एक राजा ने बहुत ही सुंदर महल बनवाया और उस महल के मुख्य द्वार पर गणित का एक सूत्र लिखवाकर राज्य में घोषणा करवा दी कि इस सूत्र को सिद्ध करने से यह द्वार खुल जाएगा और जो भी इस सूत्र को हल कर के द्वार को खोल देगा, मैं उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दूंगा।
राज्य के बड़े से बड़े गणितज्ञ आये, लेकिन उस सूत्र को देखकर लौट गए। किसी को कुछ समझ नहीं आया। कई दिन बीत चुके थे। फिर अचानक दिन तीन लोग आये और कहने लगे हम भी इस सूत्र को हल कर करेंगे।
उनमें से दो बड़े गणितज्ञ जान पड़ते थे जो दूसरे राज्यों से आये थे, क्योंकि वे अपने साथ गणित के बहुत से पुराने सूत्रो की पुस्तकों सहित आये थे। लेकिन वे भी अपनी उन पुस्तकों से ही माथापच्ची करने में उलझे रहे और फिर चले गये। लेकिन उनमें से अंतिम तीसरा व्यक्ति जो देखने में एकदम सामान्य नागरिक की भाँती सीधा-सादा नजर आ रहा था, और अपने साथ कुछ भी नहीं लाया था। उसने राजा से कहा – “महाराज मैं इस द्वार के सामने बैठ कर कुछ समय व्यतीत करूँगा।”
उस सामान्य दिखने वाले व्यक्ति ने द्वार के सामने बैठ कर ध्यान मुद्रा में आंखें बंद की और दिमाग को स्थिर कर शांतचित्त हो कर अपना कॉमनसेंस लगाया। वह सोचने में लग गया कि भला ऐसी कौन सी तकनीक हो सकती है जो इस तरह का यंत्र बना दे जो कोई प्रश्न का उत्तर देने से दरवाजे को खोल दे? साथ ही ये भी सोचने में लग गया की कहीं महाराज ने लोगों को मूर्ख सिद्ध करने के लिए तो ऐसा आयोजन तो नहीं किया है? द्वार खोलने की चुनौती को लेकर उसके मन में ऐसे ही कई सवाल उठने लगे।
उस सामान्य दिखने वाले व्यक्ति ने अपने अंतर्मन से सामान्य ज्ञान के कुछ प्रश्न और उनका उत्तर जानना शुरू कर दिया। सामान्य ज्ञान से जुड़े कई सवालों में से उसने स्वयं से ऐसे सात मौलिक प्रश्न किये; जिनमें से प्रथम तो ये कि क्या?, दुसरा “क्यों?”, तीसरा “कैसे?”, चौथा कौन?, पांचवा “किसे?”, छठवां “कहाँ?” और सातवां “कब?”
इसके बाद तो उसके अंतर्मन ने उत्तर दे दिया। अब वो धीरे से आँखें खोल कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए उठा और महल के द्वार के पास जाकर उसे हल्का सा धक्का दिया तो वो द्वार बिना किसी बाधा के आसानी से खुल गया।
राजा को बहुत खुशी हुई और साथ ही आश्चर्य भी। राजा ने उस व्यक्ति से पूछा- “आप ने ऐसा कैसे किया?” इस पर उस सामान्य से दिखने वाले उस व्यक्ति ने कहा कि- “महाराज, जब मैं शांतचित्त हो कर ध्यान में बैठा और अपने अंतर्मन से ही प्रश्न करके इस समस्या का समाधान पूछा तो मेरे अंतर्मन से उत्तर आया कि पहले इस द्वार की जाँच तो कर ले कि इसमें ऐसा कोई सूत्र है भी या नहीं। इसके बाद ही इसे हल करने की सोचना, और फिर मैंने वही किया।”
इस कहानी का तात्पर्य है कि कई बार हमें भी अपनी जिंदगी में ऐसी ही कई समस्याएं आ जातीं है, लेकिन हम शांतचित्त होकर उनपर चिंतन कर उसका हल खोजने के बजाय दूसरों के द्वारा हमारे ऊपर थोपे गये दुराग्रहपूर्ण विचारो में उलझा कर उसे बड़ा बना लेते है और चिंतामग्न रहते हैं ।
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