अजय सिंह चौहान || स्लाथ एक ऐसा विलक्षण जीव है जो अपने जीवन का अधिकांश समय वृक्षों पर ही व्यतीत करता है। इसका खाना-पीना विश्राम करना, सोना, यहां तक कि अपने बच्चों का पालन-पोषण भी सब कुछ पेड़ों पर ही होता है। जीव विज्ञानियों ने इसे विश्व के सर्वाधिक आलसी वन्य जीवों में से एक माना है। इनमें से कुछ तो इतने आलसी होते हैं कि अपना संपूर्ण जीवन एक ही वृक्ष पर या उसके आस-पास ही व्यतीत कर देते है।
विश्व में सबसे आलसी जीव होने का कीर्तिमान इसी स्लाथ का है। इसके आलसीपन का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके शरीर पर कभी-कभी काई भी उग आती है। स्लाथ के शरीर पर चारों ओर लगभग सात-आठ मिलीमीटर तक लंबी काई देखी जा सकती है। हालांकि जीव विज्ञानी अभी तक यह ज्ञात नहीं कर सके हैं कि काई इसके शरीर पर क्यों रहती है? क्योंकि स्लाथ से काई को ना तो भोजन प्राप्त होता है और न ही कोई अन्य आवश्यकता पूरी होती है।
स्लाथ यानी सूस्त या आलसी बीयर (Sloth Bear) या भालू एक स्तनधारी प्राणी है जो मध्य एवं उत्तरी अमेरिका में पाया जाता है। यहां इसकी सात प्रकार की जातियां पायी जाती है। इन सभी को दो भागों में बाटा जा सकता है – तीन उंगली वाले स्लाथ और दो उंगली वाले स्लाथ। तीन उंगली वाले स्लाथ हांडूराप्स से लेकर अर्जेंटीना तक पाये जाते हैं।
जीव देखने में तो यह कुछ-कुछ एशिया में पाये जाने वाले भालूओं की तरह ही दिखता है तथा खाने-पीने की आदतों में भी मिलता-जुलता है। हालांकि इसका मुख्य भोजन पेड़-पौधों की फूल-पत्तियां तथा फल आदि हैं। यह सर्वभक्षी पशु है जो कीड़े-मकोड़े, छिपकली तथा अन्य अनेक प्रकार के छोटे-माटे जीवों को भी चट कर जाता है। यह अपने आगे के पंजों की सहायता से धीरे-धीरे इन्हें अपने मुंह के पास तक ले जाता है और खा लेता है। यह मुख्यतः एक निशाचर जीव माना जाता है, अर्थात् अधिकतर रात में ही भोजन की तलाश करता है और दिन के समय किसी वृक्ष की डाल को पकड़ कर शांती से लटका रहता है।
स्लाथ को अत्यंत ही शांतिप्रिय और विश्वसनीय वन्य जीवों में से एक माना गया है। इसमें सहनशीलता तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति की कोई कमी नहीं होती। जबकि अधिकांश स्तनपायी जीव इस आदत से भिन्न होते हैं। स्लाथ की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके शरीर का तापक्रम आस-पास के तापक्रम के अनुसार ही घटता-बढ़ता रहता है। इसके शरीर का तापक्रम अन्य स्तनधारी जीवों में सबसे कम और सर्वाधिक परिवर्तनशील होता है।
स्लाथ के शरीर का तापक्रम 20 डिग्री सेल्सियस से लेकर 35 डिग्री सेल्सियस के मध्य हमेशा घटता-बढ़ता रहता है। स्लाथ का जीवनकाल औसतन 20 से 30 साल तक देखा गया है। लेकिन, सन 2017 में, ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड चिड़ियाघर में एक रखे गये स्लाथ की 43 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई थी।
स्लाथ हजारों वर्षों से वृक्षों की शाखाओं पर उल्टा लटककर जीवन व्यतीत कर रहा है अतः इनके शरीर में अनेक परिवर्तन हो गये हैं। स्लाथ के हाथ-पैर इस प्रकार के हो गये हैं कि यह इनसे कोई अन्य कार्य नहीं कर सकता। इसकी उंगलियां और अंगूठे आपस में एक-दूसरे से जुड़ गये हैं तथा हाथों के बल लटके रहने के कारण इसके हाथ, पैरों से भी अधिक लंबे हो गयें हैं। इसकी गर्दन में भी इतना परिवर्तन हो चुका है कि वह इसे 270 डिग्री तक घुमाकर चारों ओर देख सकता है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है की इनकी गर्दन में नौ सरवाइकल होती हैं।
इसके अतिरिक्त इसके शरीर में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन इसके बालों से संबद्ध है। इसके शरीर के बाल सामान्य जीवों की अपेक्षा उल्टी दिशा वाले होते हैं, जिसके कारण उल्टे लटके रहने पर भी वर्षा के पानी से इसका शरीर बहुत कम भीगता है क्योंकि पानी सरलता से बह जाता है। उल्टा लटके रहने के कारण इसका पेट छोटा हो गया है तथा पीठ की मांसपेशियां भी बहुत कमजोर हो गई हैं।
जिस प्रकार इसका भोजन करने का तरीका अन्य से भिन्न है उसी प्रकार इसका मल त्यागने का तरिका भी भिन्न एवं रोचक है। इनमें दो उंगली वालेे और तीन उंगली वाले दोनों प्रकार के स्लाथों का मल त्यागने का ढंग अलग-अलग है। यह मल त्यागने के काम में भी उतना ही आलसी है जितना अन्य कामों में। तीन उंगली वाला स्लाथ प्रायः छह-सात दिन में एक बार मल त्यागता है जिसके लिए इसे वृक्ष से उतरकर जमीन पर आना पड़ता है। अपनी पूंछ की सहायता से यह जमीन में एक गड्डा बनाता है जिसमें यह मल त्यागता है और बाद में उसे मिट्टी से बंद कर देता है। जबकि दो उंगली वाले स्लाथ की पूंछ नहीं होती इसलिए यह गड्डा नहीं बना सकता। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि यह हमेशा एक ही स्थान पर मल विसर्जित करता है।
स्लाथ आलसी (Sloth Bear) प्रवृत्ति का होने के कारण यह बहुत कम गतिशील रहता है, खतरे की स्थिति में यह जमीन पर एक मिनट में लगभग 5 फिट तक ही हिल-डूल सकता है और सामान्य अवस्था में तो यह मात्र 1 फिट प्रति मिनट तक हिल-डुल सकता है। हालांकि पेड़ों पर यह एक मिनट में लगभग 10 से 12 फिट तक की दूरी तय कर सकता है। इसकी इन्हीं आलसी प्रवृत्तियों के कारण इसमें किसी भी प्रकार की विशिष्टि आदतों और व्यवहारों का विकास नहीं हो पाया है। प्राकृतिक अवस्था में इसकी औसत आयु लगभग 12 वर्ष तक ही पाई गई है।
स्लाथ 24 घंटो में से 18 घंटों तक नींद ले सकता है। हालांकि अधिकतर इसे वृक्षों पर लटकता हुआ ही पाया गया है मगर कभी-कभी वृक्षों की शाखाओं पर टेक लगाकर आराम करते हुए तो कभी सर को दोनों हाथों के मध्य से निकलकर, अपनी छाती पर रखकर बड़े अटपटे ढंग से सोते हुए भी देखा गया है। यह आराम करते समय और सोते समय भी एक हाथ से वृक्ष की कोई न कोई शाखा पकड़े रहता है।
जब कभी भी इसे किसी एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर जाना होता है और दोनों वृक्ष एक-दूसरे से इतनी दूरी पर होते हैं कि यह शाखाओं को पकड़कर एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष तक नहीं पहुंच सकता तो इसके लिए इसे जमीन पर आना ही पड़ता है। यह जमीन पर चलने के लिए अपने दोनों हाथों से शरीर को आगे की ओर धकेलता है और पेट के बल घिसट-घिसट कर आगे बढ़ता है। इसके पैर इतने कमजोर होते हैं कि यह अपने पैरों के बल पर खड़ा तो हो सकता है किंतु इनकी सहायता से चल नहीं सकता।
स्लाथ की लंबाई लगभग 16 से 22 इंच तक तथा वजन चार किलोग्राम से लेकर साढ़े चार किलोग्राम तक होता है। इसकी पूंछ लगभग 3 इंच तक की होती है जो ठूंठ-जैसी दिखती है। तीन उंगली वाले प्रायः सभी स्लाथों के शरीर का रंग धूसर कत्थई होता है किंतु शरीर पर पर काई जम जाने के कारण हरा दिखाई देता है।
स्लाथ के तीन प्रमुख शत्रु हैं – हार्पी गरुड़, जगुआर तथा वृक्षों पर रहने वाले अजगर। इसके अतिरिक्त अब इन्हें मनुष्यों से भी खतरा बना रहता है, क्योंकि इसकी खाल को बेच कर शिकारी अच्छा पैसा बना लेते हैं।
इतना आलसी होते हुए भी यह अपने बचाव के लिए कभी-कभी जगुआर से भिड़ जाता है और उसे पंजे मार-मारकर, भागने पर विवश कर देता है। हार्पी गरुड़, अजगर तथा इस प्रकार के अन्य जीवों से अपनी रक्षा करने के लिए तो स्लाथ एक बड़ा ही रोचक तरीका अपनाता है। दुश्मन के निकट आने पर यह अपने हाथ-पैर और मुंह भीतर की ओर करके गंेद की तरह गोल हो जाता है। त्वचा मजबुत, मोटी और घने बालों वाली होने के कारण इसका यह ढंग इसे अपने शत्रुओं से आसानी से बचा लेता है।
स्लाथ बड़ा ही सीधा और सरल वन्य जीव माना गया है जिसे बड़ी आसानी से पालतू भी बनाया जा सकता है और चिड़ियाघरों में रखा जा सकता है। बच्चों के समान ही वयस्क स्लाथ भी बड़ी सरलता से पालतू बन जाते हैं किंतु अक्सर देखा गया है कि तीन उंगली वाला स्लाथ पालतू बन जाने के बाद अधिक समय तक जीवित नहीं रहता और कुछ ही महीनों में मर जाता है।
स्लाथ का समागम और प्रजनन भी इसकी अन्य क्रिया-कलापों की तरह ही रोचक है। मादा स्लाथ हमेशा उल्टी रहकर ही प्रजनन करती है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा स्तनधारी जीव है, जिसमें बच्चा स्वयं ही प्रयास करके मां के पेट से बाहर निकलता है। नवजात बच्चे के हाथ मादा के पेट के भीतर ही इतनी विकसीत हो जाते हैं कि आधा बाहर आने के बाद बच्चा अपने दोनों हाथों से वृक्ष की किसी शाखा को पकड़ लेता है और फिर अपनी शक्ति के द्वारा जोर लगाकर पूरी तरह प्रजनन अंग के बाहर आ जाता है।
स्लाथ का नवजात बच्चा जन्म लेने के तुरंत बाद मादा के पेट से चिपक जाता है और उसका दूध पीने लगता है। स्लाथ का बच्चा लंबे समय तक मादा का दूध पीकर ही अपना विकास करता है। इसके बच्चे का वजन 250 ग्राम से लेकर 350 ग्राम तक होता है। यह बच्चा इतना छोटा होता है कि मादा के घने बालों के मध्य आसानी से छिप जाता है और सरलता से दिखाई नहीं देता। इसका बच्चा भी बड़ा ही आलसी होता है और शारीरिक श्रम का कार्य बहुत ही कम करता अतः इसका शारीरिक विकास भी बड़ी धीमी गति से होता है।