दिलीप मंडल का पूरा सोशल मीडिया करियर रेलवे स्टेशन के बगल में बिकने वाली अश्लील किताबों को आधार बना कर बकचोदी करने में बीता है। इसे लगता है कि किताबों की फोटो लगा दो, वह अकाट्य हो जाएगा।
मंडल वैसा बच्चा है जो अखबार की दो हेडलाइन में एक जगह ‘दिलीप बेंगसरकर’ और दूसरी जगह ‘मंडल कमीशन’ देख कर, ‘दिलीप’ और ‘मंडल’ काट कर लोगों को दिखाता है कि ‘मेरा नाम अखबार में छपा है’।
अंबेडकर ने जो लिख दिया वह केवल इसलिए सत्य नहीं हो जाता कि अंबेडकर ने लिख दिया। अंबेडकर कौन थे? ब्रह्मा जी? आदमी थे जिनके अपने कुछ विचार थे। यहाँ चार्वाक से ले कर शंकराचार्य तक की बातों पर चर्चा होती है, उनके कथनों के मंथन से नई बात निकलती है, लेकिन अंबेडकर ने जो लिख दिया, वो लिख दिया।
जिस व्यक्ति को संस्कृत का ज्ञान न हो, जो विदेशी पूर्वग्रह से ग्रस्त अनुवादों को पढ़ कर हिन्दू धर्मग्रंथों की विवेचना करने का ढोंग रचता हो, मैं नहीं मानता उसे ऑथेन्टिक।
मैं नहीं मानता उसके विचारों को। उनके विचार उनके सीमित अनुभव का पुलिंदा हैं, न कि वो गौतम के बाद के बुद्ध हो गए जिन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ है। वो एक साधारण नेता थे जिन्होंने अपने जीवन के कटु अनुभवों को सार्वभौमिक सत्य मान कर पुस्तक का रूप दे दिया। आप उसे अपना मार्गदर्शक ग्रंथ मानते हैं तो मानें, मैं नहीं मानता।
मंडल ने माता सरस्वती को ले कर, ब्राह्मणों को ले कर, मनु स्मृति समेत अनेक हिन्दू ग्रंथों को ले कर जो बातें लिखी हैं, जिस तरह के चित्रों का प्रयोग किया है, उसे @PMOIndia ने जानते-बूझते हुए जो पद दिया है, वह @BJP4India द्वारा हिन्दुओं पर थूकने जैसा है।
इस कॉपी-पेस्ट व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बनाना यह बताता है कि @JPNadda से ले कर प्रधानमंत्री कार्यालय तक, किसी को भी समझ में नहीं आ रहा कि चार जून के बाद की स्थिति पर नियंत्रण कैसे पाया जाए। ये सारे निर्णय पैनिक में लिए गए दिखते हैं।
साभार – अजीत भारती के ट्वीट से