अजय सिंह चौहान || हिमाचल प्रदेश को पर्यटन के रूप में तो दुनियाभर के लोग जानते हैं। लेकिन, वहां हमारे कुछ सबसे पवित्र और धार्मिक तीर्थ स्थान भी है जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। और आज हम जिस धार्मिक स्थान की बात करने जा रहे हैं यह कोई छोटा या साधारण महत्व का नहीं बल्कि सनातन संस्कृति के लिए सबसे पवित्र और सबसे खास महत्व रखता है। यह तीर्थ है भीमाकाली शक्तिपीठ मंदिर। भीमाकाली मंदिर 51 शक्तिपीठों में, यानी पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है।
मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती का बायां कान गिरा था। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में पड़ने वाले इसी सराहन के बारे में हमारे पुराणों और अन्य अनेकों धर्मगं्रथों में बताया जाता है कि भगवान शिव यहां ध्यान-साधना किया करते थे इसलिए इस जगह को पौराणिक ग्रंथों में शोनितपुर नगरी या शायन्त नगरी भी कहा जाता है।
माता के कई भक्त हर साल नियमि रूप से इस स्थान पर मत्था टेकने के लिए आया-जाया करते हैं। इसके अलावा इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि किसी समय में यह मंदिर मानव बलि की परंपरा का भी साक्षी रहा है। यानी किसी जमाने में यहां मनुष्यों की बलि दी जाती थी। हालांकि, 16 वीं और 17 वीं शताब्दियों के आते-आते यहां इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया था।
सबसे पहले तो आप यह जान लीजिए कि यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में स्थित है। और शिमला से इस मंदिर की दूरी लगभग 160 किलोमीटर है। यहां हम आपको यह भी बता दें कि सराहन सिर्फ एक धार्मिक स्थान ही नहीं है बल्कि यह हिमाचल प्रदेश का एक विकसित पर्यटक स्थल भी है।
क्योंकि यह स्थान हिमालय के पहाड़ी-क्षेत्र में है और शिमला शहर से भी 160 किलोमीटर दूर है इसलिए शिमला से यहां तक पहुंचने में लगभग पूरा एक दिन का समय लग ही जाता है। इसीलिए अधिकतर लोग शिमला या फिर उसके आस-पास के हिस्सों में घुम-फिर कर ही वापस आ जाते हैं।
और जो लोग पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करने में डरते हैं या जिनको ऐसे रास्तों पर यात्रा करने की आदत नहीं होती ऐसे लोग यहां चाहते हुए भी नहीं जा पाते हैं। लेकिन, जो लोग पर्यटन के साथ-साथ धार्मिक यात्राएं भी करना पसंद करते हैं और पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करने में सक्षम होते हैं ऐसे लोगों के लिए यह स्थान सबसे अधिक पसंद का और महत्व का है।
मान लीजिए कि अगर आप दिल्ली में हैं तो दिल्ली से आपको करीब 340 किलोमीटर की दूरी तय करके शिमला पहुंचना होगा। और फिर शिमला से आगे करीब 160 किलो मीटर की यात्रा करने के बाद ही आप सराहन पहुंच सकेंगे।
अगर आप चंडीगढ़ में हैं तो चंडीगढ़ से सराहन 275 किलो मीटर दूर है। लेकिन, जालंधर से सराहन करीब 350 किलो मीटर दूर है। और अगर आप लुधियाना से सराहन जा रहे हैं तो आपको लगभग 325 किलो मीटर की दूरी तय करनी होगी।
सराहन तक कैसे पहुंचे –
यहां आप ध्यान रखें कि अगर आप दिल्ली में हैं और वहां से शिमला जाना चाहते हैं तो हिमाचल रोडवेज की वोल्वो एसी की लग्जरी बसों में दिल्ली से शिमला के बीच का किराया 730 रुपये से लेकर 975 रुपये तक है। लेकिन, अगर किसी प्राइवेट आॅपरेटर की बस से जायेंगे तो उसमें आपको थोड़ा कम ही किराया लगेगा।
लेकिन, अगर आपका बजट कम से कम है तो मैं आपको सलाह दूंगा कि आप रेगूलर नाॅन ऐसी वाली रोडवेज की बसों से ही यात्रा करें। इन रेगूलर नाॅन ऐसी वाली रोडवेज की बसों में एक सीट का दिल्ली से शिमला के बीच कम से कम 445 या 450 रुपये तक का किराया लगेगा। इन बसों की सुविधा भी बहुत अच्छी और साफ-सूथरी होती है। हिमाचल रोडेज अपनी इन्हीं बसों की अच्छी सुविधा और अच्छी क्वालिटी की साफ-सुथरी सड़कों को लेकर दुनियाभर में जाना जाता है। अधिकतर विदेशी यात्री भी इन्हीं हिमाचल रोडेज की बसों में सफर करते हैं।
शिमला से सराहन तक –
शिमला से सराहन करीब 160 किलोमीटर दूर है। और शिमला के बस अड्डे पर पहुंच कर आपको सराहन जाने वाली हिमाचल रोडवेज की तमाम बसें मिल जायेंगी। इन बसों का किराया भी कम से कम 240 से 280 रुपये तक का होता है। लेकिन, अगर आप बस में जाने की बजाय किसी शेयरी जीप या फिर टैक्सी में जाना चाहें तो शिमला के बस अड्डे से ही आपको जीप या टैक्सी भी मिल जायेगी। लेकिन, ध्यान रखें कि टैक्सी का किराया थोड़ा महंगा हो सकता है।
ट्रेन से जाने के लिए –
तो जो लोग या जो यात्री ट्रेन से आना-जाना सबसे अधिक पसंद करते हैं उन लोगों के लिए यहां एक बहुत बड़ी समस्या है। क्योंकि हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए यहां हर जगह के ट्रेन की सुविधा नहीं है। इसीलिए यहां का सबसे अच्छा और सबसे सस्ता साधन हिमाचल की रोड़वेज बसें हैं।
लेकिन, अगर आप देश के किसी भी हिस्से से कालका तक ट्रेन से पहुंच जाते हैं तो कालका से आप कालका-शिमला के बीच चलने वाली टाय ट्रेन का आनंद लेते हुए शिमला तक पहुंच सकते हैं। इसके बाद शिमला से सराहन तक यानी भीमाकाली मंदिर तक सड़क मार्ग से ही यात्रा करनी होती है। शिमला से सराहन 160 किलो मीटर दूर है, इसलिए शिमला पहुंचकर आपको या तो टैक्सी लेनी होगी या फिर रोडवेज की बस।
हवाई जहाज से जाने के लिए –
अगर आप हवाई जहाज से सराहन जाना चाहते हैं तो उसके लिए भी याद रखें कि सराहन के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा जुबेरहट्टी हवाई अड्डा है जो सराहन से लगभग 175 किमी दूर है। और जुबेरहट्टी से सराहन पहुंचने में भी कम से कम 6 घंटे का वक्त लग जाता है। जुबेरहट्टी के अलावा दूसरा हवाई अड्डा जो सराहन के पास है वो है भुंतर हवाई अड्डा। भुंतर हवाई अड्डा भी सराहन से करीब 180 किमी की दूर है। इसके अलावा चंढीगड़ का हवाई अड्डा भी है लेकिन, यह और भी अधिक दूर है यानी करीब 280 किलोमीटर पर है।
सराहन में कहां ठहरें –
सराहन में आपको अपने बजट के हिसाब से मंदिर के आस-पास ही में ठहरने के लिए कई सारे होटल और धर्मशालाएं मिल जाती हैं। यहां यात्रियों के लिए या पर्यटकों के लिए ठहरने का काफी अच्छा इंतजाम देखने को मिलता है।
भीमाकाली मंदिर के आवास परिसर में ही ट्रस्ट की तरफ से काफी अच्छी व्यवस्था है। मंदिर के पास में कई सारे छोटे-बड़े निजी होटल और धर्मशालाएं है जहां आप अपने बजट के अनुसार कमरा ले सकते हैं जिसमें 1000 से 1500 रुपये तक में अच्छा कमरा मिल सकता है। लेकिन, अगर आपका बजट इससे भी कम है तो यहां बजट के अनुसार अनेकों छोटे-बड़े विश्रामगृहों की सुविधा आसानी से मिल जाती है।
इसके अलावा मंदिर के आस-पास ही में पी.डब्ल्यू.डी. सर्कीट हाउस, फाॅरेस्ट रेस्ट हाउस और श्रीखंड होटल जैसे कुछ सरकारी आवास और होटल बने हुए हैं जिनकी बुकिंग पहले से ही की जा सकती है।
सराहन जाने से पहले इस बात का खास तौर पर ध्यान रखें कि अगर आप यहां नवरात्र के दिनों में या फिर हिमाचल प्रदेश के किसी खास धार्मिक अवसर या खास त्यौहार या उत्सव के समय जाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पहले से ही होटल या फिर धर्मशाल की बुकिंग करवानी पड़ती है।
खाने-पीने की सुविधाएं –
आपको बता दें कि यहां मंदिर के आसपास विभिन्न होटलों और विश्रामगृहों में पर्यटकों या श्रद्धालुओं के लिए भोजन की अच्छी व्यवस्था है। लेकिन आप चाहे तो कम से कम या यूं कहें कि बहुत ही कम खर्च करके मंदिर ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले भोजन की व्यवस्था का भी लाभ भी ले सकते हैं। और खास तौर पर नवरात्र के दिनों में तो यहां कई लोग आम श्रद्धालुओं के लिए सेवाभाव से लंगर की सुविधाएं भी उपलब्ध कराते हैं।
सराहन का मौसम –
यहां जाने से पहले ध्यान रखें कि अगर इस यात्रा के लिए आप बच्चों और बुजुर्गों को भी साथ लेकर जाना चाहते हैं तो फिर गर्मियों के मौसम में यानि अप्रैल से नवंबर के महीनों में आराम से जा सकते हैं। क्योंकि इस दौरान यहां का तापमान 25 से 30 डिग्री तक ही रहता है जो सबसे अच्छा मौसम कहा जा सकता है। इस दौरान यहां आपको बहुत ही खुबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलेगा। इसके अलावा अप्रैल से नवंबर में यहां सुबह और शाम के समय हल्की ठंड भी महसूस होती है इसलिए कुछ हल्के-फुल्के गरम कपड़े भी लेकर जाना जरूरी होता है।
खास तौर पर ध्यान रखें कि, अगर आप नवंबर से मार्च के बीच के मौसम में यहां जाना चाहते हैं तो इस दौरान यहां का मौसम बच्चों और बुजुर्गों के अनुकुल बिल्कुल भी नहीं होता। क्योंकि, सर्दियों में बर्फबारी के कारण यहां का तापमान बहुत कम यानी 0 डिग्री या इससे भी कम हो जाता है जिसके कारण दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को यहां भारी परेशानी हो सकती है।
लेकिन, जो लोग सर्दियों और बर्फबारी के शौकीन हैं उनके लिए यहां नवंबर से मार्च के बीच का सर्दियों वाला मौसम एक एक नया अनुभव और यादगार हो सकता है। लेकिन, उसके लिए भी ध्यान रखना होगा कि अत्यधिक बर्फबारी के कारण यहां के रास्ते बंद हो जाते हैं और ऐसे में आप यहां फंस सकते हैं और आपका बजट भी बिगड़ सकता है।
सराहन की स्थानिय भाषा में हिन्दी और पंजाबी का मिला-जुला असर है इसलिए यहां हिन्दीभाषी क्षेत्रों से आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए कोई समस्या नहीं है।