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Chopta Hill Station: कब, कैसे और कितने खर्च में करें यात्रा?

admin 4 September 2021
Chopta Hill Station - Chandrashila View Point at Chopta Hill Station 1
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उत्तराखंड, यानी भारत के उत्तर में बसा एक ऐसा पहाड़ी राज्य जो ईश्वर की धरती यानी कि देवभूमि के नाम से जाना जाता है। क्योंकि यहां सनातन आस्था के प्रतीक चारधामों में से एक बद्रीनाथ धाम और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम सहीत गंगोत्री और यमुनोत्री भी स्थित है। इन सब से अलग और परम् अलौकिक शक्तियों के लिए सबसे उत्तम माने जाने वाले साधना और तप स्थान भी इसी राज्य क्षेत्र की पहाड़ियों में हैं।

उत्तराखंड न सिर्फ प्राकृतिक दृश्यों से घिरा हुआ एक विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों, घने जंगलों, ग्लेशियरों और बर्फ से ढंकी चोटियों के लिए भी सब से अलग है। उत्तराखंड में पर्यटन के लिहाज से हिल स्टेशनों की सुरम्यता के साथ धार्मिक महत्व के अनगिनत स्थान होने के कारण देश और दुनियाभर के लोग यहां आते हैं।

उत्तराखंड के अनगिनत हिल स्टेशनों में मसूरी, अल्मोड़ा, चोपटा, नैनीताल, लैंसडाउन, धनौल्टी, वैली आफ फ्लाॅवर के लिए भारत में ही नहीं बल्कि विश्व प्रसिद्ध हिल स्टेशनों में गिना जाता है।

CHOLI KI JAALI MUKTESHWARतो, उत्तराखंड के इन्हीं विश्व प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थानों में से एक है चोपता। चोपता को ‘उत्तराखंड का मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है। यहां की शांत और स्वास्थ्यप्रद हवा और प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को लंबी उम्र का वरदान दे देती है। इसके अलावा चोपता से ही भगवान तुंगनाथ मंदिर तक जाने वाली पैदल यात्रा की भी शुरूआत होती है।

आज यहां हम बात करेंगे कि चोपता तक कैसे पहुंचा जाय। चोपता जाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि आप देश के किसी भी भाग में हों। अगर आप यहां रेल से आ रहे हैं तो यहां के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है। और अगर आप यहां हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में है। इसके बाद तो यहां सड़क के रास्ते ही जाना होता है। और क्योंकि हरिद्वार/ऋषिकेश को चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार कहा जाता है इसलिए हरिद्वार/ऋषिकेश से ही इस यात्रा की शुरूआत मानी जाती है।

यात्रा की शुरूआत होती है हरिद्वार/ऋषिकेश से। ऋषिकेश से आगे चलने पर यहां दो अलग अलग रास्ते मिलते हैं जिसमें से एक रास्ता सारी नाम के गांव से होता हुआ चोपता हिल स्टेशन को जाता है जो करीब 215 किमी लंबा है। जबकि दूसरा रास्ता देव प्रयाग और रुद्रप्रयाग से होता हुआ चोपता के लिए जाता है, और ये रास्ता भी करीब-करीब 215 किमी लंबा है।

चोपता ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक प्रमुख राजमार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। उसके बाद कुंड तक केदारनाथ राजमार्ग से होकर ऊखीमठ के लिए के लिए जाना होता है। अगर आप हरिद्वार/ऋषिकेश से सुबह जल्दी ही निकल लेते हैं तो कम से कम 7 से 8 घंटे में शाम तक आराम से पहुंच सकते हैं।

अगर आप देहरादून से या फिर हरिद्वार/ऋषिकेश से ऊखीमठ के लिए रोडवेज बस से जाते हैं तो इसका किराया करीब 415 रुपये लगता है। ऊखीमठ से चोपता मात्र 45 किमी की दूरी पर ही है जहां के लिए स्थानीय स्तर पर शेयरिंग जीप और टेक्सी आदि चलती हैं। जयादातर पर्यटक ऊखीमठ में ही रात को ठहरना पसंद करते हैं।

और अगर आप यहां टेक्सी से जाना चाहते हैं तो करीब 18 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से यहां टेक्सी का किराया देना पड़ता है। इसके अलावा प्रतिदिन 300 रुपये के हिसाब से ड्राइवर को अलग से देना होता है। यानी अगर आप हरिद्वार/ऋषिकेश से चोपता के लिए टेक्सी से जाना-आना करते हैं तो यह खर्च 7800 रुपये और प्रति दिन के हिसाब से ड्राइवर को 300 रुपये अलग से देने पड़ेंगे। इसलिए कोशिश करें कि आप यहां रोडवेज की बसों से ही जाना-आना करें और पर्यटन के साथ धार्मिक यात्राओं का भी आनंद लें।

चोपता से ही पंच केदार में से एक भगवान तुंगनाथ धाम के शिव मंदिर के लिए भी करीब 3 किमी पैदल यात्रा की भी शुरूआत की जाती है।

चोपता में आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या बहुत ज्यादा नहीं होती। इसलिए यहां भीड़ भी ज्यादा नहीं देखी जाती। यही कारण है कि चोपता में कोई खास होटल या रेस्टारेंट भी नहीं हैं, लेकिन यहां रात को ठहरने के लिए करीब 5 से 6 छोटी-छोटी जगहें हैं जिनमें साफ-सुथरे कमरे मिल जाते हैं। इनमें एक कमरे का 300 से 400 रुपए तक चार्ज लग जाता है। अगर आप चोपता में रात को ठहरते हैं तो इन अधिकांश स्थलों पर इनकी अपनी रसोई होती है जिनमें से अधिकतर में स्थानीय परंपरा के अनुसार स्वादिष्ट भोजन मिलता है जो अधिकतर लोगों के लिए यादगार हो जाता है।

अत्यधिक भीड़भाड़ वाला पर्यटन या धार्मिक स्थल न होने के कारण चोपता तक ऋषिकेश से रोडवेज की कोई भी बस सेवा सीधे उपलब्ध नहीं है इसलिए अधिकतर पर्यटक यहां टेक्सियों से ही आते-जाते हैं। अगर आप यहां अपने वाहनों से आना-जाना करते हैं तो ये कम खर्चीला और अधिक से अधिक समय बिताने के साथ मौज-मस्ती का बेहतर विकल्प हो सकता है। चोपता तक जाने के लिए सड़कों की बहुत अच्छी व्यवस्था है।

चोपता एक पर्यटन स्थल के साथ धार्मिक स्थलों से घिरा हुआ क्षेत्र भी है, इसलि यहां भगवान तुंगनाथ जी के अलावा आसपास के अन्य प्रमुख देव स्थानों और प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में देवरिया ताल भी है जो यहां से करीब 30 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा ऊखीमठ भी करीब 45 किमी है। इसके अलावा गुप्तकाशी भी यहां से 50 किमी की दूरी पर ही है। इन सबके अलावा आप यहां से अनुसूया देवी मंदिर की यात्रा भी कर सकते हैं लेकिन यह मंदिर चोपता से करीब 110 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा चोपता के आसपास के क्षेत्र में गोपेश्वर, रुद्रप्रयाग और रुद्रनाथ जैसे धार्मिक स्थल भी हैं।

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चोपता एक कम भीड़ वाला शांत और एकांत प्रेमियों की पसंद का पर्यटन स्थल है। इसके आस-पास के क्षेत्रों में आपको घूमने के लिए कम से कम अतिरिक्त 3 दिनों की आवश्यकता होती है। यहां ये भी ध्यान रखें कि चोपता में आपको एटीएम की सुविधा नहीं मिलने वाली है। लेकिन, चोपता पहुंचने से पहले आपको ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग और गुप्तकाशी में बहुत सारे एटीएम मिल जाते हैं।

वैसे चोपता में घूमने-फिरने या फिर तुंगनाथ की यात्रा पर जाने वाले ज्यादातर श्रद्धालु उत्तराखंड की चारधाम यात्रा और खास तौर से केदारनाथ जी की यात्रा के बाद सीधे यहां आते हैं। ऐसे में अगर आप भी यहां भीड़-भाड़ वाले समय में जाते हैं तो कमरे मिलना मुश्किल हो सकता है। भोजन के लिए आपको चोपता और तुंगनाथ दोनों जगहों पर अच्छी गुणवत्ता का भोजन मिल जाता है।

चोपता एक बहुत ही कम आबादी वाला गांव है। इसलिए यहां किसी हिल स्टेशन जैसी ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं। इसलिए यहां रात को रूकना बहुत ही कम लोग पसंद करते हैं। जबकि चोपता से करीब 45 किमी पहले ऊखीमठ नाम के एक पर्यटन स्थल पर रात को ठहरना ज्यादा अच्छा और सुविधा जनक हो सकता है। क्योंकि उखीमठ से अगले दिन सुबह-सुबह आप टैक्सी या स्थानीय लोकल सवारी जैसे कि शेयरिंग जीप से भी चोपता तक जा सकते हैं जहां से तुंगनाथ जी के लिए पैदल यात्रा की शुरूआत होती है।

आम तौर पर यहां बर्फबारी दिसंबर की शुरुआत में ही शुरू हो जाती है और यही बर्फबारी कभी-कभी तो यहां मार्च के महीने तक भी जारी रहता है। इसलिए सर्दियों के मौसम में चोपता में बर्फबारी एक आम बात होती है। भारी बर्फबारी के कारण कई बार यहां रास्ते बंद भी हो जाते हैं। इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि बारीश के मौसम में भी यहां जाना खतरनाक हो सकता है।

– कीर्ति, इंदौर

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