ब्रिटेन में एक धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी लेखक है खालिद उमर है। वे फ्रिडम ऑफ स्पीच यानी बोलने की आजादी की स्वतंत्रता का पूर्ण रूप से समर्थन करते हैं। दरअसल खालिद उमर ने एक ऐसा लेख लिखा है जो भारत के हर एक व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर देता है।
इस लेख के माध्यम से खालिद उमर के विचार और तथ्य एक चैंकाने वाला खुलासा करते हैं।
यानी इस शानदार लेख के द्वारा, खालिद उमर ऐसा दावा करते हैं कि यदि भारत एक हिंदू राष्ट्र बनता है तो इसमें हिंदुओं की प्रकृति और सभ्यता के कारण भारत में रहने वाले हर समुदाय की शांति और प्रगति सुनिश्चित और सुरक्षित रहेगी।
दरअसल खालिद उमर ने हिंदू राष्ट्र के निर्माण की संभावना पर अपने विचार लिखे हैं। वे लिखते हैं कि यदि भारत कभी हिंदू राष्ट्र बनाया जाता है तो उसके भविष्य को लेकर उदारवादी लोग अक्सर भारत में अल्पसंख्यकों के दमन और नरसंहारों के बारे में ही डरावनी कहानियां ही सुनाते रहते हैं।
पेश है खालिद उमर के उस लेख का हिन्दी अनुवाद-
आरोप है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। अगर ऐसा है, तो मेरा सवाल है कि भारत के हिंदू राष्ट्र होने में क्या गलत है?
भारतवर्ष, जिसकी सभ्यता 5,000 वर्ष पुरानी है, इसे मूलतः मातृभूमि होने का परिचय देने की कोई आवश्यकता नहीं है जो विश्व के सभी हिंदुओं के 95 प्रतिशत और सनातन हिंदू धर्म के जन्म स्थान को आश्रय देता है। भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में उसकी पहचान के लिए शर्मसार नहीं होना चाहिए। ईसाई और इस्लाम धर्म के बाद हिंदू धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। लेकिन यह भौगोलिक रूप से उतना व्यापक नहीं है जितना पहले दो धर्मों के रूप में दुनिया के नक्शे पर व्यापक रूप से फैला हुआ है।
दुनिया के तीन हिंदू बहुल देशों में, यानी भारत, माॅरीशस और नेपाल में 97 प्रतिशत हिंदू आबादी रहती है। और यह आबादी सभी प्रमुख धर्मों में भौगोलिक रूप से सबसे अधिक है। भारत में 95 प्रतिशत हिंदू आबादी रहती है जबकि उसके मुकाबले में केवल 1.6 प्रतिशत मुसलमान ही इस्लाम की जन्मस्थली में यानी अरब में रहते हैं।
वाम-उदारवादियों को 53 मुस्लिम बहुल देशों के साथ कोई समस्या नहीं है। जबकि इनमें से 27 देशों में आधिकारिक इस्लाम धर्म है। 100 से अधिक ईसाई बहुल देश भी हैं। और 15 देशों में आधिकारिक ईसाई धर्म है। इन ईसाई देशों में इंग्लैंड, ग्रीस, आइसलैंड, नाॅर्वे, हंगरी, डेनमार्क शामिल हैं। इसके अलावा 6 बौद्ध देश और एक यहूदी देश इजरायल भी है। लेकिन, जब भारत की बात आती है, तो उन लोगों के तर्क मुझे यह समझने में सहायता नहीं करते कि आखिर हिंदू धर्म भारत का राज्य धर्म क्यों नहीं हो सकता है?
अगर भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाता है तो देश की धर्मनिरपेक्षता को खतरा है ऐसा कोई सबूत नहीं है। भारत में पारसी, जैन, सिख, मुस्लिम, जोरास्ट्रियन सहित सभी धर्मों का विकास हुआ है क्योंकि हिंदू दूसरे धर्म के प्रति असहिष्णु नहीं हैं।
कोई भी किसी भी धर्म से जुड़े धार्मिक स्थान पर जा सकता है और वहां हिंदुओं को खोज सकता है। हिंदू धर्म में धर्मांतरण की कोई अवधारणा नहीं है। दुनिया में ईसाई और मुस्लिम राष्ट्र हैं जो मानवाधिकारों के हनन और दुनिया भर में मुसलमानों और ईसाइयों के धार्मिक उत्पीड़न पर आवाज उठाते हैं। दुनिया म्यांमार, फिलिस्तीन, यमन आदि को याद करती है लेकिन पाकिस्तान या अफगानिस्तान के हिंदुओं और सिखों या अन्य इस्लामिक राष्ट्रों को नहीं!
क्या किसी को याद है कि 1971 में पाकिस्तान की सेना या कश्मीर में पंडितों के द्वारा बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ क्या हुआ था, या जम्मू-कश्मीर का 1998 का वंधामा नरसंहार, पाकिस्तान में हिंदुओं का व्यवस्थागत उन्मूलन, अरब देशों में यानी मस्कट में ऐतिहासिक मंदिरों और हिंदू धर्म का खात्मा?
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भारत की नीतियां धर्मनिरपेक्ष रही हैं। जबकि हिंदुओं और उसके बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ धार्मिक रूप से भेदभाव होता रहा है, इसके कई उदाहरण हैं। क्या आपने हज सब्सिडी के बारे में सुना है? सन 2000 के बाद से, 1.5 मिलियन यानी करीब 15 लाख से अधिक मुसलमानों ने सब्सिडी का उपयोग किया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश भी पारित किया था जिसके अनुसार सरकार को 10 साल के भीतर इस सब्सिडी को समाप्त करने का निर्देश दिया गया था। कौन-सा धर्मनिरपेक्ष देश एक विशेष समुदाय के लिए धार्मिक पर्यटन को सब्सिडी देगा? यह औसत विमान किराया वर्ष 2008 में सब्सिडी अमेरिकी डाॅलर 1,000 प्रति मुस्लिम यात्री के लिए था।
जबकि भारत सरकार उनके नागरिकों के धार्मिक पर्यटन का समर्थन कर रही थी, वहीं सऊदी अरब, एक ऐसा देश जहां हिंदुओं की मूर्ति पूजा की निंदा की जाती है और दुनिया भर में वहाबी चरमपंथ फैला रहा है। एक तरफ हिंदुओं को मंदिर बनाने की अनुमति नहीं है और तीर्थयात्रा सब्सिडी द्वारा सऊदी अर्थव्यवस्था को सुविधाजनक बनाने के लिए भारतीय कर दाता के धन का उपयोग किया जा रहा था।
वास्तव में धर्मनिरपेक्ष देश में, एक धर्म के बावजूद सभी नागरिकों को एक समान कानून के तहत सुरक्षा दी जायेगी। भारत में, हालांकि, विभिन्न धर्मों के लोग अलग-अलग और व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं। सरकारी नियंत्रण केवल मंदिरों पर है लेकिन, मस्जिद और चर्च स्वायत्त हैं। हज के लिए तो सब्सिडी थी लेकिन अमरनाथ यात्रा या कुंभ मेले के लिए नहीं। वास्तव में तो एक धर्मनिरपेक्ष देश किसी भी तीर्थयात्रा पर सब्सिडी नहीं देगा!
हिंदुओं ने अल्पसंख्यकों का हमेशा ही स्वागत और संरक्षण किया है। चलो सहिष्णुता के अपने इतिहास पर एक नजर डालें। भारत के हिंदू समुदाय ने पारसियों का स्वागत किया, जब उन्हें दुनिया भर में सताया गया। वे एक हजार वर्षों से यहां फल-फूल रहे हैं। यहूदी जनजातियों ने लगभग 2,000 साल पहले भरत की शरण ली थी और 1800 साल पहले सीरियाई ईसाइयों के लिए भी यही कहा जाता है।
जैन और बौद्ध धर्म हिंदू धर्म से ही उत्पन्न बताये जा रहे हैं जो 2,500 सालों से बिना किसी भेदभाव के रह रहे हैं और सिक्ख भी 400 सालों से मौजूद हैं।
हिंदू होने पर गर्व महसूस करने के लिए तथ्यों को देखने का समय है, शर्मिंदा होने का नहीं!
आज भी, भारत धर्मनिरपेक्ष है, 1976 के संविधान संशोधन और वकीलों और कानून निर्माताओं के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि भारत के अधिकांश लोग हिंदू हैं। यह इस धर्म का स्वभाव है जो धर्मनिरपेक्षता को सुनिश्चित करता है, न कि कागज का एक टुकड़ा जो सहिष्णु अभ्यास के हजारों वर्षों के बाद खाते में आया। भारत को खुले तौर पर खुद को ‘हिंदू’ राष्ट्र घोषित करना चाहिए जिसमें हिंदू, सिख और जैन प्रमुख हैं। और उपरोक्त सभी लोगों के हितों की रक्षा के लिए भी हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि कोई अन्य देश ऐसा नहीं कर रहा है।
हिंदू राष्ट्र की घोषणा करने से जबरन धर्म परिवर्तन और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के खिलाफ बहुमत की रक्षा का नया द्वार खुलेगा। भारत तब तक प्रगतिशील देश बना रहेगा जब तक वह एक धर्मनिरपेक्ष देश बना रहेगा। और यह धर्मनिरपेक्ष भी तभी तक बना रहेगा, जब तक कि हिंदू आबादी का प्रतिशत अधिक रहेगा। धर्मनिरपेक्षता और हिंदू धर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं। ऐसे में आप तभी तक जीवित हैं जब तक आप जीतेंगे!
यदि भारत एक हिंदू राष्ट्र बन जाता है, तो यह सबसे अच्छी बात होगी। इससे हिंदुओं सहित सभी के लिए बिना लाभ-हानि के साथ एक समान नागरिक संहिता बन जाएगी। किसी भी देश में रूल ऑफ लाॅ यानी नियम-कानून हमेशा से ही ग्रोथ या प्रगति का एक मुख्य कारण रहा है- जर्मनी, जापान, अमेरिका सभी कानून के शासन पर आधारित हैं।
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किसी भी प्रकार के धर्मांतरण पर प्रतिबंध लग जाएगा, जो कि धार्मिक भेदभाव का मूल कारण है। इस प्रकार के प्रतिबंधों से तबलीगी फिर नहीं होंगे। एक बार धर्मांतरण रोक दिए जाने के बाद, हर व्यक्ति अपने अनुसार जो भी चाहे अपने धर्म में मत और पंथ को चुनता है या चुन सकता है वह उसी एक संप्रदाय का अनुसरण कर सकता है। मुझे कोई ऐसा एक धर्म बतायें जो इस तरह के विश्वास और संबंधों के साथ पहचाना जाता है!
धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सहिष्णुता इस क्षेत्र के निवासियों की प्रकृति है, बावजूद इसके कि कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस भूमि को लूट लिया। भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम आक्रमण लगभग 1,000 ई. से शुरू हुए और वे 1739 तक की कई शताब्दियों तक चले। इस दौरान हुआ, लगभग 10 करोड़ हिंदुओं का विनाश संभवतः पूरे विश्व इतिहास में सबसे बड़ा नरसंहार है। हिंदुओं ने इन आक्रमणकारियों के क्रुर अत्याचारों के विरोधस्वरूप कोई बदला नहीं लिया। यह हिंदुत्व नहीं है, बल्कि छद्म धर्मनिरपेक्षता है जो हिंदू बहुसंख्यक और मुसलमानों के बीच अंतरविरोध पैदा कर रहा है। जबकि, एक हिंदू राष्ट्र में, गैर-हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन नहीं होगा।
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हिंदुओं को अपनी उस भूमि के इतिहास पर गर्व करना चाहिए जहां वे हैं। उन्हें इस टकराव का हल करने के लिए तथ्यों का सहारा लेना चाहिए। लेकिन, वे वास्तविकता से दूर जा रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप एक ऐसी भूमि का विनाश होगा, जिसमें इसकी सरासर नैतिकता और सहिष्णुता की समृद्ध संस्कृति है जो इसकी मिट्टी में गहराई से खोदी गई है। मुस्लिम राष्ट्रों की माँगों को पूरा करने के लिए भारत ने बेशकीमती गलतियां करने की मूर्खता की है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारत तुष्टिकरण करने के लिए पर्याप्त सहिष्णु बनता रहा है। अब समय है कि हिंदुओं को उनके द्वारा विरासत में मिली शांति की घोषणा करनी चाहिए। एक हिंदू राष्ट्र, जो धर्मनिरपेक्षता को अपनी प्रकृति के माध्यम से महत्व देता है, किसी भी प्रस्तावना से रहित, दुनिया के लिए एक उदाहरण होगा।
आप यहां अंग्रेजी के मूल लेख का लिंक भी देख सकते हैं –