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अष्टविनायक मंदिरों में श्री मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर का स्थान सबसे प्रथम माना गया है। यह मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर मोरेगांव में स्थित है।
अजय सिंह चौहान || उत्तर भारत के बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि भगवान् गणेश के ऐसे आठ अति प्राचीन शक्तिपीठ मंदिर भी हैं जो पौराणिक काल में स्थापित हुए थे और आज भी विध्यमान हैं। भगवान् गणेश जी को अष्टविनायक भी कहा जाता है अर्थात- “आठ गणपति”। और अष्टविनायक जी के ये मंदिर (Ashtavinayak Temples in Maharashtra) महाराष्ट्र राज्य के पुणे में स्थित हैं। पुणे के समीप स्थित अष्टविनायक के ये सभी आठ पवित्र मंदिर मात्र 20 से लगभग 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं।
इन अष्टविनायक मंदिरों (Ashtavinayak Temples in Maharashtra) का पौराणिक महत्व और इतिहास हमारे लिए सबसे विशेष कहा जा सकता है, क्योंकि इन सभी मंदिरों में विराजित गणेश की प्रतिमाएँ स्वयंभू मानी जाती हैं, यानी ये सभी प्रतिमाएं यहां स्वयं प्रगट हुई हैं। सभी मंदिरों की प्रतिमाएं मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं।
‘अष्टविनायक’ के ये सभी आठ मंदिर अत्यंत प्राचीन बताये जा रहे हैं। इन सभी का विशेष उल्लेख गणेश पुराण और मुद्गल पुराणों में भी मिलता है। ये पुराण सनातन धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों का समूह हैं। इन आठों गणपति धामों की यात्रा अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के नाम से जानी जाती है।
![Ashtavinayak Temples Tour in Maharashtra](https://i0.wp.com/dharmwani.com/wp-content/uploads/2023/09/Ashtavinayak-Temples-Tour-in-Maharashtra.png?resize=449%2C260)
इन मंदिरों के बारे में कहा जाता है कि भगवान विनायक आज भी इन सभी विनायक मंदिरों में साक्षात् उपस्थित हैं। आधुनिक काल में पेशवा मराठा साम्राज्य शासक के सहयोगियों के समर्थन के कारण इन आठ मंदिरों ने दुनियाभर में लोकप्रियता हासिल की थी।
इन सभी आठों मंदिरों में विराजित भगवान् गणेश जी की पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही “अष्टविनायक की दर्शन यात्रा” भी की जाती है, जिसमें अष्टविनायक दर्शन की शास्त्रोक्त क्रमबद्धता कुछ इस प्रकार है-
1. मयूरेश्वर या मोरेश्वर – मोरगाँव, पुणे
2. सिद्धिविनायक – करजत तहसील, अहमदनगर
3. बल्लालेश्वर – पाली गाँव, रायगढ़
4. वरदविनायक – कोल्हापुर, रायगढ़
5. चिंतामणी – थेऊर गाँव, पुणे
6. गिरिजात्मज अष्टविनायक – लेण्याद्री गाँव, पुणे
7. विघ्नेश्वर अष्टविनायक – ओझर
8. महागणपति – राजणगाँव
इन मंदिरों में से पुणे जिले में पांच विनायक मंदिर (मोरगाँव, थेऊर, रांजणगांव, ओज़र, लेन्याद्री) हैं, जबकि दो रायगढ़ जिले (महद, पाली) में और एक अहमदनगर जिले (सिद्धटेक) में स्थित हैं।
![Ashtavinayak Temples_Maharashtra](https://i0.wp.com/dharmwani.com/wp-content/uploads/2023/09/Ashtavinayak-Temples_Maharashtra.png?resize=640%2C386)
अष्टविनायक यात्रा (Ashtavinayak Temples in Maharashtra) करने के लिए एक जो विशेष पौराणिक मान्यता और पूर्व-निर्धारित क्रम निर्धारित किया हुआ है, लेकिन आजकल समय और धन के खर्च को कम करने के लालच में इस पूर्व-निर्धारित क्रम का बहुत ही कम लोग पालन करते हैं।
इनमें से श्री मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर (Moreshwar Temple) का स्थान सबसे प्रथम माना गया है। यह मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर मोरेगांव में स्थित है। यह गणेश जी की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है। मोरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। इस मंदिर के चार द्वार हैं जो चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं।
![VARAD VINAYAK__Ashtavinayak Temples_Maharashtra](https://i0.wp.com/dharmwani.com/wp-content/uploads/2023/09/VARAD-VINAYAK__Ashtavinayak-Temples_Maharashtra.png?resize=640%2C428)
मंदिर के द्वार पर गणेश जी के पिता यानी भगवान् शिव के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है, इस नंदी का मुंह भगवान गणेश की ओर है। नंदी की मूर्ति के संबंध में यहां प्रचलित मान्यताओं के अनुसार एक बार शिवजी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तब से लेकर आज तक नंदी यहीं स्थित है। नंदी और मूषक, दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में तैनात हैं।
मंदिर में गणेशजी बैठी हुई मुद्रा में विराजमान हैं तथा उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र दर्शाये गए हैं।
मान्यताओं के अनुसार मोरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया गया था। गणेशजी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था। इसी कारण यहां स्थित गणेशजी को मोरेश्वर कहा जाता है।
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