द्वारका नगरी को न सिर्फ सनातन धर्म की प्रमुख ‘‘सप्त पुरियों’’ में स्थान प्राप्त है बल्कि इस भूमि पर विराजित भगवान द्वारकाधीश का मंदिर चार धामों में से एक है, इसलिए भी यह भूमि सनातन धर्म और अध्यात्म के लिए बहुत ही अधिक महत्व रखती है। संपूर्ण द्वारका नगरी श्रीकृष्ण की कर्मभूमि भी है इसलिए, यदि आप यहां सच्चे मन से तीर्थ करने जाते हैं तो आपको यहां उनकी आहट भी सुनाई दे सकती है। मान्यता है कि यहाँ की यात्रा करने मात्र से व्यक्ति के सारे पाप कट जाते हैं। इसलिए अधिकतर तीर्थ यात्री इस प्रदेश की यात्रा के लिए हमेशा उत्साहित रहते हैं।
दरअसल, द्वारका नगरी सहित यहां के संपूर्ण सौराष्ट्र क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों अन्य सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर भी हैं लेकिन, पौराणिक तथ्यों के अनुसार इस नगरी को भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग के अंतिम कुछ वर्षों की समयावधि के दौरान और महाभारत युद्ध के ठीक पहले, स्वयं ही बसाया था। यही कारण है कि सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए इस स्थान का महत्व बहुत अधिक है।
सबसे पहले तो यहां यह भी जान लिया जाये कि यदि आप भगवान श्रीकृष्ण के ‘द्वारकाधीश मंदिर’ में दर्शन करते हैं और ‘रुक्मिणी देवी मंदिर’ में दर्शनों के लिए नहीं जाते हैं तो पौराणिक मान्यता के अनुसार, आपकी द्वारकाधीश यात्रा अधूरी ही रह जाती है। क्योंकि, देवी रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पटरानी थीं इसलिए द्वारका में न केवल भगवान श्रीकृष्ण का निवास है, बल्कि यह देवी रुक्मिणी का भी घर है। इसके अलावा देवी रुक्मिणी साक्षात लक्ष्मी माता का ही एक अवतार भी हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से इस मंदिर में जाने से वंचित रहने वाले श्रद्धालुओं को न तो श्रीहरी विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त हो पाता है और न ही माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो पाती है।
द्वारका जाने का सही समय –
द्वारका जाने के लिए ऐसा कोई निश्चित समय तो नहीं है लेकिन, फिर भी ध्यान रखें कि अगर आप अपने परिवार के बच्चों और बुजुर्ग सदस्यों के साथ वहां जाना चाहते हैं तो फिर उसके लिए यहां जाने का सबसे अच्छा और मौसम सितंबर-अक्टूबर से फरवरी-मार्च के बीच का समय है। क्योंकि इन दिनों में यहां न तो बारीश होती है और न ही यहां बहुत ज्यादा गर्मी का प्रकोप होता है।
सर्दी के मौसम में यहां अन्य मैदानी इलाकों की तरह अत्यधिक सर्दी का असर भी नहीं होता। इसके अलावा यदि आप खास तौर पर यहां के भव्य रूप से मनाये जाने वाले ‘जन्माष्टमी महोत्सव’ का आनंद लेना चाहते हैं तो अगस्त और सितंबर के मध्य यहां की यात्रा करना चाहिए। क्योंकि इन दिनों यहां श्रीकृष्ण के परम भक्तों की उत्साही भीड़ विशेष रूप से देखने को मिल जाता है।
द्वारका नगरी में कहां ठहरें –
अरब सागर के तट पर स्थित गुजरात की द्वारका नगरी संसार की सबसे प्राचीन नगरियों में से एक है इसलिए यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या करीब-करीब हर समय बराबर ही रहती है। ऐसे में द्वारका शहर में द्वारकाधीश मंदिर के आस-पास या फिर रेवले स्टेशन और बस अड्डे के पास में आपको बजट और आवश्यकता के अनुसार सस्ते और महंगे, एसी और बिना ऐसी के, हर प्रकार के छोटे-बड़े होटल और धर्मशालाएं मिल जाते हैं। इसके अलावा आप चाहें तो आॅनलाइन बुकिंग की सुविधा भी ले सकते हैं।
द्वारका में भोजन –
द्वारका चार धामों में से एक प्रमुख धाम और तीर्थ स्थान है। ऐसे में यहां जाने-आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक संपूर्ण देश और दुनियाभर से आते रहते हैं, इसलिए यहां खान-पान के साधन भले ही सीमित हैं लेकिन द्वारकाधीश मंदिर के आस-पास के कुछ भोजनालयों में करीब-करीब हर प्रदेश और हर क्षेत्र के अनुसार, साधारण व्यंजन मिल जाते हैं। आप चाहें तो यहां गुजरात के कुछ खास व्यंजन और ‘गुजराती थाली’ का भी स्वाद ले सकते हैं। इस बात का भी खास ध्यान रखें कि द्वारका में शराब या अन्य प्रकार का नशा प्रतिबंधित है।
द्वारका में भाषा –
द्वारका में आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक संपूर्ण देश और दुनियाभर के होते हैं इसलिए यहां कई भाषाओं के जानकार भी मिल जाते हैं। हालांकि यहां प्रमुख रूप से गुजराती भाषा का ही बोलबाला है, लेकिन, गुजराती के साथ-साथ राजस्थानी, मराठी, हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले भी मिल जाते हैं। लेकिन, अगर आप गुजरात के धार्मिक स्थानों, पर्यटन स्थलों और शहरों को छोड़कर गांवों की तरफ जायेंगे तो हो सकता है कि वहां आपको भाषा की थोड़ी सी समस्या देखने को मिले।
द्वारका के आस-पास के अन्य दर्शनिय एवं पर्यटन स्थल –
द्वारका के आस-पास के अन्य दर्शनीय एवं पर्यटन स्थलों में रणछोड़ जी मंदिर, निष्पाप कुण्ड, गोमती द्वारका, कुशेश्वर मंदिर, दुर्वासा ऋषि का आश्रम, त्रिविक्रम मंदिर, शारदा मठ, हनुमान मंदिर, चक्र तीर्थ, कैलाश कुण्ड, गोपी तालाब, बेट द्वारका, चैरासी धुना, रणछोड़ जी मंदिर, शंख तालाब और सोमनाथ मंदिर आदि प्रमुख स्थान हैं।
कैसे पहुंचे –
अरब सागर के तट पर स्थित गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित द्वारका नगरी के रुक्मिणी देवी मंदिर और द्वारकाधीश मंदिर के लिए सड़क मार्ग के द्वारा गुजरात के ही कुछ प्रमुख शहरों से दूरी इस प्रकार है –
अहमदाबाद से द्वारकाधीश मंदिर की दूरी करीब 440 किलोमीटर है। इस दूरी को तय करने में करीब छह घंटे का समय लग जाता है।
इसके अलावा राजकोट शहर से यह दूरी करीब 230 किलो मीटर है। इस दूरी में करीब 4 घंटे का समय लग जाता है।
जामनगर से द्वारकाधीश मंदिर की दूरी करीब 130 किमी है जिसे करीब दो से ढाई घंटे में तय किया जा सकता है।
इसके अलावा, पोरबंदर से यह दूरी करीब 105 किमी है जिसमें करीब एक से डेढ घंटे का समय लग जाता है।
द्वारकाधीश मंदिर हो या रुक्मिणी देवी मंदिर, कहीं के लिए भी सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां आस-पास के अन्य राज्यों से भी द्वारका मंदिर तक जाने-आने के लिए रोडवेज बसों की सुविधा मिल जाती है। यहां इस बात का ध्यान रखें कि गुजरात सरकार द्वारा संचालित राज्य परिवहन निगम की बसों की सुविधा भी उपलब्ध है, लेकिन उन पर ज्यादा भरोसा न करें। जबकि, प्राइवेट ऑपरेटरों की बसों की यहां बहुत अच्छी सेवा उपलब्ध है यही प्राइवेट बसें गुजरात में तीर्थ और पर्यटन की लाइफलाइन मानी जाती हैं। आप चाहें तो यहां टैक्सी की सुविधा भी ले सकते हैं, लेकिन टैक्सी से यात्रा करने पर आपका बजट बिगड़ सकता है।
रेल द्वारा कैसे पहुंचे –
गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित द्वारका नगरी तक पहुंचने के लिए अगर आप रेल से जाना चाहते हैं तो इसके लिए द्वारका नगरी में मंदिर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर ही एक छोटा रेलवे स्टेशन बना हुआ है जो कि ‘‘द्वारका स्टेशन’’ के नाम से जाना जाता है। इस दूरी को आप चाहें तो पैदल भी तय कर सकते हैं या फिर यहां से रिक्शा या फिर शेयरिंग टेम्पों की सवारी भी कर सकते हैं।
लेकिन ध्यान रखें कि ‘‘द्वारका स्टेशन’’ एक छोटा रेलवे स्टेशन है इसलिए देश के दूर दराज के क्षेत्रों से बहुत ही कम ट्रेनें यहां तक आ पातीं हैं। ऐसे में अगर आपको अपने किसी भी दूर के शहर से द्वारका के इस रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन ना भी मिले, तो आप गुजरात के ‘‘राजकोट जंक्शन’’ तक भी पहुंच सकते हैं, क्योंकि, राजकोट जंक्शन के लिए आपको कई बड़े शहरों से डायरेक्ट ट्रेन मिल जाएगी। राजकोट जंक्शन से द्वारका मंदिर की दूरी करीब 230 किमी. है। यहां से बस या फिर टैक्सी लेकर आप द्वारका नगरी तक आसानी से जाना-आना कर सकते हैं।
‘‘राजकोट जंक्शन’’ के अलावा आप चाहें तो गुजरात के ‘‘अहमदाबाद जंक्शन’’ के लिए भी ट्रेन ले सकते हैं। लेकिन, ध्यान रखें कि अहमदाबाद जंक्शन द्वारका मंदिर से करीब 440 किमी. की दूरी पर है। हालांकि, अहमदाबाद जंक्शन काफी प्रसिद्ध रेलवे स्टेशन है और देश के लगभग 80 प्रतिशत बड़े रेलवे स्टेशनों से सीधा जुड़ा हुआ है। ‘‘राजकोट जंक्शन’’ और ‘‘अहमदाबाद जंक्शन’’ पर उतरने के बाद आपको द्वारका तक जाने-आने के लिए निजी बस और टैक्सी आदि आसानी से मिल जाती हैं।
हवाई जहाज से कैसे पहुंचे –
अगर आप द्वारका नगरी के लिए वायु मार्ग से यानी कि हवाई जहाज से जाना-आना करते हैं तो द्वारका नगरी का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पोरबंदर में स्थित है। पोरबंदर एयरपोर्ट से द्वारका की दूरी करीब 110 किलोमीटर है। यहां से द्वारका जाने के लिए निजी बस और टैक्सी बड़े ही आसानी से मिल जाते हैं।
द्वारका नगरी का दूसरा सबसे निकटतम घरेलू हवाई अड्डा जामनगर में स्थित है जो मंदिर से लगभग 137 किमी. की दूरी पर है। इसके अलावा मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जामनगर के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं। यहां से भी आपको टैक्सी या बस के द्वारा ही द्वारका पहुँचना होता है।
– अजय सिंह चौहान