अजय सिंह चौहान || कहा जाता है कि भगवान के घर देर होती है, लेकिन अंधेर नहीं। ठीक यही कहावत इन दिनों चरितार्थ होती दिख रही है बाॅलीवुड में बनने वाली आजकल की फ्लाॅप फिल्मों के साथ, इनमें काम करने वाले कलाकारों के साथ, और साथ ही साथ इनके निर्माता-निर्देशकों के साथ भी। बाॅलीवुड की इन फिल्मों के फ्लाॅप होने का दोष भले ही हिंदुओं और राष्ट्रवादियों के मत्थे मढ़ दिया जा रहा है लेकिन, सच तो ये है कि आजकल की बाॅलीवुडिया फिल्मों में वो दम ही नहीं रहा कि हिंदी के दर्शकों अपनी ओर को खिंच सके।
ठीक इसी प्रकार से 9 सितंबर 2022 को रिलीज़ हुई धर्मा प्रोडक्शन की ‘ब्रम्हास्त्र: शिवा पार्ट वन’ (Brahmastra Movie Review in Hindi) के साथ भी दिख रहा है। क्योंकि फिल्म ब्रम्हास्त्र भी अपने पहले ही दिन बुरी तरह से फ्लाॅप रही। इससे कहा जा सकता है कि पुरी तरह से हाॅलीवुड फिल्मों के इफेक्टस और दक्षिण भारतीय फिल्मों की कहानियों और मूल पटकथा को आधार बना कर ब्रम्हास्त्र का निर्माण करने वाले अयान मुखर्जी ने सोचा था कि वे दक्षिण भारतीय फिल्मों का दबदबा तोड़ कर बाॅलीवुड की इज्जत बचा लेंगे। लेकिन, अफसोस की ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला। क्योंकि ‘ब्रम्हास्त्र’ अपने पहले ही दिन देश क करीब हर शहर के हर शो में सुपर फ्लाप शाबित हो चुकी है।
जिस प्रकार से जौहर एन्ड कंपनी ने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए फिल्म का प्रचार-प्रसार किया, उससे अधिक यदि वे इस फिल्म की कहानी और कलाकारों के हाव-भाव या दृश्यों पर काम करते तो संभव होता कि दक्षिण भारत की एक सबसे कम और साधारण दर्जे की फिल्म को भी वे मात दे सकते थे। लेकिन, अफसोस होता है कि वे इसमें नाकाम हो गये। क्योंकि, ‘ब्रम्हास्त्र: शिवा पार्ट वन’ (Brahmastra Movie Review in Hindi) में हर प्रकार के फिल्मांकन को मलयालम फिल्मों से काॅपी करने का स्पष्ट प्रयास और प्रभाव देखा जा सकता है।
भले ही कुछ पेशेवर और पेड रिव्यूव पर आधारित यूट्यूबर्स ने इसका खुब सकारात्मक प्रचार करने का प्रयास किया लेकिन, वे भी इस फिल्म को कामयाबी दिलाने में नाकाम रहे। इसके अलावा अधिकतर पेशेवर और पेड वेब पोर्टल्स ने भी ‘प्रेस रिलीज़ को जस की तस ही प्रकाशित कर दिया। रही बात प्रमुख अखबारों और न्यूज चैनलों से संबंधित मीडिया की तो यहां तो पैसा देकर कोयले को भी सोना कहलवा सकते हैं। हालांकि, अभी कुछ दिनों तक और इस प्रायोजित पब्लिक ओपिनियन को झेलना पड़ सकता है लेकिन, फिर भी कहा जा सकता है कि ‘ब्रम्हास्त्र’ (Brahmastra Movie Review in Hindi) के प्रति दर्शकों के प्यार का परिणाम शून्य ही रहने वाला है।
फिल्म को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि आने वाले समय में धर्मा प्रोडक्शन और करण जौहर बाॅलीवुड के दर्शकों के बीच फिर से अपनी वह जगह बना पायेंगे। फिल्म (Brahmastra Movie Review in Hindi) का की कमजोर शुरूआत से ही पता चलता है कि इसकी लागत के आस-पास तक पहुंचना भी मुश्किल है।
बात करें अगर फिल्म ‘ब्रम्हास्त्र: शिवा पार्ट वन’ (Brahmastra Movie Review in Hindi) की कहानी की तो इसकी कहानी जितनी गरीब या निम्न दर्जे की है उससे कहीं अधिक गरीबी इसके डाॅयलाॅग्स यानी संवाद में झलकती है। फिल्म को देखकर ऐसा कहीं से भी नहीं लगा कि इसका बाॅयकाॅट करके समय बर्बाद करने की आवश्यकता थी। हालांकि, इसके विजवल इफैक्ट्स पर कुछ अच्छा काम किया गया है लेकिन, कहानी और डाॅयलाग्स ने सब गुडगोबर कर के रख दिया। जौहर एन्ड कंपनी अगर चाहती तो कार्तिकेय 2 से कुछ सिखते हुए इसमें कुछ बदलाव करके भी रिलीज कर सकती थी।
कहने के लिए तो फिल्म का नाम ‘ब्रम्हास्त्र: शिवा पार्ट वन’ (Brahmastra Movie Review in Hindi) है, लेकिन, इसके नाम के अनुरूप कहीं से भी इसमें प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति और अस्त्र-शस्त्रों के बारे में गौरव महसू करने वाली फीलिंग नहीं होती। जैसा कि फिल्म के रिलीज से पहले इसका ट्रैलर देखने से लग रहा था कि इसमें कुछ आश्चर्य करने लायक या फिर गर्व करने लायक कुछ नया हो सकता है लेकिन गर्व करने या करवाने के बजाय इसमें प्रेम प्रसंगों को ही बेवजह सबसे अधिक फुटेज दी गई है। इससे साबित होता है कि ‘ब्रम्हास्त्र की पटकथा भी पूरी तरह से एजेंडे पर आधारित ही है।
फिल्म ‘ब्रम्हास्त्र: शिवा पार्ट वन’ (Brahmastra Movie Review in Hindi) की शुरुआत शिवा नामक कैरेक्टर से होती है। शिव की खासियत है कि उसको आग जला नहीं पाती। अपने भीतर छूपे इस रहस्य को वह खोजना चाहता है। इसी खोज के दौरान वह ईशा से मिलता है और उससे प्रेम करने लग जाता है। उधर जूनून नाम की एक महिला उस ‘ब्रम्हास्त्र’ को प्राप्त करना चाहती है जिसके तीन टुकड़े अलग-अलग स्थानों पर रखे अन्य अस्त्रों के साथ छुपा कर रखे हुए हैं। इस बीच जूनून अस्त्रों के रक्षकों को मारती जा रही है। जूनून उन अस्त्रों के रक्षकों को खोज-खोज कर समाप्त कर देना चाहती है। उधर शिवा के गुरु की चाहत है कि शिवा को उसके भीतर छुपी शक्ति के बारे में पता चल जाए। इसमें प्रेमालाप इतना अधिक ठूंसा गया है कि फिल्म एक्शन से अधिक प्रेम कहानी लगने लगती है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘ब्रम्हास्त्र: शिवा पार्ट वन’ की इस कहानी में कुछ अच्छे रहस्य और रोमांच हो सकते थे। लेकिन, निर्माता और निर्देशक ने इसमें कहीं से भी रिसर्च वर्क नहीं किया और न ही अपनी विद्वता का परिचय दिया। कहा जा सकता है कि बेवजह फिल्म का निर्माण कर खासतौर से हिंदू धर्म के दर्शकों को बदनाम करने का प्रयास किया है कि वे उनकी फिल्म का बाॅयकाॅट कर रहे हैं।
जब कभी भी कोई निर्माता-निर्देशक धर्म, अध्यात्म, प्राचीन भारत के इतिहास या पौराणिक तथ्यों पर आधारित फिल्म लेकर आता है तो उसे कई विद्वानों के साथ मिलकर गहन अध्ययन करने के साथ अन्य कई प्रकार की तैयारियां करनी होती है, और यह अनुभव हमें दक्षिण भारतीय फिल्मों में देखने को मिल जाता है। लेकिन, लगता है कि बाॅलीवुड का कोई भी निर्माता-निर्देशक इस होमवर्क में न तो अपना समय लगाना चाहता है और न हीं बुद्धिमता का परिचय देना चाहता है। कहा जा सकता है कि ‘ब्रम्हास्त्र: शिवा पार्ट वन’ में भी वन मैन शो जैसी ही कुछ मानसिकता की झलक देखने को मिल रही है।
फिल्म में पौराणिक युग के ‘ब्रम्हास्त्र’ का तो खुब जिक्र किया गया है और उसी के आस-पास कहानी भी घुमती है लेकिन, हैरानी होती है कि इसमें ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई है कि पृथ्वी पर ‘ब्रम्हास्त्र या अन्य कब और कैसे आए, उनके रक्षक कौन हैं और उन रक्षकों में ऐसी क्या शक्तियां थी, जो वे उन्हें धारण करने में सक्षम थे। आधे-अधूरे तर्कों के साथ पेश गई ‘ब्रम्हास्त्र’ में शाहरुख खान को भी ‘राहुल’ बनाकर मेहमान कलाकार के रूप में जिस प्रकार से घुसाया है, उससे तो यही लगता है कि करण जौहर का शाहरुख प्रेम मजबूरी बन गया है।