
अजय सिंह चौहान || सनातन हिन्दू धर्म में बैंगन का सेवन का निषेध बताया गया है। वायु पुराण में लिखा है की श्राद्ध के दिनों में तो बैंगन बिलकुल भी नहीं खाना चाहिए और यदि खाना भी हो तो श्राद्ध-पूजा में इसका भूलकर भी भोग न लगाएं। बेंगन का घरेलूकरण या सब्जी के रूप में इस्तमाल प्राचीन काल में ही शुरू हो चुका था इसीलिए इसका उल्लेख हमें पुराणों में भी देखने को मिलता है। यही कारण है कि धार्मिक ग्रंथों में हिन्दू पूजा-पाठ और मंदिरों आदि सात्विक और धार्मिक स्थानों पर बैंगन को निषेध बताया गया है।
बैंगन के सेवन का निषेध इसमें पाए जाने वाले सोलानाइन जैसे इसके राजसिक गुणों से जुड़ा है। सोलानाइन एक ग्लाइकोएल्कलॉइड है जो एक प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में कार्य करता है और पौधे को हानिकारक कीटों और जानवरों से बचाता है। यही इसके राजसिक गुण भी हैं और यही कारण है कि बैंगन में हमें राजसिक गुणों का वैज्ञानिक रूप से भी तथ्य देखने को मिलता है। लेकिन साधारण जीवनचर्या और स्वस्थ की दृष्टि से देखें तो बेंगन एक संतुलित आहार का हिस्सा बन सकता है।
प्राचीन नाम और सांस्कृतिक संदर्भ –
बैंगन को अंग्रेजी में eggplant या brinjal कहा जाता है। मूलतः यह दक्षिण एशिया में पाए जाने वाला एक जंगली पौधा है। प्राचीन भारत में बैंगन को vartaka या vrntaka कहा जाता था, जो संस्कृत से निकला है। आधुनिक भारतीय भाषाओं में यह बैंगन या बैगन के रूप में जाना जाता है, जो द्रविड़ भाषाओं से इंडो-आर्यन भाषाओं में आया। संस्कृत में इसे ‘वाटिंगन’ या ‘वार्ताकी’ भी कहा गया। मार्कण्डेय पुराण में बैंगन को ‘अवांछनीय वस्तुओं’ की श्रेणी में रखा गया है। जबकि रामायण सहित अन्य धर्म ग्रंथों जैसे बौद्ध और जैन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है।
आयुर्वेद में भी बैंगन को इसके गुणों के कारण राजसिक भोजन माना जाता है, क्योंकि यह मूलतः इसकी प्रकृति तामसिक है इसलिए इसके सेवन से पेट में अग्नि, आक्रामकता और जुनून आदि को उत्तेजित करता है। इसके इन्हीं गुणों के कारण योद्धाओं के लिए युद्ध से पहले विशेष तौर पर बेंगन खाने और खिलाने की शिफारिश की जाती थी।
बैंगन में प्राप्त अवगुणों के कारण पौराणिक ग्रंथों में इसको एक तामसिक और अशुद्ध सब्जी बताया गया है और द्विजों को, विशेषकर ब्राह्मणों को इससे परहेज करने की सलाह दी गई है। हालाँकि आयुर्वेद सहित कुछ अन्य धर्मशास्त्र में इसकी जड़ों को औषधीय या सुरक्षात्मक गुणों के लिए उपयोगी भी बताया गया है।
हिन्दू धर्म में महत्व और निषेध –
सनातन के धर्मशास्त्रों में विशेषकर आध्यात्मिक अवसरों पर बैंगन को अशुद्ध और अशुभ माना जाता है । यही कारण है कि कुछ शास्त्रों में इसे भगवान शिव को नहीं चढ़ाने की सलाह भी दी जाती है। बैंगन प्राकृतिक रूप से तामसिक या राजसिक प्रवत्ति और गुण होने के कारण एकादशी जैसे व्रतों में भी वर्जित बताया गया है, क्योंकि इसका सेवन करने के बाद व्यक्ति का तन और मन दोनों उत्तेजित प्रवत्ति को प्राप्त करने लगता है।
हालाँकि, कुछ रूढ़िवादी हिन्दू परिवार इसे विदेशी सब्जी मानकर खाते हैं, लेकिन इसकी उत्पत्ति का मूल भारतीय भू-भाग पर ही हुआ है। जैन धर्म में बैंगन से परहेज इसलिए है क्योंकि इसमें अनगिनत बीज होते हैं, जिन्हें अनंत जीव माना जाता है। हिन्दू परंपराओं में भी यह प्रतीकात्मक रूप से अशुद्धता का प्रतीक है। लेकिन फिर भी, भारत के कई स्थानों पर मूल व्यंजनों में इसको “सब्जियों का राजा” कहा जाता है और परंपरागत सांबर, दाल, करी जैसे व्यंजनों में इसका खूब इस्तेमाल होता है।
बैंगन के वैज्ञानिक तथ्य –
वैज्ञानिक नज़रिये से बैंगन एक पौष्टिक सब्जी, फल या बेरी माना गया है, जो विज्ञान की भाषा में “नाइटशेड परिवार” की श्रेणी में आता है जिसे सोलनेसी (Solanaceae) भी कहा जाता है। विज्ञान की भाषा में सोलनेसी एक फूल वाले पौधों का परिवार होता है जिसमें लगभग 2,700 प्रजातियाँ शामिल की गई हैं। जैसे आलू, बैंगन, टमाटर और मिर्च आदि भी शामिल हैं, हालाँकि इस श्रेणी की प्रजातियों में कुछ पौधे जहरीली भी होते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, बैंगन कम कैलोरी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसीलिए सामान्य यह स्वास्थ्य के लिए यह फायदेमंद है। वैज्ञानिकों के अनुसार बैंगन में कुछ मात्रा में निकोटीन या तंबाकू जैसा तत्व भी पाया जाता है। बैंगन में करीब 92% मात्रा में पानी और 5.88 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.53 ग्राम चीनी, 3 ग्राम फाइबर आदी होता है।
बैंगन को गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है इसलिए यह एक बारहमासी पौधा है और इसकी फसल 60 दिनों में फल देने लगाती है। लेकिन अधिकतर इसको वार्षिक रूप से उगाया जाता है। वर्तमान में बैंगन का उत्पादन वैश्विक स्तर पर लगभग 55 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक बताया जाता है।