![Artificial Intelligence is just a part of eternal spiritual knowledge of hinduism](https://i0.wp.com/dharmwani.com/wp-content/uploads/2023/08/Artificial-Intelligence-and-spirituality.png?fit=1024%2C633&ssl=1)
भारत सहित पूरी दुनिया में इस समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता को लेकर चर्चा हो रही है। चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि भविष्य में इसके क्या नफा-नुकसान हो सकते हैं? इस संबंध में कुछ लोगों का मानना है कि इससे नफा कम नुकसान अधिक होगा तो कुछ लोगों का मानना है कि धीरे-धीरे अधिकांश गतिविधियां एआई पर निर्भर होती जायेंगी और इससे बड़े व्यापक स्तर पर बेरोजगारी बढ़ेगी।
दुनिया के तमाम देशों का यह कहना है कि आर्टिफिशियल का स्वरूप भविष्य में कितना और कैसा होना चाहिए, इस मामले में भारत दुनिया का नेतृत्व करे। वैसे भी, भारत कभी भी कृत्रिम बुद्धि पर आश्रित नहीं रहा है क्योंकि भारत भूमि ज्ञान एवं अध्यात्म की भूमि रही है। अध्यात्म एवं ज्ञान के मामले में भारत ने पूरी दुनिया का नेतृत्व किया है। ऐसे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है।
हमें इस विशय पर आगे बढ़ने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि ईश्वरीय शक्ति या सृष्टि द्वारा रचित यह मानव मस्तिष्क बुद्धिमत्ता के वरदान को अकल्पनीय व रहस्यमयी क्षमताओं से सुसज्जित किये हुए और अपने में समेटे हुए है जबकि कंप्यूटर या कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानव द्वारा निर्मित ही है।
भारत की यदि साहित्यिक व्याख्या की जाये तो ‘भा’ का मतलब है प्रतिभा यानी ज्ञान, ‘रत’ का मतलब है उसमें रमे रहना यानी ज्ञान पाने की इच्छा में रत रहना। अनादि काल से ही अंतरात्मा की गहराई में डूबकर ज्ञान प्राप्त करना भारतीयों के स्वभाव में रहा है। प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने धर्म, अध्यात्म एवं ज्ञान के माध्यम से पूरे विश्व में भारत का मान बढ़ाया है। पूरी दुनिया भौतिकवाद की आंधी में चाहे जितना भी बह ले, किंतु भारत की आत्मा धर्म, अध्यात्म एवं ज्ञान को न तो नकारा जा सकता है और न ही किसी कीमत पर झुठलाया जा सकता है।
सृष्टि द्वारा रचित मानव में अपार क्षमताएं हैं। मानव की क्षमताओं का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मानव मस्तिष्क का उपयोग आज तक प्रतिशत में दो अंकों को भी पार नहीं कर पाया है। अभी तक तीन प्रतिशत से ज्यादा मस्तिष्क का उपयोग मात्र आइंस्टीन ने किया है, वह भी मात्र साढ़े तीन प्रतिशत किंतु भारत के ऋषियों-मुनियों ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान से प्रकृति द्वारा रचित जटिलताओं को न सिर्फ जाना-पहचाना है, बल्कि उनका चिंतन-मनन कर उन्हें ग्रंथों में परिवर्तित किया है। जो आज तक अकाट्य हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि प्राचीन काल में पूरे विश्व का ज्ञानवर्धन भारत द्वारा किया जाता रहा है। रामायण एवं महाभारत काल में उपयोग किये गये अस्त्रों को आज नये तरीके से परिष्कृत कर विश्व द्वारा उन्हें आधुनिकतम हथियारों का नाम दिया जा रहा है।
जिस देश ने मन की गति से चलने वाले पुष्पक विमान की चर्चा सुनी हो, वहां जब लोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और उसके उपयोग की बात सुनते हैं या कल्पना करते हैं तो शरीर कांप उठता है क्योंकि यह न केवल मानव जाति को पंगु बनाने का, बेरोजगार करने का, उपभोक्ता बनाने का, मशीनों के अधीनस्थ करने आदि का एक अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र नजर आता है जिसमें केवल अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां अपनी अर्थ लोलुपता के कारण मानव जाति के अस्तित्व को ही दांव पर लगा रही हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बात की जाये तो यह केवल उन्हीं सब बातों का संकलन करती है जो उनमें डाली जायें और उसके बाद स्वतः ही जमा-घटा, गुणा-भाग, संभावनाएं, व्यावहारिकताओं इत्यादि को जोड़-तोड़कर अपना निर्णय सुनाती हैं, जबकि अध्यात्म के माध्यम और ज्ञान की शक्ति से शास्त्रीय आधारित चिंतन-मनन कर जो मन बोलता है, उसे परफेक्ट निर्णय कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो मानव मन-मष्तिष्क इंटेलिजेंस की पराकाष्ठा है व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तो केवल उसका अंश मात्र है। एआई का क्षेत्र भले ही दिन-प्रतिदिन व्यापक होता जा रहा है किंतु इसकी विश्वसनीयता बढ़ने के बजाय घटती ही जा रही है।
उदाहरण के तौर पर अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में एक प्रोफेसर ने अपने छात्रों को रिसर्च से संबंधित कुछ काम दिया, किंतु उस प्रोफेसर ने सभी छात्रों को अनुत्तीर्ण कर दिया, क्योंकि कापियों की जांच करते समय प्रोफेसर को लगा कि छात्रों ने एआई की मदद से अपना काम पूरा किया है। प्रोफेसर साहब को एआई की मदद से किये गये कार्य सटीक एवं सत्यता की कसौटी पर खरेे नहीं लगे, इसलिए उन्होंने छात्रों को अनुत्तीर्ण करने का निर्णय लिया।
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एक दूसरी घटना के अंतर्गत अमेरिका में एक साफ्टवेयर डेवलपमेंट कंपनी ने कोई साफ्टवेयर डेवलप करने के लिए टीम लीडर को तीन महीने में डेवलप करने का टारगेट दिया। कंपनी की तरफ से टीम लीडर को 150 लोगों को सहायक के रूप में दिया गया किंतु टीम लीडर ने समय से बहुत पहले ही साफ्टवेयर डेवलप कर बाॅस को दे दिया और टीम लीडर को लगा कि कंपनी उनकी बहुत तारीफ करेगी। बाॅस ने जब टीम लीडर से पूछा कि इतनी जल्दी साफ्टवेयर कैसे डेवलप हो गया तो टीम लीडर ने कहा कि इस साफ्टवेयर को एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा डेवलप किया गया है। उसी दिन उनके बाॅस ने टीम लीडर एवं उस टीम के 150 ईमानदार सहयोगियों को स्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
इसका सीधा सा आशय यह है कि एआई चाहे कितना भी उपयोगी क्यों न हो जाये, किंतु हर किसी को अपना सब कुछ ओरिजिनल काम ही चाहिए। एक और घटना के अंतर्गत अमेरिका में 100 बड़े कंपनियों के सीईओ की बैठक हुई, जिसमें एआई के बारे में विस्तार से चर्चा की गई, जिसमें से 46 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि एआई के द्वारा मानवता के समाप्त होने की संभावना है।
एआई की उपयोगिताा, विश्वसनीयता एवं प्रामााणिकता को इस बात से भी परखा जा सकता है कि जब कोई अपने बच्चों की कंप्यूटर से जन्म कुंडली निकलवाता है तो उसमें से अधिकांश लोगों का कहना होता है कि अभी तो हमने अस्थायी तौर पर कंप्यूटर से जन्म कुंडली निकलवा लिया है किंतु बाद में किसी विद्वान व्यक्ति से अच्छे से बनवा लेंगे यानी यह बात सभी को पता है कि कंप्यूटर से जन्म कुंडली निकल तो गयी है किंतु उसकी प्रामाणिकता या सटीकता की कोई कसौटी नहीं है अनुभव, चिंतन, सोच, दूरदृष्टि रहित है। मानो तो भी ठीक, न मानो तो भी ठीक। इस प्रकार यदि देखा जाये तो ऐसी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बदौलत विश्वसनीय कार्य नहीं किये जा सकते हैं।
एआई के चाहे जितने भी लाभ बताये जायें किंतु उन लाभों की तुलना में एक ही नुकसान एआई की विश्वसनीयता को तार-तार कर रख देगा। उदाहरण के तौर पर एआई की मदद से यदि किसी महिला की फोटो से छेड़छाड़ कर उस फोटो का दुरुपयोग होने लगे और एआई की मदद से बनी गलत या यूं कहें कि अश्लील फोटो के द्वारा महिला को ब्लैकमेल किया जाने लगे तो उसकी भरपाई कैसे हो सकती है? इस प्रकार की घटनाएं अभी शिकायती तौर पर शासन-प्रशासन की नजर में भले ही अधिक न आ पा रही हों किंतु इस प्रकार का खेल शुरू हो चुका है और ऐसी वारदातें यदा-कदा देखने-सुनने को मिलने लगी हैं।
आयोध्या में निर्माणाधीन प्रभु श्रीराम मंदिर के संदर्भ में जिस प्रकार के तर्क एवं जानकारी परम पूज्यनीय संत श्रीराम भद्राचार्य जी ने दी थी, क्या वह एआई दे सकती है, कदापि नहीं? क्योंकि एआई वही जानकारी दे सकती है जो इंटरनेट पर जगह-जगह पड़ी हो और जिसका वह संग्रह कर सके। आनलाइन सिस्टम में जो जानकारी छूट जायेगी, उसका संग्रह एआई के द्वारा नहीं किया जा सकता है। परम पूज्य श्रीरामभद्राचार्य जी देख नहीं सकते हैं किंतु उनके मन-मस्तिष्क में अथाह ज्ञान का भण्डार है, इतना ज्ञान एकत्रित करना क्या एआई के वश की बात है? कदापि नहीं।
आज एआई के माध्यम से लोगों के मकान, दुकान, आफिस एवं अन्य जानकारियां भले ही मोबाइल एवं अन्य आधुनिक उपकरणों में कैद हैं किंतु हमें एक बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हमारी नजर में सारी जानकारियां सिर्फ हमारे पास भले ही हैं किंतु जिनकी नजर में यह सब कुछ है यानी एआई जिसे कोई न कोई तो संचालित कर ही रहा है, यदि उसकी नीयत खराब हुई तो क्या होगा? यानी जो कुछ आप की नजर में गोपनीय है, वास्तव में वह गोपनीय नहीं है, आप की गोपनीय जानकारी किस-किस की नजर में है, आप को इसकी तनिक भी जानकारी नहीं है।
आज पूरी दुनिया में यदि डाटा चोरी की बात की जाती है तो उसकी चर्चा अनायास ही थोड़े ही होती है। इससे बड़ी बात यह है कि यदि वैश्विक स्तर पर किसी अनचाहे तकनीकी कारण से आप की सभी जानकारियां उड़ जायें तो क्या होगा? क्योंकि आज का समाज आफलाइन यदि 10 प्रतिशत है तो आन लाइन 90 प्रतिश्त है।
कुछ वर्षों पूर्व तक तमाम लोगों को अधिकांश संख्या में फोन नंबर याद रहा करते थे किंतु जैसे-जैसे तकनीकी सुविधाएं बढ़ती गयीं और दिमाग का काम कम होता गया, वैसे-वैसे लोगों की याददाश्त कमजोर होती गई। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि आनलाइन चाहे जितना भी हो जाये किंतु आफलाइन तो रहना ही होगा, भले ही उसका प्रयोग नाम मात्र का हो।
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तकनीकी खामियों की वजह से या यूं कहें कि किसी खतरनाक वाइरस की वजह से यदि पूरे का पूरा आनलाइन सिस्टम एक बार भले ही ध्वस्त हो जाये किंतु परम पूज्य श्री रामभद्राचार्य जी के मस्तिष्क में जो ज्ञान एवं जानकारियां अंकित हैं, कोई भी खतरनाक वाइरस उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता। ऐसे मुसीबत के वक्त पूज्यनीय श्री रामभद्राचार्य जैसे विद्वान लोग ही राष्ट्र एवं समाज को अपने ज्ञान के माध्यम से उबारने का कार्य करेंगे। वैसे भी मानव मस्तिष्क का अभी तक मात्र 3.5 प्रतिशत ही उपयोग हो पाया है। कल्पना की जाये कि जिस दिन मानव मस्तिष्क का उपयोग मात्र दस प्रतिशत ही हो जाये तो क्या एआई का उसके सामने टिकना संभव हो पायेगा?
जिस देश के ऋषि-मुनि, संत-महात्मा एवं विद्वान पशु-पक्षियों, जानवरों, नदियों, पहाड़ों, झरनों एवं सृष्टि के समस्त जीवों की बोली-भाषा और व्यवहार समझते थे, उस देश में एआई की चर्चा तो फिजूल की बात है। हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने अध्यात्म एवं ज्ञान की बदौलत बाढ़, सूखा, आंधी, तूफान आदि की संभावनाओं को न सिर्फ जाना-पहचाना है बल्कि उसे रोकने एवं उसकी दिशा मोड़ने का भी काम किया है तो क्यों न हम अपनी भावी पीढ़ी को धर्म, अध्यात्म एवं ज्ञान के दम पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दें।
एआई की मदद से बिना चालक के कार-मेट्रो, ट्रेन या और कुछ भले ही चला लिया जाये किंतु उसे संभालने के लिए मानव मस्तिष्क की ही जरूरत होगी। मशीनों पर अधिक निर्भरता के कारण अभी मजदूरों एवं कामगारों की छंटाई भले ही कर ली जाये किंतु ये सब स्थायी रहने वाला नहीं है। उदाहरण के तौर पर कोरोनाकाल को लिया जा सकता है। एक वाइरस से लड़ने में जब सारी मशीनें एवं आधुनिक उपकरण फेल हो गये तो भारतीय सभ्यता-संस्कृति में अनादि काल से ही रचे-बसे पुराने तौर-तरीकों को ही अपना कर कोरोना को मात दी जा सकी। भारतीय सभ्यता-संस्कृति के पुराने ज्ञान एवं जानकारी यदि किसी को नहीं रही होती तो क्या होता? रोबोट भले ही सब काम कर दे किंतु वह किसी व्यक्ति के दुख-तकलीफ, भावनाओं एवं संवेदनाओं को कैसे समझ सकता है?
किसी आपातकालीन तकनीकी खामी की वजह से यदि कहीं 15 दिन तक लगातार बिजली की सप्लाई ही नहीं हो पाये तो क्या ऐसी स्थिति में एआई की किसी प्रकार की उपयोगिता रह जायेगी? ऐसी स्थिति में व्यक्ति का अनुभव और उसका मन-मस्तिष्क ही कारगर होगा। यह सब लिखने का मेरा आशय मात्र यह है कि जब हम जानते हैं कि स्थायी रूप से हमारे लिए क्या ठीक है तो हमें उसी राह पर चलना चाहिए। एआई की मदद से बनी फिल्में एवं चित्रण मनोरंजन के लिए तो ठीक हो सकती हैं किंतु उसमें वास्तविक इमोशन या भावनाओं का समावेश कैसे होगा? अभी के दौर में कृत्रिम बुद्धि की दौड़ इंसानी बुद्धि पर भले ही भारी पड़ती हुई दिख रही हो किंतु इससे समग्र दृष्टि से सचेत रहने की आवश्यकता है।
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आज कहा जा रहा है कि एआई कुछ मामलों में बेहद लाभदायक है किंतु जहां तक मेरा मानना है कि भारत में कोई भी ज्ञान ऐसा नहीं है जिसके बारे में हमारे ऋषियों-मुनियों एवं विद्वानों ने न बताया हो। किस मौसम में कौन सी फसल बोई जाये और क्या खाया-पिया जाये और कैसे रहा जाये, यह सभी भारतीयों को पता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एआई की जरूरत पूरी दुनिया को भले ही हो किंतु भारत में उसकी आवश्यकता न के बराबर है। गूगल मैप के माध्यम से लोगों को रास्ते की जानकारी भले ही मिल जा रही है किंतु कभी-कभी गूगल मैप गलत रास्ते पर भी पहुंचा देता है और कभी-कभी तो जानकारी दे ही नहीं पाता किंतु त्रेता युग में जामवंत ने हनुमान जी को श्रीलंका का रास्ता समुद्र के किनारे बैठकर बता दिया था।
आध्यात्मिक ज्ञान में आत्मा की अजर-अमर एवं अविनाशी होने की व्याख्या की गई है। इसके मायने यह होते हैं कि जितनी भी आत्माएं सशरीर इस पृथ्वी पर हैं इससे कहीं अधिक शरीर रहित आत्माएं इस ब्रह्मांड में निरंतर विचरण करती रहतीं हैं, जिनका ज्ञान आध्यात्मिकता से ही अनुभव किया जा सकता है। इसे ही पारलौकिक दुनिया के नाम से जाना जाता है जो कि पृथ्वी लोक की दुनिया से कहीं अधिक बड़ी और व्यापक है जिनमें देवी-देवता, राक्षस इत्यादि वास कर रहे हैं। आज की इस एआई का किसी भी प्रकार से किसी भी रूप में इस ज्ञान से लेना-देना नहीं है। शायद, इस प्रकार का डेटा न तो एआई के द्वारा बनाया जा सकता है और न तो उपलब्ध कराया जा सकता है और न ही उपयोग करने वालों को महसूस कराया जा सकता है।
हालांकि, मानव द्वारा निर्मित इस एआई की उपयोगिता, त्वरितता, आवश्यकता, समय की बचत इत्यादि गुणों को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि यह मान कर कि जितनी भी यह है उतनी तो है लेकिन सब कुछ तो नहीं है। फिर भी इसके उपयोग पर वर्गीकरण कर नियम-कानून बनाकर, अंकुश लगाकर एवं निगरानी रख कर इसको नियंत्रण में रखना ही होगा तभी इसकी कुछ सार्थकता को हम स्थापित कर पायेंगे वर्ना यह खुले शेर की भांति कभी भी, कहीं भी कुछ भी पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है।
आसमान में सेटेलाइट, उड़ते हुए हवाई जहाज, पटरी पर दौड़ती मेट्रो आदि कृत्रिम मेधा के नियंत्रण में हैं। घर में साफ-सफाई से लेकर खाना बनाना, दरवाजा खोलना-बंद करना, टीवी आन-आफ करना, चैनल बदलना, एसी चालू-बंद करना, टीवी आन-आफ करना आदि सारे काम भले ही एआई पर आधारित होते जा रहे हैं किंतु तकनीकी कमी के कारण किसी भी मुसीबत के वक्त अपनी ही यानी मानव बुद्धि ही काम करती है।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि जो बुद्धि हर स्थिति में कार्य करे और कारगर रहे उसी पर भरोसा करना ज्यादा उचित है। वैसे भी एआई जब हमारे आध्यात्मिक ज्ञान का अंश मात्र ही है तो हम अंश मात्र की जगह ‘पूर्ण’ की तरफ चलें। इसी में भारत सहित पूरे विश्व का कल्याण है। आज इस बात पर यकीन भले ही ज्यादा लोग न करें किंतु एक न एक दिन भारत के आध्यात्मिक ज्ञान की तरफ पूरी दुनिया को आना ही होगा और उसमें एआई भी शामिल होगी, इसके अलावा अन्य कोई रास्ता भी नहीं है।
– सिम्मी जैन
दिल्ली प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य- भाजपा, पूर्व चेयरपर्सन – समाज कल्याण बोर्ड- दिल्ली, पूर्व निगम पार्षद (द.दि.न.नि.) वार्ड सं. 55एस।