‘पृथ्वी गोल है’ इस प्रकार का विचार यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया था। ‘एनेक्सिमेंडर’ ने ईसा पूर्व 600 वर्ष, पृथ्वी को सिलेंडर के रूप में माना था। ‘एरिस्टोटल’ (ईसा पूर्व 384-ईसा पूर्व 322) ने भी पृथ्वी को गोल माना था।
लेकिन भारत में यह ज्ञान बहुत प्राचीन समय से था, जिसके प्रमाण भी मिलते हैं। इसी ज्ञान के आधार पर आगे चलकर आर्यभट्ट ने सन् 500 के आसपास इस गोल पृथ्वी का व्यास 4,967 योजन है (अर्थात् नए मापदंडों के अनुसार 39,968 किलोमीटर है), यह भी दृढ़तापूर्वक बताया। आज की अत्याधुनिक तकनीक की सहायता से पृथ्वी का व्यास 40,075 किलोमीटर माना गया है।
इसका अर्थ यह हुआ कि आर्यभट्ट के आकलन में मात्र 0.26 प्रतिशत का अंतर आ रहा है, या फिर आज के लोग इसे ठीक से माप नहीं पा रहे हैं, हालांकि यह नाममात्र ही कहा जा सकता है! लेकिन आज से लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले आर्यभट्ट के पास यह ज्ञान कहाँ से आया होगा?
सन् 2008 में जर्मनी के एक इतिहासविद् जोसेफ श्वासबर्ग ने यह साबित कर दिया था कि ईसा पूर्व यानी ईसा से भी दो-ढाई हजार वर्ष पहले भारत में नक्शा शास्त्र अत्यंत विकसित था। नगर-रचना के नक्शे उस समय उपलब्ध तो थे ही, साथ ही नौकायन के लिए भी आवश्यक नक्शे उपलब्ध थे।