अजय सिंह चौहान || सनातन संस्कृति के अनुसार किसी भी घर में या फिर किसी भी मंदिर में, कभी भी किसी खण्डित मूर्ती की पूजा-पाठ नहीं की जाती। लेकिन, शायद यह बात बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि हमारे ही देश में एक ऐसा ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर भी है जिसमें मौजूद, लगभग सभी प्राचीन मूर्तियां खण्डित हैं, और तो और उन सभी मूर्तियों की नियमित रूप से पूजा-पाठ भी होती आ रही है।
जी हां, यह बिल्कुल सच है। और आपको यह जानकार हैरानी होगी कि इस मंदिर में रखी लगभग सभी प्राचीन मूर्तियां खंडित हैं। लेकिन, फिर भी उन खंडित मूर्तियों की पूजा उसी प्रकार से की जाती है जैसे कि अन्य मूर्तियों की होती है। यह मंदिर किसी और देश में नहीं बल्कि भारत में ही मौजूद है और वह भी उस राज्य में जिसमें भगवान राम का जन्म हुआ था। यानी यह मंदिर उत्तर प्रदेश में श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या से मात्र 110 किमी और लखनऊ से करीब 170 किमी की दूरी पर है।
और आपको यहां यह जानकर भी सबसे अधिक हैरानी होगी कि इस मंदिर की मूर्तियां कोई मामूली रूप से खंडित नहीं हैं बल्कि यहां मौजूद अधिकांश देवी देवताओं की मूर्तियों के सिर ही नहीं हैं, यानी बिना सिर वाली मूर्तियां हैं।
यह सच है कि हिंदू धर्म के अनुसार अगर कोई मूर्ति मामूली-सी भी खण्डित हो जाती है तो उसकी पूजा-पाठ करना एक दम वर्जित है, क्योंकि यह अपशकुन माना जाता है इसलिए उस मूर्ति की पूजा-पाठ नहीं की जाती। लेकिन, उसके एक दम विपरीत इस मंदिर में इन बिना सिर वाली मूर्तियों को संरक्षित भी रखा गया है और इनकी पूजा-पाठ भी करीब-करीब 320 वर्षों से लगातार होती आ रही है।
खंडित मूर्तियों वाला यह मंदिर ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ के नाम से पहचाना जाता है। और यह ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ लखनऊ से करीब 170 किमी की दूरी पर स्थित प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इस मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण आज से करीब 900 वर्ष पहले हुआ था।
दरअसल इस ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ की इन खंडित और बिना सिर वाली मूर्तियों का रहस्य यह है कि इसकी सभी मूर्तियों के सिर औरंगजेब के आदेश पर काट दिए गये थे या फिर तोड़ दिए गये थे, और तब से लेकर आज तक वे खंडित और बिना सिर वाली मूर्तियां यहां मौजूद भी हैं और उनकी पूजा-पाठ भी उसी प्रकार से होती आ रही है।
भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अनुसार सन 1699 में जब औरंगजेब सभी हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया था तो उस दौरान इस मंदिर में भी उसकी सेना ने लूटपाट के बाद यहां की इन मूर्तियों को खंडित कर दिया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब औरंगजेब ने अपना शासन संभाला था उसके तुरंब बाद ही ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ के पुजारियों और अन्य स्थानीय लोगों ने इस मंदिर के भविष्य के विषय में सोचना शुरू कर दिया और इसके अस्तित्व को लेकर चिंतित हो रहे थे। तब किसी ने सुझाव दिया कि क्यों न इस मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार को किसी मस्जिद के द्वार की भांति तैयार करवा दिया जाय, ताकि जब औरंगजेब के सैनिक यहां आयें तो वे भ्रमित हो जायें और इसे दूर सेे ही देखकर चले जायें।
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हालांकि, कई लोगों वह उपाय अच्छा नहीं लगा, लेकिन, इसके अलावा स्थानीय लोगों के पास दूसरा कोई रास्ता या उपाय भी नहीं बचा था। इसलिए आनन-फानन में इस मंदिर का अस्तिव बचाने की खातिर उस उपाय को मान लिया गया और स्थानीय लोगों ने तथा पुजारियों ने मिल कर इस मंदिर के मुख्य द्वार को तुड़वा कर उसका आकार और डिजाइन एक दम मस्जिद के प्रवेश द्वार के आकार का तैयार करवा दिया।
और इसके कुछ ही दिनों बाद हुआ भी वही, जिसका डर था। कुछ ही दिनों बाद जब औरंगजेब के कुछ सैनिकों ने इस क्षेत्र के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों की तलाश शुरू की और उन्हें लूटपाट के बाद नष्ट करना प्रारंभ किया तो वे प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित इस ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ तक भी पहुंच ही गये। कहा जाता है कि जब वे यहां आये तो उन्हे यह मंदिर दूर से ही दिखाई दे गया था।
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दूर से देखने पर उन सैनिकों को ‘अष्टभुजा धाम मंदिर’ का प्रवेश द्वार एक मस्जिद जैसा दिखाई दे रहा था इसलिए, औरंगजेब की सेना के करीब-करीब सभी सैनिक इस मंदिर के सामने से गुजर चुके थे, लेकिन, अंत में उनमें से किसी मुगल सैनिक की नजर मंदिर के दरवाजे पर टंगी घंटी पर पड़ गयी। इसके बाद तो जाते-जाते उसमें से कुछ सैनिकों ने मंदिर में भारी उत्पात मचाया और इसमें स्थापित मूर्तियों में से अधिकतर के सिर काट दिए, और कुछ मूर्तियों के हाथ-पैर तोड़ कर उन्हें विभिन्न प्रकार से खंडित कर दिया था।
इतिहासकारों और पुरातत्वविद विभाग का मानना है कि इस मंदिर की वर्तमान इमारत का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशियां और अन्य कलाकृतियों देखने लायक हैं। गजेटियर के अनुसार सोमवंशी क्षत्रिय घराने के राजा द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाये जाने का अनुमान लगाया जाता है। जबकि मंदिर की बाहरी दिवारों पर उकेरी गई और मूर्तियां और कलाकृतियां मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिरों से काफी हद तक मिलती-जुलती हैं।
यह मंदिर अष्टभूजाओं वाली देवी दूर्गा का मंदिर है इसलिए इसे अष्टभुजा धाम मंदिर’ के नाम से पहचाना जाता है। स्थानीय लोगो के अनुसार मंदिर के गर्भगृह में मौजूद अष्टधातु की प्राचीन मूर्ति करीब 17 वर्ष पहले चोरी हो चुकी है इसलिए स्थानीय लोगो ने सामूहिक सहयोग से इस मंदिर में उस स्थान पर देवी दूर्गा की दूसरी मूर्ति की स्थापना की है।
अगर आप भी इस मंदिर में दर्शन करने जाना चाहते हैं या फिर कभी आपका आना-जाना उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में होता है तो वहां से इस मंदिर तक पहुंचना एक दम आसान है। क्योंकि यह मंदिर लखनऊ से लगभग 175 किमी पूर्व की ओर जिला प्रतापगढ़ शहर से मात्र 8 किमी की दूरी पर है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन से उत्तर दिशा में इलाहबाद-फैजाबाद रोड़ पर चिलबिला चैराहे से होते हुए गौड़े ग्राम के लिए जाना होता है जहां यह मंदिर स्थित है।