कहा जाता है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। और यदि कोई व्यक्ति आज बुरे कर्म करता है तो उसको अगले जन्म में इसका फल भी अवश्य ही मिलता है। हमारे शास्त्रों में भी इस विषय पर कई प्रकार से कथाओं और कहानियों के माध्यम से समझाया गया है।
कर्मों के फल से व्यक्ति को कभी भी मुक्ति नहीं मिलती। संसार के प्रत्येक प्राणी को अपने कर्मों का फल हर हाल में भोगना ही पड़ता है। फिर चाहे उसके कर्म अच्छे हैं या बुरे। अच्छे कर्म होंगे तो उसका फल भी अच्छा मिलेगा, और अगर बुरे हुए तो उसक फल भी उतना ही बुरा मिलेगा। व्यक्ति के कर्म जैसे होते हैं उसको उसी के आधार पर भुगतना भी पड़ता है। यह बात और है कि कौन से कर्म का फल कब और कैसे मिलता है। इंसानों के पास भले ही इसका पैमाना नहीं है लेकिन, ईश्वर के पास इसका सारा लेखा-जोखा रहता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य के द्वारा किये गये पुण्य और पाप रूपी समस्त प्रकार के कर्मों का अति सुक्ष्म तरीके से लेखा-जोखा निर्धारित किया जाता है। गरुड़ पुराण में इस बात का भी उल्लेख है कि व्यक्ति को अपनी मृत्यु के बाद कर्मों के आधार पर ही ‘‘स्वर्ग’’ और ‘‘नरक’’ की प्राप्ति होती है, और कर्मों के आधार पर ही अगले जन्म में किस रूप में और किस योनी में कहां और कब जन्म लेना है यह भी तय किया जाता है।
इसी विषय पर एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन अपना भेष बदल कर किसी नगर में भ्रमण कर रहे थे। उस भ्रमण के दौरान वे वहां कई प्रकार से लोगों की गतिविधियों और कार्यकलापों को देख रहे थे। तभी श्रीकृष्ण और अर्जुन की नजर एक हलवाई की दुकान पर पड़ी।
हलवाई ने दुकान का कुछ बासी खाना दुकान के पास में इक्कट्ठा कर रखा था। उस खाने के ढेर को देखकर एक कुत्ता बार-बार उसके पास आता और उसे खाने के लिए उसमें मुंह मारने का प्रयास करता। लेकिन, वो हलवाई उसे डंडे से मार कर भगा देता। कुत्ता जोर-जोर से रोता हुआ भाग जाता और दूर से देखता रहता। अवसर मिलते ही वह फिर से उसे खाने आता, लेकिन, हलवाई उसे फिर से भगा देता।
यह दृश्य देख कर अर्जुन को दुःख हो रहा था, लेकिन कृष्ण मुस्कुरा रहे थे। श्रीकृष्ण को मुस्कुराते देख अर्जुन ने आश्चर्य से उनके मुस्कुराने का कारण पूछा। इसके उत्तर में श्रीकृष्ण ने कहा – हे अर्जुन! तुम जो यह दृश्य देख रहे हो यह कर्मों का फल है।
इस पर अर्जुन ने पूछा कि -हे श्रीकृष्ण! कृपया मुझे यह बतायें कि यहां जो दृश्य दिख रहा है उसमें कर्मों का फल क्या और कैसे है?
इस पर श्रीकृष्ण ने बताया कि तुम जिस हलवाई की दुकान को देख रहे हो यह दुकान एक बहुत ही प्रसिद्ध हलवाई की हुआ करती थी। उस हलवाई ने अपने इस काम से बहुत सारा धन कमाया था, किन्तु उसका बर्ताव अपने कर्मचारियों और नाते-रिश्तेदारों से बहुत बुरा था और उन्हें हर समय अपशब्द कहता रहता था। अपने कर्मचारियों को वो ठीक से भोजन भी खाने को नहीं देता था। साथ ही सभी की बहुत बेज्जती भी करता रहता था।
उसके उन्हीं पिछले जन्म के कर्मों का फल है कि आज वह अपनी ही दुकान के आगे कुत्ता बन कर भोजन के लिए तरस रहा है। यह कुत्ता वही नामी हलवाई है और इस दुकान में जो वर्तमान मालिक दिख रहा है वो उसी का बेटा है। तुम जो उस कुत्ते को अभी मार खाते देख रहे हो, ये उसके पिछले जन्म के कर्मों की सजा है जिसे वह आज भुगत रहा है।
और क्योंकि किसी भी मनुष्य और पशु या पक्षी में इतनी क्षमता नहीं है कि वह अपने पिछले जन्म और कर्मों के विषय में कुछ भी याद रख सके, इसलिए न तो उस कुत्ते को इस बात की जानकारी है कि उसने अपने पिछले जन्म में क्या किया था और न ही इस हलवाई को इस बात का आभाष हो रहा है कि वह जो आज कर रहा है उसे भी अगले जन्म में इसक फल भोगना ही पड़ेगा।
इस कहानी से हमें यहां यही शिक्षा मिलती है कि किसी भी व्यक्ति को अपने कर्मों के साथ-साथ अपनी वाणी पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि मनुष्य सिर्फ अपने शरीर से ही कर्म नहीं करता बल्कि अपनी वाणी के दम पर भी कर्म करता है, अर्थात अपशब्द कह कर भी दुसरों को दुखी कर सकता है। और हर प्रकार के पापों का फल उसे अगले जन्म में भोगना ही होता है। तभी तो एक कहावत भी है कि “जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है”।