वर्तमान में कोई भी राजनीतिक दल सनातन के मूल्यों को अपना आधार नहीं बनाये हुए हैं। जो लोग बीजेपी को हिन्दूवादी पार्टी मानते हैं वे ध्यान रखें कि बीजेपी में भी हिंदुत्व नहीं बल्कि “गांधीवादी समाजवाद” है। इसीलिए बीजेपी के नेता बार बार कहते रहते हैं कि बीजेपी का मतलब भगवा नहीं है और भगवा मतलब बीजेपी नहीं है।
ये तो किस्मत अच्छी रही बीजेपी की शुरुआत में जब बीजेपी को मात्र दो सीट मिलने के बाद अशोक सिंघल जी ने राम मंदिर के मुद्दे को हवा दे दी, वर्ना आज भी बीजेपी केंद्र में नहीं आ पाती। संघ प्रमुख मोहन भगवत ने एक कार्यक्रम में यह बात कही भी है कि हमें तो अपनी प्रकृति और विचारधारा के विरुद्ध जाकर राम मंदिर आंदोलन में भाग लेना पड़ा और मंदिर मुद्दे को उठाना पड़ा।
यानी सीताराम गोयल जी की वो बात यहां सच साबित हो जाती है जिसमें उन्होंने कहा था की बीजेपी ने तो सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए ही राम मंदिर मुद्दे को उछाला था, सनातन मूल्यों के लिए बिलकुल भी नहीं।
सीताराम गोयल जी साफ़ कहा था कि संघ ने वीर सावरकर जी को मात्र इसलिए अलग फेंक कर उनका इतिहास दबा दिया क्योंकि वीर सावरकर जी संघ को सनातनवादी और हिन्दुत्वप्रेमी संघठन के रूप में समझ कर चल रहे थे और वे संघ से उसी क्षेत्र में काम करवाना भी चाहते थे। जबकि संघ को कोई भी कट्टर हिन्दू पसंद नहीं था, इसलिए संघ ने न सिर्फ योगी वीर सावरकर जी को बल्कि महंत अवैद्यनाथ जी (आदित्यनाथ जी के दादा गुरु), और मुझे भी नापसंद कर दिया क्योंकि हम लोग हिन्दू हितों की बात करने लगे थे और यही बात संघ को पसंद नहीं आ रही थी।
योगी आदित्यनाथ जी के दादा गुरु महंत अवैद्यनाथ जी भी कट्टर हिंदुत्व की श्रेणी में आते थे क्योंकि वे भी हिन्दुओं की आवाज उठाते थे, उन्होंने ही राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति को स्थापित किया था। इसलिए उन्हें भी एक तरफ कर दिया गया। महंत अवैद्यनाथ जी के बाद से आजतक किसी ने भी हिन्दुओं की आवाज़ किसी ने नहीं उठाई है।
वर्तमान समय में कहने के लिए तो लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 245 सांसद हैं और इनमें भी सबसे अधिक संख्या में हिन्दू ही हैं। लेकिन विडम्बना है कि एक भी सांसद ने गोहत्या प्रतिबन्ध के पक्ष में और मंदिरों के विध्वंस के विरोध में आवाज़ नहीं उठाई है। और ना ही आजतक के इतिहास में किसी सांसद ने इस बात के लिए आवाज़ उठाई है कि मंदिरों को सरकार से मुक्त कर दिया जाय या फिर हिन्दुओं को भी गुरुकुल चलाने के लिए संवैधानिक अधिकार दिए जाएँ।
– अजय चौहान