मृत्यु देह की होती है, क्षरण देह का होता है, आत्मा का नहीं। मृत्यु अटल है, यह शाश्वत सत्य है। इस संसार में जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन जाना होगा। कुछ लोग एक जन्म में एक बार ही मरते है और कुछ पल पल मरते है।
पल पल मरने वाले लोगों के भीतर अनेक विकार जन्म ले लेते है। वो एक टनल के भीतर दुबक के बैठ जाते है, जिससे उनका विकास बाधित हो जाता है। वो भागते है जीवन संघर्ष से। वो भागते है ज़िम्मेदारियों से।
जो टनल से बाहर निकल जाते है, वो अंत में सुख के उजाले को प्राप्त करते है। ज़िम्मेदारियों से या संघर्ष से घबरा कर दुबक जाना पल पल मौत के समान है। मृत्यु दोनों को आएगी, उसे भी जो टनल के भीतर दुबक के बैठा है और जो टनल के बाहर है। लेकिन टनल के बाहर रहने वाले को मृत्यु एक बार ही आएगी।
अतः अपनी इस जीवन यात्रा को आप सुखद बनाना चाहते है तो, ज़िम्मेदारियों का वहन करते हुए आगे बढ़ें, मनुष्य जन्म पुनः मिलेगा या नहीं यह कौन जानता है। इस योनि में रहते हुए ही हम ज्ञान प्राप्त कर सकते है। संघर्ष से भागें नहीं, संघर्ष में ही आनंद को खोज़ने का प्रयास करें।
जब एक शिल्पकार छैनी और हथौड़ी से एक भोंटें पत्थर को तराश रहा होता है, तो उस पत्थर से एक सुंदर मूर्ति का निर्माण होता है।
जब भी आपको लगे कि आप पर दुख और मुसीबतों की छैनियाँ बरस रही है तो समझ जाएं कि आप तराशे जाने के दौर से गुजर रहे है, यह मृत्यु नहीं हैं। मृत्यु वो है जो इस पीड़ा को सह नहीं पा रहा, या धैर्य खो कर भाग रहा है।
इस संसार का शिल्पकार उसी भोंटें पत्थर को तराशता है जिसे वेदिका पर बिठाने योग्य समझता है।
अतः घबराएं नहीं, ईश्वर ने आपको चुना है, धैर्यपूर्वक उस समय का सदुपयोग करें जब आप ऐसे दौर से गुजर रहे हो। इस पीड़ा को सहकर ही आप सजीवता पाएगें, निखारें जाएंगें।
यह आपको विचार करना है कि आप एक जन्म में एक बार मरना ही चाहते है या पल पल।
– श्रुति आरोहन