![Buldozar in action of Yogi Adityanath in Uttar Pradesh](https://i0.wp.com/dharmwani.com/wp-content/uploads/2022/05/Buldozar-in-action-of-Yogi-Adityanath-in-Uttar-Pradesh.png?fit=720%2C402&ssl=1)
एक तरफ बुलडोजर से जहां अपराधियों एवं माफियाओं के हौंसले पस्त हो रहे हैं और कानून का राज स्थापित करने में मदद मिल रही है वहीं भारत की राजनीति में कुछ लोग बुलडोजर का नाम सुनते ही ऐसे भड़क जा रहे हैं जैसे लाल कपड़ा देखकर सांड़ भड़क जाता है। अपने देश में एक बहुत ही प्राचीन कहावत प्रचलित है कि ‘सांच को आंच क्या’ यानी जो व्यक्ति बिल्कुल सही रास्ते पर है उसे किस बात का डर? डरें वे जिन्होंने कोई गलत कार्य किया है।
उत्तर प्रदेश में तो बुलडोजर कानून का पालन करवाने के मामले में एक कारगर हथियार के रूप में साबित हो रहा है। दाल-रोटी सबकी चलती रहनी चाहिए किन्तु कहीं भी खाली जमीन मिले, उसे घेर लें इस प्रकार की प्रवृत्ति से तो पूरे देश में अराजकता छा जायेगी। एक बार जब किसी जमीन पर कब्जा हो जाता है तो उसे खाली करवा पाना इतना आसान नहीं होता है। जमीन को खाली कराने के लिए जब सरकारी अमला जाता है तो लोग जाति एवं धर्म की दुहाई देकर प्रताड़ित करने का आरोप लगाने लगते हैं।
आज देश के महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक में फुटपाथों पर इतना अतिक्रमण हो चुका है कि लोगों को पैदल चलने का रास्ता नहीं मिल पाता है। रोहिंग्या एवं बांग्लादेशी घुसपैठिये आकर सरकारी जमीनों पर ऐसे बस जाते हैं जैसे देश कोई धर्मशाला हो। घुसपैठियों की वजह से आज दिल्ली सहित देश के कई शहर बारूद के ढेर पर हैं परंतु जब इनके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है तो तमाम सेकुलर दल छाती पीटकर मातम मनाने लगते हैं। सही मायनों में देखा जाये तो देश में कोई भी विभाग ऐसा नहीं है, जिसकी जमीन पर अतिक्रमण न हुआ हो।
भारत का पुनर्निर्माण चल रहा है
कैग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में 2.05 लाख हेक्टेयर सरकारी भूमि अतिक्रमण की शिकार थी। यह स्थिति जून 2017 तक की थी। जितनी भूमि पर अतिक्रमण था, वह कुल सरकारी जमीन के सात प्रतिशत के बराबर थी। इसी प्रकार रेलवे, वन विभाग, रक्षा क्षेत्र सहित तमाम विभागों की जमीनों पर अतिक्रमण हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि कुछ लोग बुलडोजर की कार्रवाई को मानवाधिकारों का उल्लंघन बता रहे हैं तो ऐसा कौन सा उपाय है जिससे सरकारी जमीनों को अतिक्रमण से मुक्त कराया जाये और लोगों को सड़कों पर आने-जाने में कोई असुविधा न हो। राजनीतिक कारणों से तमाम विपक्षी दल अतिक्रमण की कार्रवाई का विरोध कर हायतौबा मचाने लगते हैं।
घुसपैठिये किसी के लिए मददगार एवं मतदाता हो सकते हैं किन्तु जब वे किसी आपराधिक वारदात को अंजाम देकर बांग्लादेश या म्यांमार चले जाते हैं तो उनकी जिम्मेदरी कौन लेगा? मेरा तो व्यक्तिगत रूप से मानना है कि अतिक्रमण को रोकने एवं हटाने के लिए बुलडोजर एक निहायत ही कारगर उपाय है, इस पर किसी भी रूप में रोक नहीं लगनी चाहिए। बुलडोजर से जिनको डर है, वे अपनी आदतों में सुधार करें, न कि बुलडोजर का विरोध।
– जगदम्बा सिंह