अजय चौहान || ब्रिटेन से प्रकाशित एक प्रमुख अखबार ‘द सन’ में प्रकाशित एक खबर के अनुसार रूस की वायरोलाॅजी एंड बायोटेक्नोलाॅजी के वेक्टर स्टेट रिसर्च सेंटर में ‘जोखिम भरी रिसर्च’ यानी ‘डेंजरस रिसर्च’ पर कार्य किया जा रहा है। रूसी लैब में चल रही यह रिसर्च यदि कामयाब हो जाती है तो इसके बाद हो सकता है कि कोरोना द्वारा मचाई गई भयंकर तबाही के बाद दुनिया को उससे भी भयानक महामारी झेलनी पड़े।
जानकार लोगों का मानना है कि जहां एक ओर कुछ वैज्ञानिक इसे एक उपलब्धि समझने की मुर्खता कर रहे हैं वहीं कुछ विशेषज्ञों को इस बात का डर सता रहा है कि रूसी वैज्ञानिक जानबुझ कर कोरोना से भी अधिक घातक और भयंकर महामारी को जन्म दे रहे हैं जो संभवतः कोरोना से भी कई गुणा अधिक तबाही ला सकता है।
दरअसल, रूसी लैब द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि वे एक ऐसे वायरस को दोबारा जिंदा कर मात्र यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि जिसने धरती पर से मैमथ का सफाया किया था वह क्या था। मैमथ एक ऐसा विशालकाय पशु हुआ करता था जो आज के हाथी से मिलता-जुलता होता था, और आज से करीब 4 लाख वर्ष पूर्व इस पृथ्वी से समाप्त हो चुका है।
अगर हम खबरों की मानें तो रूस के साइबेरियाई शहर नोवोसिबिर्स्क शहर में एक पुरानी जैव हथियार बनाने वाली लैब के शोधकर्ता उन कुछ ऐसे संक्रमणों या बीमारियों को फिर से जगाना चाहते हैं जो पिछले करीब चार लाख वर्ष पहले इस पृथ्वी पर तबाही मचा चुके थे।
‘द सन’ में प्रकाशित इस खबर के अनुसार वायरोलाॅजी एंड बायोटेक्नोलाॅजी के वेक्टर स्टेट रिसर्च सेंटर में ‘जोखिम भरी रिसर्च’ का उद्देश्य मात्र और मात्र इतना ही समझना है कि वायरस कैसे और क्यों विकसित होते हैं। इसके तहत रूसी वैज्ञानिकों की टीम हिम युग यानी आइस ऐज के जानवरों जैसे मैमथ और बालों वाले गैंडों के अवशेषों की जांच कर रही है जो आज से चार लाख वर्ष पूर्व इस धरती पर पाये जाते थे।
कुछ लोग मानते हैं कि जहां एक ओर इस ‘जोखिम भरी रिसर्च’ से अति प्राचीन काल की महामारियों और बीमारियों का पता चल सकता है वहीं, इस रिसर्च ने विशेषज्ञों की चिंता को भी बढ़ा दिया है। चिंता इस बात की है कि निष्क्रिय वायरस के साथ मरे हुए जानवरों का अध्ययन करना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
हालांकि, वैज्ञानिकों को इस बात का भी डर है कि यदि अति प्राचीनकाल की वे महामारियां और बीमारियां यदि आज के दौर में किसी लापरवाही या षड्यंत्र के तहत लैब से लीक हो जाती हैं और दुनिया में फैल जाती हैं तो उसका परिणाम क्या हो सकता है इसका अंदाजा आज हम कोरोना महामारी के परिणामों को देख कर ही लगा सकते हैं।
विशेषज्ञों ने अपनी चिंता के कारणों का उदाहरण देते हुए ये भी बताया है कि ऐसी कई महामारियां हैं जो दुनिया के कुछ ऐसे हिस्से में, जहां माइनस 45 से भी कम तापमान रहता है वहां दबे हुए प्राचीनकाल के कई जानवरों की लाशों के साथ आज भी लगभग पूरी तरह संरक्षित हैं। उनमें से रूस का याकुटिया क्षेत्र सबसे प्रमुख है। ऐसे में यदि वहां से उन्हें बाहर निकाला जाता है तो इस बात की पूरी तरह से संभावना है कि वे प्राचीन वायरस आज के जीवित जानवरों में आसानी से फैल सकते हैं।
विषय से संबंधित जानकार मानते हैं कि रूस के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित याकुटिया नामक स्थान जो कि दुनिया का सबसे ठंडा क्षेत्र है वहां पर आज भी हजारों लाखों वर्षों से जानवरों की कई लाशें माइनस 50 से 55 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान के कारण बर्फ में लगभग पूरी तरह से सुरक्षित और संरक्षित दबी पड़ी हैं। यह वही क्षेत्र है जहां वर्ष 2013 में फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने लगभग 45,000 साल से जमी हुई एक झील के नीचे दबे एक किसी वायरस को पुनर्जीवित किया था जिसे ‘जोंबी वायरस’ नाम दिया गया है।
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