भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में 10वें स्थान पर पूजे जाने वाले भगवान नागेश्वर के ज्योतिर्लिंग मंदिर की महिमा के सम्बन्ध में शिव पुराण में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार बताया गया है कि आखिर क्यों और कैसे यहां पर भगवान नागेश्वर के ज्योतिर्लिंग मंदिर की स्थापना हुई? क्यों इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा है और इसके इस नाम के पीछे का रहस्य क्या है? तो शिव पुराण के अनुसार –
एक बार की बात है, दारुका नाम की एक राक्षसनी अपने राक्षस पति दारुक के साथ जंगल में रहती थी। माँ पार्वती ने दारुका को वरदान दिया था कि तुम इस वन संपदा को अपने साथ कहीं भी ले जा सकती हो। जिसका लाभ उठाते हुए उसने व उसके पति ने पूरे वन में उथल-पुथल मचा राखी थी जिसके कारण इस क्षेत्र के और आस-पास के सभी लोग उनके अत्याचारों से परेशान हो गए थे। इसलिए वे सभी महर्षि और्व के पास गए और दारुका और दारुक के अत्याचारों कैसे पीछा छूटे इसका समाधान पूछा।
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तब महर्षि ने उन लोगों की रक्षा के लिए दारुका और दारुक को श्राप दे दिया कि अगर अब अगर ये राक्षस पृथ्वी लोक पर हिंसा करेंगे या फिर यज्ञ में बाधा डालेंगे तो उसी समय नष्ट हो जायेंगे। महर्षि के द्वारा दारुका और दारुक को दिए गए श्राप की खबर जब देवताओं को लगी तो उन्होंने तुरंत ही उन राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। ऐसे में सभी राक्षस सोचने लगे कि अगर वे देवताओं का सामना करेंगे और उनसे युद्ध लड़ेंगे तो उसी उसी समय नष्ट हो जायेंगे और अगर युद्ध नहीं लड़ेंगे तो युद्ध में परास्त माने जायेंगे।
तब राक्षसनी दारुका के मन में विचार आया कि क्यों न माता पार्वती के वरदान का लाभ उठाया जाय और इस वन सम्पदा को अपने साथ ले जाकर समुद्र के बीच रहा जाय। ऐसे में महर्षि के श्राप से भी बच सकते हैं और कोई हरा भी नहीं पायेगा। तुरंत ही उस राक्षसनी ने माता पार्वती के वरदान का लाभ उठाया और उस जंगल को उड़ा कर समुद्र के बीच में ले गयी जहां अन्य सभी राक्षस उस समुद्र के बीच आराम से रहने लगे।
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एक दिन उसी समुद्र के मार्ग से होकर कुछ नावें उस जंगल की तरफ आ रही थी, जिनमें मनुष्य सवार थे। उन राक्षसों ने उन सभी मनुष्यों को बंधक बना लिया। उन बंधकों में एक सुप्रिय नाम का वैश्य भी था जो भगवान शिव का परम भक्त था। वह बंधक होते हुए भी उस कारावास में नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करता रहा। भगवान शिव की पूजा अर्चना किये बिना वह भोजन ग्रहण नहीं करता था।
सुप्रिय ने अपने साथ बंधक उन सभी लोगों को भी उस कारावास में भगवान शिव की नियमित आराधना और पूजा-पाठ करना सिखा दिया और उसके बाद वे सभी बंधक प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा और ओम नमः शिवाय का जाप करने लगे। इस बात की खबर जब दारुक राक्षस को लगी तो उसने सुप्रिय को कहा कि यदि तुम निरंतर शिव की पूजा करते रहोगे तो मैं तुम्हें मार डालूंगा। क्योंकि तुम्हें यहां से बचाकर ले जाने वाला कोई भी नहीं है।
उसी क्षण सुप्रिय ने भगवान शिव को याद किया और सभी भक्तों को कष्ट से मुक्त करने की विनती की। अपने भक्तों को कष्ट में देख कर भगवान शिव वहां उस बंदीगृह में बने एक छोटे से छिद्र में से निकलकर तुरंत नाग के रूप में उपस्थित हो गए और उन्होंने एक ही क्षण में उन सभी राक्षसों को नष्ट कर दिया।
भगवान शिव ने अपने उन सभी भक्तों को वहां से मुक्त करवा दिया और उन्हें यह वरदान दिया कि आज से राक्षसों का यहाँ कोई स्थान नहीं है। दारुक यह देखकर दंग रह गया और अपनी पत्नी दारुका के पास भाग गया।
भगवान का यह वचन सुनकर राक्षसी दारुका भयभीत हो गयी और एक बार फिर माता पार्वती की शरण में गई। दारुका ने माता पार्वती से विनती करते हुए कहा कि माता मेरे वंश की रक्षा कीजिये। तब माता पार्वती ने उसे आश्वासन दिया और भगवान भोलेनाथ से कहा कि- इन राक्षसों को भी यहां आश्रय दे दीजिये, क्योंकि मैंने ही इस दारुका राक्षसी को वरदान दिया था। तब भगवान शिव ने कहा कि, ठीक है, ऐसा ही होगा। मैं भी अपने भक्तों की रक्षा के लिए यहाँ सदा के लिए विराजमान हो जाता हूँ।
और क्योंकि अपने परम भक्त सुप्रिय की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव वहां एक छिद्र में से नाग के रूप में प्रकट हुए थे इसलिए उन्हें नाग देवता का रूप माना गया और वहां स्थापित शिवलिंग को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम दिया गया। इस प्रकार अपने भक्तों का सदा भला चाहने वाले शिव भगवान वहां सदा के लिए नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।
संकलन- dharmwani