नुपूर शर्मा के बयान के बाद उठे विवाद का अंत करने का सबसे आसान तरीका यही है कि नुपूर शर्मा पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में केस चलाया जाय। नुपूर के वकील अदालत में साबित करें कि क्या उनकी मुवक्किल ने जो बयान दिया था, वो हदीस में लिखा है कि नहीं।
वहीं जबाव में मुस्लिम पक्ष के कपिल सिब्बल जैसे वकील, ये साबित करें कि हदीस में ऐसा लिखा है कि नहीं। कोर्ट में विस्तार के साथ एक सारगर्भित बहस हदीस पर हो। एक-एक पन्ने पर चर्चा हो। कोर्ट की पूरी प्रोसिडिंग आम जनता तक पहुंचाई जाये।
फिर सुप्रीम कोर्ट ये फैसला दे कि बुखारी की हदीस में क्या लिखा है और उसके मायने क्या हैं। हदीस की पूरी व्यख्या हो। क्या नुपूर ने मनगढ़ंत बात बोली या फिर ये बात सही में हदीस में लिखी है।
जब 100 करोड़ हिंदुओं के देश में कोर्ट में प्रभु श्री राम के अस्तित्व पर बहस हो सकती है… जब श्रीराम को अदालत में काल्पनिक बताया जा सकता है। और तो और अदालतें श्री राम के जन्म स्थान की धार्मिक मान्यताओं पर फैसला करने के लिए 150 साल सुनवाई कर सकती है तो हदीस में क्या लिखा है और क्या नहीं लिखा है, इस पर कोर्ट क्यों सुनवाई नहीं कर सकता?
हदीस की सीखों को छुपाना क्यों? पूरी मानवता को हदीस के ज्ञान से क्यों वंचित करना? आखिर अपने धार्मिक ग्रन्थ को लेकर इतना डर क्यों? दूसरे धर्म के लोग तो अपने धार्मिक ग्रन्थ का प्रचार प्रसार करते हैं… आप अपनी हदीस को छुपाना क्यों चाहते हैं?
अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान न जाने कितने हिन्दू धर्म ग्रंथों को खंगाल कर मुस्लिम पक्ष ने बहस की थी, लेकिन मुझे तो याद नहीं पड़ता कि कभी इस पर हिन्दू पक्ष ने आपत्ति ली हो। फिर हदीस पर तथ्यपरक चर्चा क्यों न हो? दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।
वैसे भी इस देश में संविधान का सम्मान होना चाहिए, किसी सरिया कानून पर देश क्यों चले? हदीस से जुड़े मुद्दे पर कोर्ट जाने से क्यों डर लग रहा है? क्या ये डर हदीस के सच को लेकर है? जब आप ज्ञानवापी पर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हो तो नुपूर के केस में भी जाओ।
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