नहीं है।
एक महान व्यक्तित्व के रूप में यदि अटल जी की बात की जाये तो उन्होंने किसी भी कार्य के लिए दूसरों को श्रेय देने में कभी कोताही नहीं की। अटल जी के जीवन के ये सब ऐसे अनछुये पहलू हैं जिसका उन्होंने कभी जिक्र नहीं किया। प्रतिबंधों से निपटने के लिए उन्होंने किस प्रकार तैयारी की, इसका जिक्र उन्होंने कभी नहीं किया।
भारत में यदि परमाणु कार्यक्रमों की बात की जाये तो परमाणु यात्रा 7 सितंबर 1972 को शुरू हुई। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने वैज्ञानिकों से कहा कि वे स्वदेशी रूप से परमाणु बम डिजाइन करें। उनसे विचार-विमर्श के बाद वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कार्य करना प्रारंभ किया और उसके परिणामस्वरूप 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया गया। इसके बाद वैश्विक परिवेश में विपरीत परिस्थितियों एवं अन्य कारणों से परमाणु कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ सके किन्तु 1982-83 में इंदिरा गांधी ने पुनः परमाणु परीक्षण की मंजूरी दी। उसी समय पोखरण में तीन बेलनाकार कुएं खोदे गये थे। यहां यह बताना भी उपयुक्त होगा कि 11 मई 1998 को परीक्षण इन्हीं कुओं में किये गये।
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हालांकि, 1982-83 में इंदिरा गांधी जी द्वारा लिये गये निर्णयों के बाद परमाणु परीक्षण कार्यक्रम कुछ आगे नहीं बढ़ पाये किन्तु पी.वी. नरसिंहा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में 1995 में भारत परमाणु परीक्षण के करीब पहुंच गया था परंतु अमेरिकी जासूसों एवं सेटेलाइटों की नजर में आ जाने के बाद सरकार को वैश्विक दबाव के कारण परीक्षण से पीछे हटने को विवश होना पड़ा। श्री नरसिंहा राव जी के मन में इस बात की कसक थी कि वे परीक्षण करवा पाने में कामयाब नहीं हो सके किन्तु उनके मन की कसक को पूरा करने का कार्य अटल जी ने पूरा किया।
सही मायनों में देखा जाये तो भारत को परमाणु संपन्न बनाने वाले ‘आपरेशन शक्ति’ की कहानी संभवतः 20 मार्च 1998 से शुरू होती है क्योंकि इसके एक दिन पहले ही बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बनी थी और प्रधानमंत्री बनने के अगले ही दिन अटल जी ने परमाणु ऊर्जा आयोग (डीइए) के अध्यक्ष आर. चिदंबरम से मुलाकात की थी। हालांकि, बाद में उनके एक सहायक ने कहा कि ये महज शिष्टाचारवश की गई मुलाकात नहीं थी। वैसे, इस बात को कम लोग ही जानते हैं कि 1996 में 13 दिन वाली सरकार का मुखिया बनने के बाद अटल जी ने यही एक मात्र कदम उठाया था यानी परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का कार्य। डीआरडीओ और डीइए को परीक्षण की हरी झंडी 1996 में दे दी गई थी।
बहरहाल, सब कुछ करते-कराते वह शुभ घड़ी आ ही गई जब 11 मई 1998 को परमाणु बमों का श्रंखलाबद्ध धमाका हो ही गया और भारत की शक्ति को पूरी दुनिया ने सलाम किया और दांतों तले अंगुली भी दबा ली और भारतीय राजनीति के युग पुरुष तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को ‘परमाणु संपन्न’ राष्ट्र घोषित कर दिया।
इस परीक्षण के बाद जैसी पूर्व संभावना थी कि न चाहते हुए भी अंतरर्राष्ट्रीय कानूनों से बंधे होने के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ को भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाना पड़ा किन्तु जैसा कि आर्थिक मोर्चे पर भारत ने पहले से ही अपनी तैयारियां की थीं, उसी योजना के अनुसार भारत चलता गया और उसे दुनिया के किसी भी देश के समक्ष कटोरा लेकर रोने, भीख मांगने एवं गिड़गिड़ाने की नौबत नहीं आई।
इस पूरे मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि भारत पर नजर रखने के लिए अमेरिका ने अरबों रुपये खर्च किये किन्तु उसे ऐसा तगड़ा झटका लगा कि संभलते-संभलते काफी दिन लग गये। भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किये जाने के बाद आनन-फानन में पाकिस्तान ने भी परीक्षण की तैयारी शुरू कर दी और उसने भी परीक्षण कर दिया और न चाहते हुए भी अमेरिका एवं अन्य महाशक्तियों को उसके खिलाफ भी प्रतिबंध लगाना पड़ा।
आर्थिक प्रतिबंध लगने के बाद पाकिस्तान के समक्ष कटोरा लेकर भीख मांगने की नौबत आ गई और वह पूरी दुनिया के सामने रोने-गिड़गिड़ाने लगा और हालात यहां तक पहुंच गये कि पाकिस्तान को राहत पहुंचाने की मंशा से अमेरिका भारत से प्रतिबंध हटाने के लिए बिना कहे नये-नये बहाने ढूंढ़ने लगा और स्थिति ऐसी बन गई कि भारत से प्रतिबंध हटाना पड़ा और पूरे विश्व में इस बात का संदेश भी चला गया कि भारत ने प्रतिबंध हटाने के लिए किसी भी देश या संयुक्त राष्ट्र से कुछ कहा भी नहीं। इसी को कहते हैं कि दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए। राष्ट्र के लिए सर्वत्र समर्पित महामानव अटल जी का 25 दिसंबर को जन्म दिन है। इस अवसर पर हमें उस युग पुरुष को इस रूप में नमन करना है कि उन्होंने बिना किसी बात का श्रेय लिये ऐसा कार्य किया जिससे पूरा विश्व उनकी राजनीतिक कुशलता, कूटनीति और दूरदर्शिता का दीवाना हो गया। ऐसे महामानव की जन्मतिथि (25 दिसंबर) पर विनम्र श्रद्धांजलि एवं कोटि-कोटि नमन। उनके बताये एवं दिखाये गये रास्ते पर यदि हम सभी चलें तो यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)
(पूर्व ट्रस्टी।श्रीराम-जन्मभूमि न्यास एवं पूर्व केन्द्रीय कार्यालय सचिव भा.ज.पा.)