आधुनिक उपभोक्तावाद के समय में खान-पान की आदतें बहुत तेज़ी से बदती जा रही हैं। जबकि हमारी पारंपरिक भोजन पद्धति और शुद्ध भोजन के प्रति अब लोगों का लगाव बहुत ही कम देखने को मिलता है। पारंपरिक भोजन पद्धति को छोड़ पश्चिमी उपभोक्तावाद को अपनाकर हमारे भारतीय समाज ने अपने ही घर, बच्चों, फिटनेस और अन्य गतिविधियों के माध्यम से कई प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित कर लिया है। ऐसे में हमें अपनी उसी परंपरागत और सनातन विज्ञान पर आधारित भोजन पद्दति और नियमावली को फिर से अपना आवश्यक हो गया है जो प्रकृति पर आधारित है और उसकी नियमावली कुछ इस प्रकार से है: –
सनातन के 12 महीनों के अनुसार आहार के नियम :-
चैत्र (मार्च–अप्रैल)– इस महीने में गुड का सेवन करे क्योकि गुड आपके रक्त संचार और रक्त को शुद्ध करता है एवं कई बीमारियों से भी बचाता है। चैत्र के महीने में नित्य नीम की 4–5 कोमल पतियों का उपयोग भी करना चाहिए इससे आप इस महीने के सभी दोषों से बच सकते है। नीम की पतियों को चबाने से शरीर में स्थित दोष शरीर से हटते है।
वैशाख (अप्रैल–मई)– वैशाख महीने में गर्मी की शुरुआत हो जाती है। बेल पत्र का इस्तेमाल इस महीने में अवश्य करना चाहिए जो आपको स्वस्थ रखेगा। वैशाख के महीने में तेल का उपयोग बिल्कुल न करे क्योंकि इससे आपका शरीर अस्वस्थ हो सकता है।
ज्येष्ठ (मई–जून)– भारत में इस महीने में सबसे अधिक गर्मी होती है। ज्येष्ठ के महीने में दोपहर में सोना स्वास्थ्य वर्द्धक होता है, ठंडी छाछ, लस्सी, ज्यूस और अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। बासी खाना, गरिष्ठ भोजन एवं गर्म चीजों का सेवन न करे। इनके प्रयोग से आपका शरीर रोग ग्रस्त हो सकता है।
अषाढ़ (जून–जुलाई)– आषाढ़ के महीने में आम, पुराने गेंहू, सत्तु , जौ, भात, खीर, ठन्डे पदार्थ, ककड़ी, पलवल, करेला, बथुआ आदि का उपयोग करे व आषाढ़ के महीने में भी गर्म प्रकृति की चीजों का प्रयोग करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
श्रावण (जूलाई–अगस्त)– श्रावण के महीने में हरड का इस्तेमाल करना चाहिए। श्रावण में हरी सब्जियों का त्याग करे एव दूध का इस्तेमाल भी कम करे। भोजन की मात्रा भी कम ले–पुराने चावल, पुराने गेंहू, खिचड़ी, दही एवं हलके सुपाच्य भोजन को अपनाएं।
भाद्रपद (अगस्त–सितम्बर)– इस महीने में हलके सुपाच्य भोजन का इस्तेमाल कर वर्षा का मौसम होने के कारण आपकी जठराग्नि भी मंद होती है इसलिए भोजन सुपाच्य ग्रहण करे। इस महीने में मीठा एवं औषधि का सेवन करना चाहिए।
आश्विन (सितम्बर–अक्टूबर)– इस महीने में दूध, घी, गुड़, नारियल, मुन्नका, गोभी आदि का सेवन कर सकते है। ये गरिष्ठ भोजन है लेकिन फिर भी इस महीने में पच जाते है क्योंकि इस महीने में हमारी जठराग्नि तेज होती है।
कार्तिक (अक्टूबर–नवम्बर)– कार्तिक महीने में गरम दूध, गुड, घी, शक्कर, मुली आदि का उपयोग करे। ठंडे पेय पदार्थो का प्रयोग छोड़ दे। छाछ, लस्सी, ठंडा दही, ठंडा फ्रूट ज्यूस आदि का सेवन न करे, इनसे आपके स्वास्थ्य को हानि हो सकती है।
अगहन (नवम्बर–दिसम्बर)– इस महीने में ठंडी और अधिक गरम वस्तुओ का प्रयोग न करे।
पौष (दिसम्बर–जनवरी)– इस ऋतू में दूध, खोया एवं खोये से बने पदार्थ, गोंद के लाडू, गुड़, तिल, घी, आलू, आंवला आदि का प्रयोग करे, ये पदार्थ आपके शरीर को स्वास्थ्य देंगे। ठन्डे पदार्थ, पुराना अन्न, मोठ, कटु और रुक्ष भोजन का उपयोग न करे।
माघ (जनवरी–फ़रवरी)– इस महीने में भी आप गरम और गरिष्ठ भोजन का इस्तेमाल कर सकते है। घी, नए अन्न, गोंद के लड्डू आदि का प्रयोग कर सकते है।
फाल्गुन (फरवरी–मार्च)– इस महीने में गुड का उपयोग करे। सुबह के समय योग एवं स्नान का नियम बना ले। चने का उपयोग न करे।