
यह बात बिल्कुल सच है कि “पाकिस्तान हो, बांग्लादेश हो, अफगानिस्तान हो या भारत के शांतिप्रिय लोग। ये सभी कुरान और हदीस के अनुसार चलते हैं। इनमें कोई अंतर नहीं है।” लेकिन ये भी सच है कि भविष्य पुराण में जो हिंदुओं के लिए लिखा गया है ठीक उसी धर्म पर आज ये अरब के लोग पालन कर रहे हैं। जबकि हमारे समाज सुधारकों ने हमको वो सब दकियानूसी बताकर हमसे छुड़वा दिया है। जबकि अधिक से अधिक संतान पैदा करना, धर्म विरोधी राजा के विरुद्ध और धर्म के लिए सड़क पर उतरने का आदेश भी हमारे इसी पुराण और मनुस्मृति में है।
भले ही हमारे पुराणों में अरब के समाज जैसी कोई भी अनावश्यक और अधिक महिला विरोधी बातें नहीं हैं, लेकिन हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि यह हमारी ही गलतियां हैं जिसके कारण आज वे लोग हमारे महिला समाज को दूषित करते जा रहे हैं और हम आधुनिकता के नाम पर उसको स्वीकार भी करते जा रहे हैं। लेकिन यह भी ठीक है कि म्लेच्छों ने ठीक उसी का अनुसरण किया और आज भी कर ही रहे हैं जो हमारे पुराण हमें शिक्षा देते हैं। तभी तो वे सड़क पर उतर कर अपने धर्म के लिए लड़ रहे हैं।
भविष्य पुराण सहित अन्य पुराणों में भी सनातन धर्म की महिलाओं के लिए किसी न किसी पुरुष की छत्रछाया में रहने और कभी भी कहीं भी अकेले न छोड़ने का स्पष्ट आदेश है। जबकि हमने तो उसको दकियानूसी मान लिया और महिलाओं को अकेला छोड़ दिया। नतीजा देख ही रहे हैं। लेकिन उन विधर्मी लोगों ने समाज सुधारकों को नहीं माना और आज भी वे अपनी महिलाओं को बुर्के में ढंक कर रख रहे हैं। उनकी महिलाएं भी उससे खुश हैं। असल में पुराणों में भी लिखा है कि महिलाओं को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। पुराण धर्म का पालन मुस्लिम तो अच्छे से कर रहे हैं लेकिन हमने उसी को नकार दिया। अर्थात वे आज हमारे ही धर्म का पालन करने में हमसे बहुत आगे हैं।
सनातन समाज की महिलाओं को आधुनिक पश्चिमवादी समाज सुधारकों और मानवाधिकारों के नाम पर कुछ इस प्रकार से भ्रमित कर दिया गया है कि उल्टा आज हमारे समाज के पुरुष ही उनसे सबसे अधिक प्रताड़ित हो रहे हैं। जबकि उनका पश्चिमी समाज जिसे हम घटिया मानते हैं खुद उनके ही पुरुष आज भी उसी अत्याचारी मानसिकता का पालन करते हुए अपने समाज की महिलाओं को कैद किए हुए हैं और वहां कोई ऐसा सुधारक नजर भी नहीं आता जैसा आज वे हमारे यहां कर रहे हैं।
जब से मैने स्वयं ही पुराणों का अध्ययन शुरू किया है, मैं हतप्रभ हूं कि वर्तमान में हमारे समाज ने हमारी जिन प्राचीन और पौराणिक प्रथाओं को बेकार समझ कर हमने नकार दिया है, अरब के मुस्लिम और पश्चिम के समाज ने हमारी उन्हीं पौराणिक प्रथाओं को ठीक वैसा का वैसा ही अपना लिया है और फिर हम उन्हीं पर हंस भी रहे हैं। जबकि ये सारी प्रथाएं तो हमारी ही हैं। ऐसे में मैं दावे के साथ ये कह सकता हूं कि उन परंपराओं को पुनः स्वीकार करने में आज हमें कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
– अजय चौहान