भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी के विषय में माना जाता है वे मन की गति से उड़ सकते थे। यानी अगर वे इस समय अयोध्या में हैं और उन्होंने मन में सोचा कि उन्हें इसी समय श्रीलंका में पहुंचना है तो वे श्रीलंका में पहुंच चुके होते थे। उड़ने की इसी गति को मन की गति कहा जाता है। यानी सभी देवी और देवताओं के एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने या जाने की गति को मन की गति माना जाता है।
अब रही बात हनुमान जी के विषय में तो उन्हें भी एक अवतार के रूप में माना जाता है इसलिए यहां हम उनकी तुलना किसी भी मानव या मशीन से नहीं कर सकते थे। और ना ही आधुनिक युग के पास इस समय ऐसा कोई प्रमाण हैं कि उनके उड़ने की गति या रफ्तार क्या रही होगी।
बचपन में जब हम रामायण की कहानियां सुना करते थे तब हमें लक्ष्मण जी के बेहोश होने पर हनुमान जी के संजीवनी बूटी लेने जाना जाने का किस्सा भी सुनने को मिलता था जिसमें संजीवनी बूटी ना मिलने पर पूरा का पूरा पर्वत उठाकर लाने वाला किस्सा बेहद रोचक लगता था।
जिस तरह से हनुमान जी एक ही रात में श्रीलंका से हिमालय के पर्वतों पर पहुंचे? और पहाड़ उठाकर वापस भी आ गए तो निश्चित ही उनके उड़ने की क्षमता बेहद तेज रही होगी।
उनके विषय में यह भी माना जाता है कि उन्होंने एक समय सूर्य को भी निगल लिया था। और अगर सूर्य को भी निगल लिया था तो पृथ्वी से सूर्य के बीच की दूरी तो करोड़ों किलोमीटर की है। ऐसे में उनको वहां तक पहुंचने में कितना समय लगा होगा? इसका स्पष्ट प्रमाण किसी के पास नहीं है। लेकिन, हम अगर रामायण पर आधारित प्रमाणों की बात करें तो हमारे सामने सटीक और स्पष्ट प्रमाण हैं कि हनुमान जी का वेग आज के युग में उपलब्ध किसी भी मशीन से सैकड़ों गुणा अधिक रहा होगा।
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जैसा कि हनुमान जी के लिए अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता का संबोधन किया जाता है। उसके अनुसार हनुमानजी को योग की आठ सिद्धियां प्राप्त थीं। और ये आठों सिद्धियां एक प्रकार से शक्तियों के समान मानी जाती हैं। इन्हीं शक्तियों में से महिमा और लघिमा नाम की शक्तियों के माध्यम से मन के वेग या गति से उड़ा जा सकता है। ग्रंथों में बताया गया है कि हनुमान जी महिमा और लघिमा शक्तियों के बल पर ही उड़ा करते थे।
लघिमा नामक सिद्धि का उपयोग करके हनुमान प्रकाश की गति से भी तेज उड़ सकते थे। इस सिद्धि के माध्यम से वे अपने शरीर का वजन ना के बराबर कर लेते थे। इसे अगर हम वैज्ञानिक आधार पर देखें तो वहां भी प्रकाश की गति से तेज उड़ने के लिए किसी भी चीज का वजन ना के बराबर होना चाहिए।
अगर शरीर में वजन ही नहीं होगा तो शरीर पर ना तो गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव हो सकता है और ना ही किसी भी प्रकार की कोई केंद्रीय ऊर्जा ही उन्हें अपनी ओर खींच सकती थी। तो संभव है कि इसी कारण से हनुमान जी भी प्रकाश की गति से या उससे भी तेज उड़ सकते थे। शास्त्रों के ज्ञाताओं का भी यही मानना है कि हनुमान जी ने संभवतः लघिमा नाम की सिद्धि का ही प्रयोग करके लक्ष्मण की जान बचाई थी।
हमारे विभिन्न शास्त्रों और ग्रंथों के अनुसार हम भी योग द्वारा प्रथम तीन माह तक लगातार ध्यान करते हुए शरीर और आकाश के संबंध में संयम करने से लघु अर्थात हल्की रुई जैसे पदार्थ की धारणा से आकाश में गमन करने की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
हालांकि इस शक्ति को हासिल करने के लिए यम और नियम का पालन करना जरूरी है। साथ ही संयमित भोजन, वार्तालाप, विचार और मन के भावों पर ध्यान देना भी अत्यंत जरूरी होता है। और इस प्रकार के नियमों का पालन करना कम से कम इस युग के किसी भी आम आदमी के लिए तो संभव नहीं है।
- अमृति देवी