अजय सिंह चौहान || सबसे पहले तो ध्यान रखें कि श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling Temple) में साल के बारहों महीने श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता। लेकिन, अगर आप यहां अपने परिवार के बच्चों और बुजुर्गों के साथ जाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि गर्मियों के मौसम में यहां अत्यधिक गर्मी रहती है। इसलिए विशेषकर अक्टूबर से मार्च के बीच यहां की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय हो सकता है।
यहां जाने से पहले ध्यान रखें कि त्रयंबकेश्वर जैसी पवित्र जगह, गोदावरी जैसी पवित्र नदी और ब्रम्हगिरी जैसा सुंदर पर्वत एक साथ और कहीं देखने को नहीं मिलता। मंदिर के आसपास का प्राकृतिक दृश्य बड़ा ही मनमोहक और आकर्षक लगता है। इसलिए यहां धार्मिक यात्रा के साथ-साथ अधिकतर लोग पर्यटन का भी आनंद लेते हुए देख जा सकते हैं।
आपको यहां यह ध्यान रखना होगा कि जिस स्थान पर श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling Temple) है वह स्थान कोई बहुत बड़ा या घनी आबादी वाला शहर नहीं है बल्कि, महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित यह त्रयंबकेश्वर तहसील के त्रयंबक नाम का एक साधारण सा कस्बा है। इसके अलावा यहां यह भी ध्यान रखें कि त्रयंबक नाम का यह एक अति प्राचीन और पौराणिक महत्वपूर्ण का कस्बा है जो युगों पहले से बसा हुआ है। इसलिए यहां मंदिर के आसपास ही में आपको कई सारी धर्मशालाओं, आश्रमों और प्राइवेट होटलों में ठहरने के लिए आसानी से कमरा मिल जायेगा।
श्री त्रयंबकेश्वर के दर्शन –
त्रयंबकेश्वर के बस स्टैंड से ही श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling Temple) का शिखर नजर आ जाता है। एक गली से होकर जैसे ही आप मंदिर के प्रवेश द्वार के पास पहुंचते हैं वहां आपको जूता-चप्पल का स्टैंड और अन्य सामान जैसे पर्स, बैग, मोबाई या कैमरा आदि को जमा करने के लिए लाॅकर की सुविधा मिल जाती है।
श्रद्धालुओं की लंबी कतारें –
साधारणतः यहां आम दिनों में दर्शन करने के लिए लगने वाली भक्तों की कतारों में लगभग तीन घंटे का समय तो लग ही जाता है। लेकिन अगर कोई श्रद्धालु अपने उस समय को बचाकर जल्दी से दर्शन करके बाहर आना चाहे तो ऐसे श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां भी अन्य मंदिरों की तरह ही विशेष वीआईपी दर्शन टिकट की सुविधा उपलब्ध है। और इस सुविधा के लिए मुख्य प्रवेश द्वार के साथ ही में ‘देणगी दर्शन’ के नाम से एक विशेष टीकट काउंटर बना हुआ है।
‘देणगी दर्शन’ नाम से यह विशेष टीकट काउंटर मंदिर में वीआईपी दर्शन के लिए है और इसके लिए यहां 200 रुपए का टीकट लेकर बिना लाईन में लगे सीधे गर्भगृह तक प्रवेश की अनुमति मिल जाती है। हालांकि, इसके बाद भी दर्शन करने मे कम से कम आधे घंटे का समय तो लग ही जाता है।
लेकिन, अगर आप लाईन में लगकर बिना टिकट के ही दर्शन करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको मंदिर के प्रांगण में पहुंचने के लिए इसके पूर्वी द्वार पर पहुंचना होता है। प्रांगण में पहुंचने पर यहां आपको लंबी-लंबी कतारें दिख जायेंगी।
श्री त्रयंबकेश्वर मंदिर की संरचना –
सभा मंडप में प्रवेश करने से पहले यहां के नंदी मंदिर से होकर जाना होता है। सभा मंडप में पहुंच कर अगर आप गौर करें तो पता चलता है कि इसके मंडप के भीतर की छत की संरचना बेहद खूबसूरत नक्काशीदार नजर आती है।
इस पूर्वाभिमुखी मंदिर की दिवारें भारीभरकम काले पत्थरों से बनी हुई है। गर्भगृह के ठीक सामने बने मंडप में नंदी बैल की सुंदर मूर्तिकला देखने लायक है। मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश लगा हुआ है। इसके अलावा शिखर पर लगी हुई धातु की धर्म-ध्वज पंचधातु से निर्मित है।
श्री त्रयंबकेश्वर के दर्शन –
सभा मंडप से गर्भगृह करीब चार फिट की गहराई में है। किसी भी आम श्रद्धालु को इसके गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है। इसलिए दूर से यानी गर्भगृह के प्रवेश द्वार से ही सभी श्रद्धालुओं को दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।
गर्भगृह में शिवलिंग (Trimbakeshwar Jyotirling Temple) के स्थान पर तीन अलग-अलग और बहुत ही छोटे, यानी लगभग एक-एक इंच के आकार के तीन शिवलिंगों के दर्शन होते हैं। ये तीनों ही शिवलिंग त्रिदेव, यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक के रूप में पूजे जाते हैं।
श्री त्रयंबकेश्वर का विशेष मुकुट –
कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के ऊपर एक ऐस रत्नजड़ित मुकुट भी पहनाया जाता है जिसे त्रिदेव, यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश को पहनाये जाने वाले स्वर्ण के यानी सोने के मुखोटे के ऊपर से पहनाया जाता है। इसमें हीरे, पन्ने और कई कीमती रत्न जड़े हुए हैं।
मंदिर से जुड़े अनेकों ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि यह रत्नजड़ित मुकुट द्वापर युग का है और इसे स्वयं पांडवों के द्वारा यहां चढ़ाया गया था। तब से लेकर मध्य युग के मुगलकालीन दौर के अनेकों प्रकार के आक्रमणों को झेलने के बाद भी यह मुकुट कैसे और किसके द्वारा यहां सुरक्षित और संरक्षित रखा गया है और कैसे-कैसे दौर से यह गुजर चुका है इस विषय को लेकर इसका भी अपना एक अलग ही इतिहास और महत्व है।
कुशावर्त तीर्थ कुंड –
श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirling Temple) के पास ही में कुशावर्त तीर्थ कुंड भी स्थित है। और यह कुशावर्त तीर्थ कुंड पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम स्थल यानी जन्म स्थल है। यह वही गोदावरी नदी है जिसके किनारे पर प्रत्येक 12 वर्षों में एक बार महाकुंभ का मेला लगता है। मान्यता है कि मंदिर में दर्शन करने से पहले इस कुशावर्त तीर्थ कुंड में स्नान करने से श्रद्धालुओं के मन से सभी प्रकार के बुरे विचार और चिंताएं नष्ट हो जाती हैं।
कुशावर्त तीर्थ को लेकर शिव महापुराण में उल्लेख है कि इससे पहले यहां पास ही में स्थित ब्रह्म पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम स्थान था। लेकिन, वह नदी बार-बार वहां से लुप्त हो जाया करती थी, इसलिए गौतम ऋषि ने कुश की मदद से गोदावरी नदी को यहां बांध दिया था। तब से लेकर आज तक गोदावरी नदी इस कुंड से निकल कर आगे को बहती आ रही है। और इसी लिए इस कुंड को कुशावर्त तीर्थ या कुशावर्त कुंड के नाम से पहचाना जाता है।
श्री त्रयंबकेश्वर की विशेष पूजा –
अगर आपका मन यहां विशेष अभिषेक करवाने हो और गर्भगृह में प्रवेश करने का हो तो उसके लिए आपको सुबह के समय केवल छः बजे से सात बजे के बीच गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति दी जायेगी और तभी आप शिवलिंग को भी स्पर्श कर सकते हैं।
इस विशेष अभिषेक के लिए आपको यहां मंदिर के पंडे और पुजारियों से संपर्क करना होता है। आप चाहें तो उनसे इस खर्च राशि के लिए मोलभाव भी कर सकते हैं। इसके अलावा आप यहां आप कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि जैसी कुछ विशेष पूजापाठ भी करवा सकते हैं।
इसके अलावा यह स्थान हर तरह के धार्मिक विधि विधानों के लिए हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और सबसे प्रसिद्ध तीर्थों में माना जाता है। जिनमें से इन धार्मिक विधि विधानों के तहत यहां गोदावरी नदी के तट पर श्राद्ध करना सबसे उत्तम समझा जाता है। इसके अलावा यहां त्रयंबकेश्वर में गंगा-पूजन, गंगाभेंट, देह-शुद्धि और तर्पण जैसी धार्मिक विधियां की जाती हैं।