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स्नान कैसे करें, स्नान की सही विधि क्या है ? 

admin 29 August 2024
Ganga Snan Mantra
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सनातन धर्म के अनुसार जीवन में स्नान और ध्यान का बहुत महत्व है। स्नान के पश्चात ध्यान, पूजा या जप आदि कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। मानव शरीर में 9 छिद्र होते हैं उन छिद्रों को साफ-सुधरा बनाने रखने से जहां मन पवित्र रहता है वहीं शरीर पूर्णत: शुद्ध बना रहकर निरोगी रहता है।

स्नान कब और कैसे करें घर की समृद्धि बढ़ाना हमारे हाथ में है। सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए हैं।

मुनि स्नान – सुबह 4 से 5 के बीच किया जाता है।

देव स्नान – सुबह 5 से 6 के बीच किया जाता है।

मानव स्नान – सुबह 6 से 8 के बीच किया जाता है।

राक्षसी स्नान – सुबह 8 के बाद किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार इनमें से मुनि स्नान सर्वोत्तम स्नान है। जबकि देव स्नान उत्तम स्नान है। मानव स्नान सामान्य है, और राक्षसी स्नान धर्म में निषेध है। शास्त कहते हैं कि किसी भी स्वस्थ्य मानव को 8 बजे के बाद स्नान नहीं करना चाहिए। हालाँकि कुछ विशेष परिस्थीतियों में यह समय मायने नहीं रखता।

मुनि स्नान – घर में सुख, शांति, समृद्धि, विद्या, बल,  आरोग्य, चेतना, प्रदान करता है।

देव स्नान –  आप के जीवन में यश, कीर्ती, धन, वैभव, सुख, शान्ति, संतोष, प्रदान करता है।

मानव स्नान – काम में सफलता, भाग्य, अच्छे कर्मों की सूझ, परिवार में एकता, मंगलमय, प्रदान करता है।

राक्षसी स्नान –  दरिद्रता,  हानि, क्लेश, धन हानि, परेशानी, प्रदान करता है। किसी भी मनुष्य को 8 के बाद स्नान नहीं करना चाहिए। पुराने जमाने में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान करते थे। खास कर जो घर की स्त्री होती थी। चाहे वो स्त्री माँ के रूप में हो, पत्नी के रूप में हो, बहन के रूप में हो।

हमारे घरों में विशेषकर ग्रामीण जीवन जीने वाले बड़े बुजुर्ग यही समझाते हैं कि सूरज के निकलने से पहले ही स्नान हो जाना चाहिए। ऐसा करने से धन, वैभव लक्ष्मी, आप के घर में सदैव वास करती है। उस समय एक मात्र व्यक्ति की कमाई से पूरा हरा भरा परिवार पल जाता था और आज मात्र पारिवार में चार सदस्य भी कमाते हैं तो भी पूरा नहीं होता। उस की वजह हम खुद ही हैं। पुराने नियमों को तोड़ कर अपनी सुख सुविधा के लिए हमने नए नियम बनाए हैं।

प्रकृति का नियम है, जो भी उस के नियमों का पालन नहीं करता, उस का दुष्परिणाम सब को मिलता है। इसलिए अपने जीवन में कुछ नियमों को अपनायें और उन का पालन भी करें।

सनातन जीवन जीने के लिए प्रकृति पर आधारित कुछ जरूरी नियम जरूर बनायें।

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