अजय सिंह चौहान || उदयपुर जिले की तहसील गिरवा में जगत नाम का एक गांव है। इस गांव में ‘‘अम्बिका माता’’ का एक ऐसा मंदिर है जिसमें विराजीत माता अम्बिका राणावत राजपूतों की कुल देवी हैं। लेकिन, ये मंदिर मात्र इसीलिए प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि अपनी सुक्ष्म, सुंदर, रचनात्मक और सबसे अलग दिखने वाली नक्काशी और वास्तुकला के लिए ऐतिहासिक तथा पौराणिक महत्व की तमाम मंदिर संरचनाओं में एक विशेष स्थान और महत्व रखता है।
इस मंदिर के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि एक समय तो ऐसा भी आया कि जब यहां मुगलों की जीत तय लगने लगी तो राणावत राजपूतों ने अपनी कुल देवी के इस मंदिर की सुरक्षा करने के लिए रातोंरात इसे मिट्टी से कुछ इस प्रकार से ढंक दिया था कि मानो यहां एक पहाड़ी हो। और उसके बाद वे राजपूत यहां से पलायन कर गये।
यही कारण है कि इतनी प्रचीन और सुक्ष्म नक्काशीदार मंदिर संरचना आज भी हमारे सामने सुरक्षित रह पायी है। हालांकि, इसे मिट्टी में दबाने से पहले भी इस पर मुगलों द्वारा अक्रमण हो चुके थे। और उन आक्रमणों के दौरान इसे कई प्रकार से नुकसान भी हो चुका था। लेकिन, इसे और अधिक क्षति न हो सके इसी को देखते हुए ग्रामीणों ने इसे मिट्टी से ढंक दिया था।
माता का ये मंदिर उदयपुर शहर से पूर्व दिशा में कुराबड़ रोड पर उदयपुर से लगभग 50 से 55 किलोमीटर की दूरी पर गिरवा तहसील के जगत गांव में स्थित है। जगत गांव में स्थित होने के कारण, स्थानिय स्तर पर इसे ‘‘जगत मंदिर’’ के नाम से भी पहचाना जाता है। हालांकि, इतिहास के पन्नों में माता का ये प्रसिद्ध मंदिर ‘‘अम्बिका मंदिर’’ के नाम से ही दर्ज है।
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार माता अम्बिका का ये मंदिर 9वीं से 10वीें सदी के बीच बन कर तैयार हुआ था। जानकार मानते हैं कि शिल्पकला के नजरिये से ये मंदिर कुछ-कुछ खजुराहो के मंदिरों से मेल खाता है। इसकी इसी विशेषता के कारण इसे ‘मेवाड़ के खजुराहो’ के तौर पर भी देखा जाता है।
इतिहासकार मानते हैं कि अम्बिका मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माणकाल भले ही 9वीं से 10वीें सदी में हुआ है लेकिन, इसकी स्थापना से जुड़ा पौराणिक इतिहास इससे भी पहले का यानी द्वापर युग का है। दरअसल, जगत गांव में कुछ अन्य प्राचीन और गुप्तकालीन मंदिर भी थे जो चैथी से पांचवीं शताब्दी के आस-पास निर्मित हुए थे, और उनकी स्थापना भी संभवतः द्वापर युग में ही हुई थी।
हालांकि दसवीं शताब्दी से पहले के यानी उन सभी गुप्तकालीन मंदिरों के कई ऐतिहासिक साक्ष्य भी यहां से प्राप्त हो चुके हैं। लेकिन, उनके नष्ट होने के पीछे के कारणों में संभवतः मुगल आक्रमणों से पहले का, यानी हूणों के आक्रमणों को माना जा रहा है।
उज्जैन के कालभैरव को शराब का चढ़ावा- षडयंत्र या परंपरा? | About Kalabhairava of Ujjain
इतिहासकारों के अनुसार, जगत गांव में मुख्य रूप से ऐसे दो मंदिरों का सबसे अधिक उल्लेख होता है जिनमें से एक तो यही अम्बिका मंदिर है, जबकि दूसरा प्रमुख मंदिर 5वीं शताब्दी में निर्मित एक गुप्तकालीन मंदिर हुआ करत था। लेकिन, वो मंदिर अब पूरी तरह से नष्ट हो चुका है और प्रमाण के तौर पर केवल उसकी वेदी के अवशेष मात्र ही बचे हैं। पुरातत्वविदों का अनुमान है कि वह मंदिर संभवतः ईटों से निर्मित था। और उसी स्थान से प्राप्त एक मूर्ति को उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
जगत गांव के इस प्रमुख ऐतिहासिक अम्बिका मंदिर के बारे में इतिहासकार और पुरातत्वविदों का एक मत से यही कहना है कि इसका निर्माण 10वीं शताब्दी में हुआ था। इसके अलावा मंदिर के सभा मंडप के शिखर के भीतरी भाग में लगी अष्ठ कोणीय नक्काशी को सबसे विशेष और सबसे असाधारण माना जा रहा है, क्योंकि अन्य मंदिरों में इस प्रकार से बहुत ही कम नक्काशी देखी गई है। इसके अलावा, सभामंडप के स्तंभों पर उकेरे गये ऐसे तीन शिलालेख भी हैं जिनसे इसका इतिहास जानने में बड़ी सहायता मिलती है।
जगत गांव में स्थित इस अम्बिका मंदिर के सभा मंडप के एक स्तम्भ पर अंकित है कि इस मंदिर संरचना का निर्माणकाल विक्रम संवत 1017 वैशाख शुक्ल एक है। यानी इससे स्पष्ट होता है कि ये मंदिर सन 960 इसवी में, यानी कि 10वीं शताब्दी के मध्य में भी विद्यमान था। संभवतः यही इसका निर्माणकाल भी हो सकता है।
इसके अलावा दूसरे स्तम्भ पर विक्रम संवत 1228 फाल्गुन शुक्ल 7, यानी 3 फरवरी सन 1171 अंकित है, और उस समय के इस क्षेत्र के शासक सामंत सिंह ने देवी के इस मंदिर के लिए स्वर्ण कलश दान दिया था।
इसके अलाव अम्बिका मंदिर के तीसरे शिलालेख पर सामंत सिंह के वंशधर सिहड़देव का भी नाम अंकित है जो विक्रम संवत 1277, यानी सन 1197 का है। यानी यहां ये कहा जा सकता है कि इस मंदिर का निर्माणकाल बताये गये समय से भी अधिक लंबा चला होगा।
अम्बिका मंदिर पूरी तरह से प्राचीन नागरा वास्तु शैली में निर्मित है। संपूर्ण मंदिर संरचना सुंदर, आकर्षक और सुक्ष्म कलात्मक नक्काशीदार स्तंभों पर टिका हुआ है जिनपर कीर्तिमुख भी उकेरे गये हैं। मंदिर के गर्भगृह में बनी पीठिका पर माता अम्बिका की मूर्ति विराजित है। जबकि विग्रह पट्टिका पर विभिन्न मूर्तियां उकेरी गईं हैं जिनकी सुन्दरता देखने लायक है।
पावागढ़ के महाकाली शक्तिपीठ मंदिर में आज भी होता है दिव्य शक्ति का आभास | Pavagadh Shaktipeeth Temple
दूर से देखने पर मंदिर एक पिरामिड की भांति लगता है। आकार और ऊंचाई में ये मंदिर भले ही बहुत अधिक या भव्य नहीं है लेकिन, इसकी कलात्मक और शुक्ष्म नक्काशी ही इसकी सबसे बड़ी पहचान पहचान है। तभी तो इतिहासकारों और पर्यटकों की दृष्टि में अम्बिका मंदिर का सबसे खुबसूरत भाग इसका शीर्ष यानी ऊपरी भाग है, क्योंकि गर्भ गृह और सभा मंडप का ऊपरी और शीर्ष भाग सुक्ष्म और कलात्मक नक्काशीदार है जो अपने आप में अद्भुत भी है।
अम्बिका मंदिर के सभामंडप की दायीं और संगमरमर के पत्थर पर उकेरी गई नृत्य मुद्रा में आकर्षक, नक्काशीदार और विशालकाय गणेश जी के दर्शन होते हैं। गणेश जी की ऐसी दुर्लभ प्रतिमा संभवतः संपूर्ण राजस्थान सहीत गुजरात तथा आसपास के क्षेत्रों के किसी भी अन्य स्थान पर नहीं है।
सुरक्षा की दृष्टी से गणेश जी की इस प्रतिमा को लोहे की जाली के भीतर रखा गया है। दरअसल, खबरों के अनुसार सन 2000 में इस मंदिर से महिषासुर मर्दिनी माता की प्रतिमा चोरी हो चुकी है। और गणेश जी की इस दुर्लभ प्रतिमा का वजन अधिक होने के कारण ही संभवतः वे इसे नहीं ले जा सके होंगे।
अम्बिका मंदिर के गर्भगृह के दोनों तरफ हवा और रौशनी के लिए दो झरोखे रखे गए हैं, और ये भी स्थापत्य की दृष्टि से इस मंदिर को अन्य मंदिरों से थोड़ा अलग दर्शाते हैं। गर्भ गृह का प्रवेश द्वार बहुत महीन और कलात्मक नक्काशी से आलंकृत है। इसकी दोनों तरफ की दीवारों में बने आलों में भी देवी प्रतिमाएं विराजित हैं। सभामंड़प के स्तंभों के ऊपरी भागों में उकेरी गई कमल की आक्रतियां भी देखने लायक हैं।
मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर- कब जायें, कैसे जायें, कहां ठहरें?
अम्बिका मंदिर का एक सबसे विशेष आकर्षण और कलात्मक पहलू ये है कि इसके गर्भगृह से जल निकासी वाली नाली के मुख पर एक नारी को दर्शाया गया है, जिसके हाथों में एक मटका है और मटके के मुख से होकर निकलने वाला जल मंदिर के पीछे बने एक छोटे से मंदिरनुमा कुण्ड में जमा होता जाता है। जबकि अन्य मंदिरों में जल निकासी के स्थान पर गाय के मुख की आकृति को दर्शाया जाता है। फिलहाल इस कुण्ड में जल जमाव के साथ गंदगी का भी अंबार नजर आता है।
अम्बिका मंदिर के विभिन्न हिस्सों पर उकेरी गई मूर्तियों में महिषासुरमर्दिनी, नवदुर्गा, वीणाधारिणी, सरस्वती, नृत्य मुद्रा में गणपति, यम, कुबेर, वायु, इंद्र, तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां मौजूद है। इसके भीतरी, बाहरी तथा पीछले भागों की समस्त दीवारों पर अन्य नायक-नायिकाओं के चेहरों के भाव और शरीर की भाव भंगिमाएं इतनी खूबसूरती से उकेरी गई हैं कि खंडित अवस्था में होने के बाद भी मानो वे जीवित हो उठेगीं।
बताया जाता है कि मुगल आक्रमणों के कारण मंदिर के प्रवेश द्वार का ऊपरी भाग टूट चुका है, लेकिन, बचा हुआ निचला भाग तो आज भी आकर्षक है और इसकी आधी-अधूरी नक्काशी तो अब भी मनमोहक है। इसके अलावा, मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा कुल 52 मंदिर हुआ करते थे जो मुगल आक्रमणों की भेंट चढ़ चुके हैं। हालांकि उनमें से लगभग सभी मंदिरों के आधे-अधूरे अवशेष आज भी हैं।
मुगल आक्रमणों के कारण मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर उकेरी गई लगभग सभी कलात्मक मूर्तियां खंडित अवस्था में देखने को मिलती हैं, जिनमें से कुछ आंशिक तो कुछ आधी से अधिक खंडित हैं। हालांकि, दूर्भाग्य के साथ सौभाग्य भी कहा जा सकता है कि यह मंदिर संपूर्ण ध्वस्त होने से बच गया और आज गौरवपूर्ण इतिहास के तौर पर हमारे सामने है।
वर्तमान में यह मंदिर राजस्थान राज्य पुरातत्व और संग्रहालय विभाग द्वारा संरक्षित है और पर्यटन विभाग के सहयोग से इसमें रखरखाव और जिर्णोधार के कार्य किये जाते हैं।
यदि आप भी राजस्थान के उदयपुर में स्थित इस जगत अम्बिका माता मंदिर के लिए जाना चाहते हैं तो ये मंदिर उदयपुर शहर से पूर्व दिशा में कुराबड़ रोड पर शहर से लगभग 50 से 55 किलोमीटर की दूरी पर जगत गांव में स्थित है। जगत गांव सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है इसलिए मंदिर तक पहुंचने के लिए अपने वाहन के अलावा, बस और टैक्सी आदि भी आसानी से मिल सकती हैं। मंदिर के खुलने और बंद होने का समय सुबह 6 बजे से शाम को 7 बजे तक है। पूजा-पाठ की सामग्री मंदिर के आस-पास ही आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
स्थानीय लोगों के द्वारा नवरात्र के दोनों ही अवसरों पर यहां दुर्गा पूजा का आयोजन धूमधाम से किया जाता है। इस अवसर पर यहां स्थानीय लोगों के द्वारा परंपरागत मेला भी आयोजित किया जाता है और इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं। ऐसे में यदि आप भी यहां नवरात्र के अवसर पर आते हैं तो आपको यहां की रंगीन संस्कृति और परंपरा का एक नया अनुभव हो सकता है। पुरातत्व और इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को एक बार इस प्राचीन मंदिर के दर्शन अवश्य ही करना चाहिए।