अजय सिंह चौहन || भारत और नेपाल की सीमा पर और उत्तर प्रदेश राज्य में बसे बलरामपुर जनपद में स्थित पाटेश्वरी देवी शक्तिपीठ (Patan Devi Shaktipeeth) का मंदिर हजारों-लाखों वर्षों से भक्तों की आस्था और धार्मिक यात्रा का आधार बना हुआ है। दुनियाभर से आने वाले तमाम भक्तों की भीड़ यहां बारहों महीने लगी रहती है। खास तौर पर यहां नेपाल से आने वाले लाखों श्रद्धालु भी अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद विशेष अनुष्ठान और पूजन करते हैं। इसी लिए यह मंदिर भारत और नेपाल के बीच धर्म, अध्यात्म और संस्कृति की मित्रता का प्रतीक माना जाता है।
पाटन देवी का महत्व –
चैत्र की नवरात्र और शारदीय नवरात्र जैसे विशेष और पवित्र अवसरों पर यहां आने वाले मां दुर्गा के श्रद्धालुओं की भीड़ को देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी लाईनें सुबह तीन बजे से ही लगनी शुरू हो जाती है।
पाटन देवी शक्तिपीठ (Patan Devi Shaktipeeth) में आने वाले हजारों-लाखों भक्त अपनी संतानों की दीर्घायु, सुरक्षा और दैवीय प्रकोपों से बचने और बचाने के लिए उनका मुण्डन, अन्नप्रासन, यज्ञोपवीत जैसे तमाम अन्य संस्कार करवाते हैं और नौ दिनों तक उपवास रखकर दुर्गा सप्तशती का पाठ, श्रीमद् देवी भागवत कथा के साथ-साथ यहां की यज्ञशाला में हवन करके अपना अनुष्ठान पूरा करते हैं।
उत्तर प्रदेश में भारत और नेपाल की सीमा पर बसा बलरामपुर जनपद का यह भाग हजारों-लाखों वर्षों से आध्यात्मिक शक्ति और तपोभूमि के रूप में विश्वविख्यात है। तुलसीपुर नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर सिद्ध शक्तिपीठ माँ पाटेश्वरी देवी (Patan Devi Shaktipeeth) का मंदिर युगों-युगों से मात्र एक धार्मिक स्थान ही नहीं है बल्कि इसका अलौकिक और गौरवमयी इतिहास भी अपने आप में विशेष स्थान रखता है।
पाटन देवी के दर्शन –
पाटन देवी के इस शक्तिपीठ मंदिर (Patan Devi Shaktipeeth) में वास्तविक तौर पर पाटेश्वरी देवी की किसी भी विशेष प्रतिमा की पूजा नहीं होती। बल्कि, प्रतिमा के स्थान पर यहां चांदी जड़ित एक गोल आकार वाला चबूतरा बना हुआ है। उस चबूतरे पर एक कपड़ा बिछा रहता है और उसी कपड़े के ऊपर जिस ताम्रछत्र के दर्शन होते हैं उस ताम्रछत्र पर दुर्गा सप्तसती के श्लोक अंकित हैं। इसी ताम्रछत्र को देवी पाटेश्वरी के प्रतिक के तौर पर पूजा जाता है। इसके अलावा यहां गर्भगृह में इसी चबूतरे के पास भी कुछ अन्य रजत छत्र रखे हुए दिख जाते हैं। जबकि, मंदिर के गर्भगृह में चबूतरे के पास हमें माता की जिस मूर्ति के दर्शन होते हैं वह मूर्ति मंदिर के जिर्णोद्धार के समय माता के प्रतिक के तौर पर स्थापित की गई थी।
मंदिर के गर्भगृह में चबूतरे के पास प्रज्जवलित जिस ज्योति के दर्शन होते हैं यह वही अखण्ड दीपज्योति है जिसे मां दुर्गा की अखण्ड शक्ति के रूप में माना जाता है और पूजा जाता है। कहा जाता है कि पाटन देवी शक्तिपीठ के इस मंदिर में यह ज्योत यहां त्रेता युग में प्रज्जवलीत की गई थी। तब से लेकर आज तक यह जोत यहां प्रज्जवलजीत है।
विशेष धूनी की महिमा –
इसके अलावा पाटन देवी शक्तिपीठ (Patan Devi Shaktipeeth) के मंदिर परिसर में जल रही धूनी को लेकर भी मान्यता है कि नेपाल के सिद्ध रत्ननाथ व गुरु गोरक्षनाथ जी ने इसी धूनी के पास बैठ कर कुछ विशेष और दिव्य सिद्धियां प्राप्त हुईं थीं। यहां आने वाले श्रद्धालु इसी धूनी से माथे पर भस्म तिलक लगाते हैं। यह धूनी मंदिर की उत्तर दिशा में महंत के मठ भवन में स्थित है।
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प्राचीनकाल का सूर्यकुंड –
मंदिर की उत्तर दिशा में स्थित प्राचीनकाल के सूर्यकुंड का भी अपना ही पौराणिक महत्व है। एक पौराणिक कथा बताती है कि त्रेता युग के समय में दानवीर कर्ण ने इसी पवित्र सूर्यकुंड में स्नान करके मां पाटेश्वरी देवी (Patan Devi Shaktipeeth) के इसी पावन पीठ के पास के आश्रम में भगवान परशुराम से शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा प्रारंभ की थी। इसी कारण से इस सूर्यकुंड को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष आस्था है। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु इस सूर्यकुड की भी विशेष पूजन करते हैं और इसमें स्नान करते हैं।
पाटेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ मंदिर (Patan Devi Shaktipeeth) का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही रोचकता व चमत्कारों से भरा इसका पौराणिक इतिहास भी रहा है। माना जाता है कि मंदिर के गर्भगृह के जिस चबूतरे पर माता का ताम्रछत्र पूजा जाता है उसी चबूतरे के ठीक नीचे एक ऐसा स्थान भी है जहां से आज भी पाताल लोक तक जाने वाली सुरंग के निशान मौजूद हैं। पिछले कुछ समय पहले तक भी इसी चबूतरे पर प्रसाद चढ़ाया जाता था। लेकिन, सुरक्षा कारणों को देखते हुए अब यह प्रसाद बाहर से ही चढ़ाया जाने लगा है।
मंदिर की परंपरा –
पाटन देवी मंदिर (Patan Devi Shaktipeeth) की एक सबसे खास परंपरा और विशेषता यह है कि आज भी यहां मंदिर में चढ़ाए प्रसाद का कुछ अंश, सबसे पहले पशु-पक्षियों के लिए डाला जाता है, उसके बाद ही श्रद्धालु या तो खुद खा सकता है या फिर अन्य लोगों में बांट सकता है।
इसके पिछे जो मान्यता है उसके अनुसार कहा जाता है कि ईश्वर का वास केवल मनुष्य में ही नहीं बल्कि हर प्रकार के पशु-पक्षियों और इस संसार के कण-कण में होता है, इसलिए सबसे पहले हमें उन जीवों का भी ध्यान रखना चाहिए। यहां हर दिन मां भगवती को भोग लगाने के बाद, सभी तरह के पशु-पक्षियों को बड़े ही आदर और श्रद्धा से परंपरागत नियमों के अनुसार भोजन कराया जाता है।
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पाटन देवी शक्तिपीठ (Patan Devi Shaktipeeth) के मंदिर परिसर में हमारी वैदिक, धार्मिक और प्राचीन परंपरा के अनुसार एक गौशाला भी है जिसमें कई भक्तों को यहां पशु सेवा का कार्य करते हुए भी देखा जा सकता है। इसके अलावा यहां पक्षियों के लिए अनगिनत घरौंदे बने हुए भी देखे जा सकते हैं। प्रदेश सरकार के द्वारा इस मंदिर को एक विशेष पर्यटन और धार्मिक स्थल के रूप में दर्जा देकर इसे विकसित किए जाने की योजना पर काम चल रहा है।
मंदिर की व्यवस्था –
देवी पाटेश्वरी का यह मंदिर सिद्ध योगपीठ तथा शक्तिपीठ (Patan Devi Shaktipeeth) दोनों रूपों में पूजा जाता है। व्यवस्था एवं रखरखाव की दृष्टि से जब से पाटन देवी शक्तिपीठ का यह मंदिर श्री गोरक्षनाथ मंदिर के संरक्षण में आया है तब से इसमें काफी सुधार हुए और विस्तार के साथ-साथ कुछ नये निर्माण के कार्य भी किए गये, जिसके बाद से इस स्थान की लोकप्रियता में भी वृद्धि हुई है और इस शक्तिपीठ के इतिहास एवं महत्व को जानने के लिए लोगों में जिज्ञासा और उत्सुकता भी बढ़ी है। मंदिर परिसर में ही श्रद्धालुओं के लिए आधुनिक सुविधाओं युक्त यात्री निवास, प्राकृतिक सौंदर्य एवं स्वच्छता जैसी अन्य कई बड़ी परियोजना पर कार्य शुरू किया जा चुका है।
यदि आप भी पाटन देवी शक्तिपीठ मंदिर में दर्शन करने के लिए जाने का मन बना रहे हैं तो बता दें कि यह स्थान उत्तर प्रदेश में भारत और नेपाल की सीमा पर बसा बलरामपुर जनपद में स्थित है।
यहां का मौसम –
यहां जाने के लिए वैसे तो यहां हर मौसम में और हर उत्सव में श्रद्धालुओं भीड़ लगी रहती है। लेकिन, अगर आप यहां अपने परिवार के बच्चों और बुजुर्गों के साथ जाना चाहते हैं तो उसके लिए खास तौर पर गर्मी और बारिश के मौसम यहां जाने से बचें। इसके अलावा नवरात्र के विशेष अवसरों पर यहां स्थानिय स्तर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है इसलिए कोशिश करें कि भीड़ से भी बचने का प्रयास करें। वैसे यहां जाने के लिए अक्टूबर से अप्रैल तक का मौसम सबसे अच्छा हो सकता है।
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कहां ठहरें –
ध्यान रखें कि, यह कोई बहुत बड़ा या विकसित शहर नहीं है, इसलिए यहां आपको कोई भी आलीशान होटल या काॅटेज नहीं मिलेंगे। लेकिन, पाटन देवी शक्तिपीठ मंदिर के आस-पास में अनेकों छोटे-बड़े होटल, धर्मशाला और लाॅज बने हुए हैं जहां आपको आपके बजट के अनुसार कमरे मिल जायेंगे। यहां मंदिर के आस-पास ही में 500 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक में हर प्रकार की अच्छी सुविधाओं वाले कमरे आसानी से मिल जाते हैं। आप चाहें तो जाने से पहले भी यहां कमरा बुक कर सकते हैं। लेकिन, यहां जाने से पहले ध्यान रखें कि अगर आप नवरात्र के अवसरों पर यहां जाते हैं तो ऐसे में आपको यहां कमरा मिलने में परेशानी हो सकती है।
सड़क यात्रा –
यदि आप रोड़वेज की बसों के द्वारा पाटन देवी शक्तिपीठ मंदिर में दर्शन करने जाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको बलरामपुर के जिला मुख्यालय तक पहुंचना होगा। उसके बाद आपको यहां से 25 किलोमीटर की दूरी पर शहर के पश्चिम में स्थित तुलसीपुर शहर के लिए बस बदलनी पड़ती है। आप चाहें तो बलरामपुर से बस के अलावा टैक्सी या फिर आॅटो के माध्यम से भी इस मंदिर तक आसानी से जा सकते हैं।
रेल यात्रा –
लेकिन, अगर आप देश के किसी दूर-दराज के राज्य या क्षेत्र से यहां रेल मार्ग के द्वारा आना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां के गौंडा जंक्शन पर उतरना होगा। गौंडा जंक्शन से मंदिर की दूरी करीब 60 किमी है। इसके अलावा अयोध्या का रेलवे स्टेशन मंदिर से करीब 85 किमी और मनकापुर जंक्शन 160 किमी की दूरी पर हैं। गोंडा का रेलवे जंक्शन भारत के सभी प्रमुख शहरों से रेल द्वारा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसलिए अधिकतर यात्री इसी गोंडा जंक्शन से आना-जाना करते हैं।
फिलहाल यहां एक और नजदीकी रेलवे लाइन के निर्माण का कार्य जारी है। इस लाइन के तैयार हो जाने के बाद यहां से पाटन देवी मंदिर की दूरी करीब 25 किलोमीटर तक रह जायेगी। वर्ष 2025 तक इसके पूरा होने का अनुमान है।
हवाई यात्रा –
इसके अलावा अगर आप हवाई यात्रा के द्वारा यहां पहुंचना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां के निकटतम चैधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे ही उतरना होगा। इस हवाई अड्डे से पाटन देवी मंदिर लगभग 205 किलोमीटर की दूरी पर है। इसलिए यहां से आगे की यात्रा आपको सड़क मार्ग से ही तय करनी होगी।
अन्य दर्शनिय व पर्यटन स्थल –
स्वामी नारायण छपिया – स्वामी नारायण छपिया मन्दिर गोंडा जिला मुख्यालय से 50 कि.मी. और पाटन देवी शक्तिपीठ मंदिर करीब 110 किलोमीटर दूर है।
श्रावस्ती – महात्मा बुद्ध के लिए प्रसिद्ध माने जाने वाला श्रावस्ती पाटन देवी शक्तिपीठ मंदिर से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर है।
पृथ्वीनाथ मंदिर – यहां भगवान शिव का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग आकार में बहुत बड़ा और बहुत ऊँचा है। यह स्थान गोंडा से लगभग 12 कि.मी. दूर इटियाथोक ब्लाक में पड़ता है। पाटन देवी शक्तिपीठ मंदिर से इसकी दूरी करीब 58 किलोमीटर है।