मनुस्मृति का काल सृष्टि के प्रारम्भ से ही होने के कारण वर्तमान संवत् २०७७ तक लगभग १ अरब ९५ करोड़ ८८ हज़ार १२१ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।
मनुस्मृति का प्रमाण श्रीमद् वाल्मीकिय रामायण में भी मिलता हैं :
श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्रवत्सलौ ।
गृहीतौ धर्मकुंशलैस्तथा तच्चरितं मया ॥ ३०
राजभिर्धृतदण्डाश्च कृत्वा पापानि मानवाः ।
निर्मलाः स्वर्गमायान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा ।। ३१
शासनाद्वापि मोक्षाद्वा स्तेनः पापात्प्रमुच्यते ।
राजा त्वशासन् पापस्य तदवाप्नोति किल्विषम् ।। ३२
( श्री वा. रा. कि.का., १८ )
मनु ने राजोचित सदाचार का प्रतिपादन करने वाले दो श्लोक कहे हैं, जो स्मृतियों में सुने जाते हैं और जिन्हें धर्मपालन में कुशल पुरुषों ने सादर स्वीकार किया। उन्हीं के अनुसार इस समय यह मेरा बर्ताव हुआ हैं।
मनुष्य पाप करके यदि राजा के दिये हुए दण्ड को भोग लेते हैं तो वे शुद्ध होकर पुण्यात्मा साधुपुरुषों की भाँति स्वर्गलोक में जाते हैं।
(चोर आदि पापी जब राजा के सामने उपस्थित हों उस समय उन्हें ) राजा दण्ड दे अथवा दया करके छोड़ दे। चोर आदि पापी पुरुष अपने पाप से मुक्त हो जाता हैं, किन्तु यदि राजा पापी को उचित दण्ड नहीं देता तो उसे स्वयं उसके पाप का फल भोगना पड़ता हैं।
कुछ हेर-फेर से ये श्लोक मनुस्मृति में मिलते हैं :
शासनाद्वा विमोक्षाद्वा स्तेनः स्तेयाद्विमुच्यते ।
अशासित्वा तु तं राजा स्तेनस्याप्नोति किल्विषम् ।। ३१६
राजभिः कृतदण्डास्तु कृत्वा पापानि मानवाः ।
निर्मलाः स्वर्गमायान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा ।। ३१८
( मनुस्मृति, अध्याय ८ )
श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण २४ वें त्रेता युग में भगवान् श्रीराम के अवतार के समय बना है और मनुस्मृति इस वैवस्वत मनु के पहले जबकि ६ मनु और बीत चुके हैं। इसे सर्वप्रथम स्वायम्भूव मनु के उपदेश से भृगु ने निर्माण किया है।
७ मन्वन्तरों के ७ मनु :
१. स्वायम्भुव
२. स्वारोचिष
३. उत्तम
४. तामस
५. रैवत
६. चाक्षुष
७. सूर्यपुत्र वैवस्वत
पं राजकुमार मिश्रा की वाल से