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पुराणों में क्यों कहा गया है कावेरी को दक्षिण भारत की गंगा? | All About Kaveri River in Hindi

admin 10 December 2021
Kaveri River Map
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अजय सिंह चौहान || भारत नदियों का देश है। यहां छोटी-बड़ी अनेक नदियां हैं जिन पर इस देश का जीवन और अर्थव्यवस्था जूड़ी हुई है। मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही इन नदियों ने भारत को संजोकर रखा है। मानव सभ्यता की शुरूआत भी भारत की इन्हीं नदियों के किनारे विकसित हुई है। सनातन संस्कृति में सभी नदियों का अपना-अपना पवित्र स्थान और महत्व आज भी जस का तस बना हुआ है। इन्हीं नदियों की तरह दक्षिण भारत में बहने वाली कावेरी नदी का भी अपना एक अलग ही महत्व है।

सनातन संस्कृति में जिस प्रकार गंगा नदी का पानी पवित्र माना जाता है उसी प्रकार दक्षिण भारत में कावेरी नदी (All About Kaveri River in Hindi) का पानी भी एक दम पवित्र माना जाता है। अपने उद्गम स्थान और महत्व के कारण कावेरी नदी पौराणिक काल से ही भारतीय संस्कृति और इतिहास में अपना एक विशेष स्थान बनाये हुए है और आज भी इसका वही स्थान है।
हालांकि वर्तमान समय और परिस्थितियों के कारण इस कावेरी नदी को हम आये दिन विवादों और आवश्यकताओं के अनुसार समाचारों के माध्यम से ही पहचानने लगे हैं।

युगों-युगों से कावेरी नदी दक्षिण भारतीय कला और संस्कृति को जीवन देती और पौषित करती आई है। इसके किनारों पर भी सनातन संस्कृति और अध्यात्मक से संबंधित हजारों महान ऋषि-मुनियों ने तप के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त किया है।

सनातन संस्कृति में जिन 10 प्रमुख नदियों को विशेष स्थान दिया जाता है उसमें कावेरी नदी (All About Kaveri River in Hindi) का नाम भी प्रमुख है। दक्षिण की इस प्रमुख नदी कावेरी का विस्तृत विवरण विष्णु पुराण में दिया गया है। इसके अलावा दक्षिण की गंगा कही जाने वाली इस नदी का हमारे विभिनन महा पुराणों एवं पुराणों में बार-बार उल्लेख आता है।

जैसे-जैसे कावेरी आगे को बढ़ती जाती है उसमें सिमसा, हिमावती, भवानी, कनका और गाजोटी और लक्ष्मणतीर्थ जैसी लगभग 50 से भी अधिक छोटी-बड़ी उपनदियाँ समाती जात हैं और उसका विस्तार और प्रवाह बढ़ता जाता है।

Kaveri River___Families come calling on River Cauvery at Srirangapatna for ‘Pitru Paksha’
कावेरी नदी के तट सनातन संस्कृति के लिए सबसे पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है।

कावेरी नदी के तटों पर सनातन संस्कृति से संबंधित कई तीर्थ बसे हुए हैं। कावेरी नदी की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह अपने मार्ग में नदी तीन अलग-अलग स्थानों पर दो शाखाओं में बंट कर फिर एक हो जाती है, जिससे इसने तीन द्वीपों का निर्माण किया है। और उन तीनों ही द्वीपों पर आदिरंगम, शिवसमुद्रम तथा श्रीरंगम नाम से श्री विष्णु भगवान के भव्य मंदिर तीर्थ स्थापित हैं।

इसके अलावा महान शैव तीर्थ चिदम्बरम तथा जंबुकेश्वरम भी श्रीरंगम के पास इसी नदी के तट पर स्थित हैं। इनके अतिरिक्त अति प्राचीन तथा गौरवमय तीर्थ नगरी तंजौर, कुंभकोणम तथा त्रिचिरापल्ली भी इसी पवित्र नदी के तट पर स्थित हैं।

कावेरी का उल्लेख संगम साहित्य के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों में अनेकों बार आता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उल्लेख तमिल साहित्य के सबसे प्राचीन और सबसे पवित्र ग्रंथ पैटीना पलाई में है जहां इसे एक बातें करने वाली नदी के रूप में बताया गया है।

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इसके अलावा कावेरी नदी हजारों वर्षों से दक्षिण भारत में सबसे प्रिय, जीवनदायिनी और पवित्र जल धाराओं में से एक रही है। ईसा पूर्व 5वीं से तीसरी शताब्दी ई.पू. के समय के तमिल युग और तमिल साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

सनातन संस्कृति के सबसे मुख्य और पवित्र तीर्थों में से एक कावेरी के तट पर बसा श्रीरंगम दक्षिण भारत में बहुत प्रसिद्ध है। यहां कावेरी में स्नान करने और श्री रंगनाथस्वामी मंदिर में दर्शन करने के लिए देशभर से श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ साल के बारहों मास आती रहती है।

श्रीरंगम, अपने श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान सनातन संस्कृति में विशेष रूप से वैष्णवी समाज के लिए एक प्रमुख तीर्थ और भारत के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है।

तिरुचिरापल्ली जैसा शहर भी कावेरी नदी के तट पर बसा हुआ है इसलिए यह भी सनातन संस्कृति के लिए सबसे पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। कावेरी के किनारे के सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक भागमंडलम तीर्थ दक्षिण भारत के तीर्थों में प्रमुख माना गया है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कावेरी नदी का जन्म संक्रांति के दिन हुआ था, इसी कारण कावेरी के उद्गम स्थान पर संक्रांति के दिन श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ देखी जाती है।

कावेरी नदी के नाम के विषय में मान्यता है कि इसके पानी में सोने के कण या स्वर्ण धातु के अंश पाये जाते हैं और तमिल भाषा में कावेरी को पोन्नी यानी सोना कहा जाता है। इसी से इसका नामकावेरी पड़ा होगा। जबकि यह भी कहा जाता है कि इस नदी में डुबकी लगाने से पहले महिलाएं कोई न कोई गहना उपहार के तौर पर डालती है। और संभवतः इसलिए नदी के पानी में सोने के कण मौजूद हैं।

कावेरी नदी (All About Kaveri River in Hindi) का जन्म स्थान या उद्गम स्थल कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाट यानी ब्रम्हगिरी पर्वत पर है। अपने उद्गम स्थान पर कावेरी नदी मात्र एक छोटे से झरने के आकार में दिखाई देती है। जबकि उद्गम स्थान से थोड़ा आगे जाकर यह एक छोटे तालाब में समा जाती है और फिर वहां से आगे जाकर इसका पानी एक दूसरे बड़े तालाब का रूप ले लेता है और देखते ही देखते उस तालाब का पानी नदी का विस्तृत रूप लेकर आगे को बड़ जाता है।

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दक्षिण भारत के चार प्रमुख राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुदुच्चेरी से होकर बहने वाली कावेरी बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलने से पहले एक फिर से अपने आकर में संकरी हो जाती है इसलिए इसे बूढी कावेरी भी कहा जाता है।

जिस प्रकार से उत्तर भारत में गंगा और यमुना के संगम को प्रयाग के तौर पर पवित्र माना जाता है उसी प्रकार से दक्षिण भारत में भी कावेरी, कनका और गाजोटी नदियों के संगम को भागमण्डलम अर्थात पवित्र संगम स्थान के रूप में माना जाता है।

भागमंडलम से आगे बढ़ने पर कावेरी में हिमावती और लक्ष्मणतीर्थ नाम की दो उपनदियां भी जब इसमें समा जाती हैं तो वहां से इसका प्रवाह और भी विशाल हो जाता है।
कावेरी नदी सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर पर स्थित अपने छोटे से उद्गम स्थान से निकल कर दक्षिण-पूर्व की दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई लगभग 800 किमी मार्ग तय करती हुई कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

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