- महिलाओं की तुलना में पुरुषों की नाभि के आस-पास अधिक रोवें होते हैं। नाभि सिर्फ स्तनधारी जीवों में ही पाई जाती है, अंडे देने वाले जीवों में नहीं।
- नाभि को हमारी जीवन ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है क्योंकि मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छः मिनट तक रहता है और कई घंटों तक गर्म रहता है। शरीर में दिमाग से ही महत्वपूर्ण स्थान है नाभि का। नाभि शरीर का प्रथम दिमाग होता है जो प्राणवायु से संचालित होता है।
- हमारा सूक्ष्म शरीर नाभि ऊर्जा के केंद्र से जुड़ा रहता है। यदि कोई संत पुरुष शरीर से बाहर निकलकर सूक्ष्म शरीर से कहीं भ्रमण करता रहता है तो उसके सूक्ष्म शरीर की नाभि से स्थूल शरीर की नाभि के बीच एक रश्मि जुड़ी रहती है। यदि यह टूट जाती है तो व्यक्ति का अपने स्थूल शरीर से संबंध भी टूट जाता है।
- भगवान ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि से हुआ था। दरअसल, इस संसार में प्रत्येक मनुष्य का जन्म नाभि से ही होता है। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। विष्णु पाताल लोक में ही रहते हैं। इस धरती और संपूर्ण ब्रह्मांड का भी नाभि केंद्र है। नाभि केंद्र से ही संपूर्ण जीवन संचालित होता है।
- योग शास्त्र में नाभि चक्र को मणिपुर चक्र कहा जाता है। नाभि के मूल में रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है जो 10 कमल दल पंखुड़ियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना उर्जा यहां एकत्रित है, उसे काम करने की धुन सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं। इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कसाय- कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्म शक्ति प्रदान करता है।
- नाभि में लगभग 1458 प्रकार के बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो बाहरी बैक्टीरिया से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। नाभि में कई बार फंगल इंफेक्शन हो जाता है, ऐसे में नाभि को साफ-सुथरा रखना बहुत आवश्यक है लेकिन इसकी इतनी भी सफाई नहीं करनी चाहिए कि इसके सारे बैक्टीरिया ही खत्म हो जाएं।
संकलन – श्वेता वहल