पलाश का दीवाना ‘सुमन’
पलामूवासी हूं तो पलाश के प्रति एक अलग ही लगाव है। इसके सुमन तो ‘सुमन’ को दीवानगी की हद तक अपनी ओर खींचते हैं। दिल में ‘रागिनी’ सी फूट पड़ती है।
झारखंड के राजकीय फूल से तो यहां धरा पर चहुंओर लालिमा ही नजर आ रही है। पिछले 20 साल से गाजियाबाद में रह रहा हूं। यहां भी अपना घर है। आप सोच रहे होंगे कि अचानक पलामू और झारखंड की चर्चा के बीच गाजियाबाद कहां से आ गया। इसका भी खास कारण है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश का राजकीय पुष्प भी पलाश ही है। पिछले दिनों अमर उजाला में एक पढ़ी जिसमें लिखा गया था कि पलाश में इस साल फूल नहीं आए। मन तो थोड़ा दुखी हुआ पर यह जानकर खुशी हुई कि मेरे गृह और वर्तमान राज्य का राजकीय पुष्प एक ही है। चंडीगढ़ का स्टेट फ्लावर भी पलाश ही है। यहां भी इसकी स्थिति संतोषजनक नहीं है।
आइए लौटते हैं झारखंड और चलते हैं पलामू में। यहां के जंगलों में, गांवों में, सड़क किनारे पलाश के फूल खिले हैं। किसी को यह टुहुटुहु लाल दिखता है तो किसी को भगवा। अब नजर आपकी, आप जैसा देखें मर्जी आपकी। ऊपर से देखने पर यह जंगल की आग की तरह भी दिखता है।
मेदिनीनगर से कुछ दूर नीलांबर पीतांबरपुर के कुंदरी का लाह बागान काफी चर्चित है। यहां हर्बल गुलाल और लाह के कई उत्पाद बनाए जाते हैं।
इन दिनों इसके फूल ऐसी आभा बिखेरते हैं जिससे लगता है कि पूरा क्षेत्र खिल उठा है। फूल को सुखा कर गुलाल बनाया जाता है। बिलकुल प्राकृतिक आज की भाषा में आर्गेनिक। फूल को पानी में डाल कर छोड़ दें तो ऐसा रंग तैयार होता है कि रंगों से दूर रहने वाली भी कहे-रंग दे मोहे…। बसंत समाप्त होते ही पलाश पर लाह का लगना। फिर इन्हें उतारकर बाजार तक पहुंचाना।
पलाश का एक नाम ढाक भी है। इसी से कहावत ‘ढाक के तीन पात’ बना है। इन पत्तों से दोना और पत्तल तो बनता ही है इसकी लकड़ी भी काफी काम की होती है। यज्ञोपवीत संस्कार के समय इसकी डाली लेकर ही बटुक पढ़ने रवाना होते हैं। हम दोनों भाइयों के जनेऊ के समय पनेरीबांध से पलाश की डाली हमारे ननिहाल पाठक बिगहा गई थी।
जनेऊ की चर्चा होने पर भाई (दादी) के गाए गीत,’राम-लखन के जनेऊ भाई से अवध नगर में…’ और ‘…पढ़े जईहें तिरहुत’ याद आ रहे हैं। इन गीतों को हमलोग नेशनल पानासोनिक के टेप रिकॉर्डर में टेप करके ले गए थे।
अभी सफेद, बिलकुल दूध की तरह, महुआ पेड़ पर है। सुबह में सूर्य की किरणों से पहले यानी प्रभात में ये फूल चूने लगते हैं। इनका भी अलग सौंदर्य है, जिसकी चर्चा फिर कभी।
कुल मिलाकर कहें तो पलाश और महुआ मेरे जिले की सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक संबल देने वाले हैं। इन्हीं से जिले की पहचान और जिले का नाम है।
– प्रभात मिश्र