अजय सिंह चौहान || कहा जाता है कि जो लोग या जो देश या संस्कृति अपने इतिहास को भूला देते हैं उनका धर्म भी धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है और फिर वे भी या तो दानव बन जाते हैं या समाप्त हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही बर्ताव हमारे पड़ौसी देशों में पिछली कुछ सताब्दियों से देखने को मिल रहा है। दुनिया जानती है कि आज हम जिसे अपना पड़ौसी देश मानते हैं वह कभी हमारी ही भूमि का एक छोटा सा भाग हुआ करता था लेकिन, राजनीतिक कारणों के चलते हमें भारतवर्ष की भूमि के उस टूकड़े को किसी और के हाथों में सौंपना पड़ा।
भारतवर्ष की भूमि के उस पाकिस्तान नामक टूकड़े पर न जाने कितने ही देवी और देवताओं के पावन स्थान रहे होंगे। आज भले ही उनमें से अधिकतर को भूला दिया गया है लेकिन, कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिनको यह संसार कभी भूला नहीं सकता। सनातन धर्म के लिए अति महत्वपूर्ण और माता सती के 18 महा शक्तिपीठों में से एक शारदा पीठ (Sharda Peeth in POK) या शारदा विश्वविद्यालय किसी समय दक्षिण एशिया में सबसे प्रसिद्ध और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र हुआ करता था जो आज उसी पाकिस्तान की भूमि पर स्थित है।
उस समय के कई विद्धानों और इतिहासकारों ने हिंदू वैदिक पद्धतियों और शिक्षा के लिए प्रमुख केंद्र रहे कश्मीर और वहां के श्री शारदा देवी के मंदिर (Sharda Peeth in POK) की तुलना कोणार्क सूर्य मंदिर और सोमनाथ मंदिर के साथ की थी।
शारदा शक्तिपीठ (Sharda Peeth in POK) को लेकर मान्यता है कि देवी सति का दायां हाथ यहां गिर गया है। लेकिन हमारा दूर्भाग्य है कि इस पवित्र शारदा पीठ मंदिर के आधे-अधूरे अवशेष आज किशनगंगा नदी या नीलम नदी के किनारे इधर-उधर बिखरे पड़े हैं।
यह दूर्भाग्य है कि भारतीयों के लिए वहां जाने पर पाबंदी लगी हुई है। क्योंकि सन 1948 में पाकिस्तान ने यहां आक्रमण करने के बाद से इस क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया है। शारदा पीठ का यह मंदिर एलओसी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है।
वर्तमान में यह मंदिर शारदा (Sharda Peeth in POK) नामक क्षेत्र के एक खाली और सुनसान से गांव में, बारामूला से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर और मुजफ्फराबाद से लगभग 64 किलोमीटर दूर है। आज यह स्थान पीओके में पाकिस्तानी सेना के लिए अति संवेदनशील क्षेत्र है जो नियंत्रण रेखा के उत्तर-पश्चिम में लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 14 वीं शताब्दी के आते-आते शारदा नगर यानी आज के कश्मीर पर मुगल शासकों की बुरी नजर पड़ चुकी थी, और कुछ ही वर्षों के अंदर शारदा (Sharda Peeth in POK) देश यानि कश्मीर पर मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हमला किया गया। जिसके बाद सिकंदर शाह मिरी जो सिकंदर बशशिकन के नाम से भी जाना जाता था ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी।
सन 1389 से 1413 तक कश्मीर पर शासन करने वाले सिकंदर शाह मिरी ने अपने शासनकाल में यहां के कई प्रमुख हिंदू मंदिरों और अन्य धार्मिक इमारतों को भारी क्षति पहुंचाई और मंदिरों से जुड़े अनेकों सबूत नष्ट करवा दिए। उन हमलों के दौरान शारदा मंदिर से जूड़े अनेकों विद्धानों और विद्यार्थियों को अपनी जान बचाने पर मजबूर होना पड़ा था। सही मायने में इस मंदिर का काला अध्याय तो तब शुरू हुआ जब इन हमलों के बाद, भारतीय हिंदू राजाओं ने कृष्णगंगा क्षेत्र और शारदा पीठ (Sharda Peeth in POK) या शारदा देश से धीरे-धीरे संपर्क खोना शुरू कर दिया था।
इस मस्जिद में थी शुद्ध सोने से बनी देवी सरस्वती की मूर्ति लेकिन…
अपने शासनकाल के दौरान सिकंदर शाह मिरी को कश्मीर के तमाम गैर-मुस्लिमों को इस्लाम में परिवर्तित करने के अपने घिनोने प्रयासों के लिए याद किया जाता है। सिकंदर शाह मिरी ने सुफी मीर मोहम्मद हमदनी की सलाह पर कश्मीर के सभी पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व के मंदिरों और अन्य धार्मिक महत्व के ठिकानों को नष्ट कर दिया और हिंदू संस्कार, अनुष्ठान और सभी प्रकार के त्यौहारों पर भी सख्ती से प्रतिबंध लगा दिए और यहां तक कि परंपरागत हिंदू शैली के कपड़े पहनने पर भी पाबंदी लगा दी थी। माथे पर तिलक लगाने वाले हिंदुओं को भी कड़ी सजा देना शुरू कर दिया था। उसने कश्मीर में सभी गैर-इस्लामी धर्मग्रंथों को जलाने या नष्ट करने का आदेश दिया। अपने घिनोने फरमानों और कारनामों के कारण हिंदुओं और खासकर कश्मीरी हिंदुओं के बीच उसे सबसे अधिक नफरत का शिकार होना पड़ा। इतिहास में उसे ‘कश्मीर का कसाई’ के रूप में भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि सन 1947 के भारत-पाक बंटवारे के बाद जाने-माने संत स्वामी नंदलाल जी अपने कुछ सहयोगियों की मदद से उसी प्राचीन शारदा मंदिर (Sharda Peeth in POK) की कुछ मूर्तियों को वहां से किसी तरह बचते-बचाते कश्मीर ले आए थे, जिसमें से कुछ मूर्तियां तो संभवतः चोरी हो चुकी हैं और कुछ आज भी मौजूद हैं। किसी तरह घोड़ों पर लाद कर लाई गईं पत्थर की कुछ मूर्तियां आज भी जम्मू-कश्मीर के देवीबल बारामुला में रखी हुई हैं।
पाकिस्तान स्थित एक महिला विद्वान एस. रूख्साना खान ने शारदा मंदिर (Sharda Peeth) पर एक पूरातात्विक अध्ययन किया और कुछ दिलचस्प एतिहासिक तथ्यों की खोज भी की है। रूख्साना खान और उनकी टीम ने यहां की अनेकों अति प्राचीन वस्तुओं का पता लगाया और शारदा परियोजना के लिए संस्कृति के संरक्षण पर जोर देने के लिए अपनी सरकार से मांग भी की है।
अमरनाथ जी की गुफा के कण-कण में छुपे हुए हैं अमर होने के रहस्य
2006 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उस समय अल्पसंख्यकों की मांग को स्वीकार भी कर लिया और शारदा पीठ (Sharda Peeth in POK) के पास ही करीब 8 करोड़ की लागत से यात्रियों की सुविधा के लिए यात्री निवास आदि का निर्माण करने का भरोसा भी दिया गया था, ताकि भारत से आने वाले तीर्थ यात्रियों को अनुमति दी जा सके।
प्राप्त जानकारियों के अनुसार शारदा पीठ (Sharda Peeth in POK) के आसपार पाकिस्तान सरकार द्वारा कैफेटेरिया, सामुदायिक केन्द्र और युवा छात्रवास, होस्टल और कुछ दुकानों का निर्माण भी करवाया गया था। जबकि, खंडहर बनते जा रहे शारदा पीठ मंदिर के जिर्णोद्धार के लिए कोई ध्यान नहीं दिया गया। शारदा पीठ के आसपास के गांव की मुस्लिम आबादी आज भी इस पवित्र शक्तिपीठ को शारदा माई के नाम से ही पुकारते हैं।