अमृति देवी | छत्तीसगढ़ को आज एक समृद्ध प्राचीन स्मारकों, उत्तम नक्काशीदार मंदिरों, महलों, राॅक पेंटिंग्स, बौद्ध स्थलों दुर्लभ वन्यजीवन, गुफाओं और पहाड़ी पठारों वाले पर्यटन क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है। छत्तीसगढ़, आज ना सिर्फ भारत के सबसे प्राचीन सभ्यता वाले राज्यों में माना जाता है, बल्कि, आज यह प्राकृतिक आकर्षक और विविधता वाले राज्यों में से एक राज्य भी बन चुका है।
छत्तीसगढ़ के नाम के विषय में कहा जाता है कि इस क्षेत्र में ऐसे 36 अलग-अलग प्राचीन गढ़ यानी किले हैं जिनके कारण इसे यह नाम दिया गया। जबकि इससे पहले, यानी प्राचीन काल में इस क्षेत्र को दक्षिणी कौसल साम्राज्य के नाम से जाना जाता था।
लेकिन, छत्तीसगढ़ की पहचान मात्र इतनी ही नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण क्षेत्र आज भी ‘शाक्त संप्रदाय’, यानी शक्ति और मातृरूप का भी प्रतीक है। तभी तो यहां आदि-अनादि काल में स्थापित शक्तिपीठ मंदिरों के अलावा भी माता के ऐसे अनेकों सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं जो उस काल के साक्षी हैं।
दरअसल, शाक्त संप्रदाय की मान्यताओं में आदि तत्व को शक्ति, यानी मातृरूप मानने की सामाजिक मान्यता और परंपरा है, और उसके अनुसार ही सनातन, यानी हिंदू धर्म में नारी को पूजनीय माना जाता है।
शाक्त संप्रदाय में खासतौर पर माताओं और कुवांरी बालिकाओं को सबसे पवित्र और बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। इसके अलावा इसमें सर्वशक्तिमान को ही स्त्री या देवी माना जाता है।
‘शाक्त सम्प्रदाय’ सनातन हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख सम्प्रदायों – शैव, वैष्णव और शक्त में से एक है, और आदि शक्ति यानी देवी की उपासना और पूजा करने वाला यह सम्प्रदाय ‘शाक्त सम्प्रदाय’ कहलाता है।
छत्तीसगढ़ में ‘शाक्त सम्प्रदाय’ से संबंधित अनादि और प्राचीन काल से लेकर मध्य युगिन इतिहास तक, अनेकों महान राजाओं और राजवंशों की जन्मस्थली तथा कर्मस्थली रही है। तभी तो यहां ऐसे अनेक प्रतापी राजा और महाराजा हुए हैं जो विद्वान, प्रजापालक, शक्तिशाली, और देवी उपासक थे।
छत्तीसगढ़ में आज भी उस दौर के ऐसे अनेकों सिद्ध और प्रसिद्ध देवी मंदिर हैं जिनकी स्थापना को लेकर अलग-अलग प्रकार की चमत्कारिक गाथाओं का उल्लेख तथा किंवदंतियां और पौराणिक साक्ष्य भी उपलब्ध हैं।
इन देवी मंदिरों से संबंधित अनेकों राजा-महाराजाओं को उनकी कुलदेवियों के द्वारा समय-समय पर मार्गदर्शन और विशेष आशिर्वाद तथा शक्तियां प्रदान करने से लेकर युद्ध क्षेत्रों में रक्षा करने तक के अनेकों किस्से और कहानियां पढ़ने और सुनने को मिल जाते हैं।
इसके अलावा यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई प्रकार के देवी प्रकोपों से बचने और बचाने के लिये पूजा-अर्चना किये जाने की प्रथा का भी प्रमुखता से उल्लेख मिलता है। आज भी यहां के अनेकों स्थानों के नामों को इन देवियों के उस दौर के चमत्कारों से जोड़ कर देखा जाता है और महत्व दिया जाता है।
छत्तीसगढ़ के ना सिर्फ राजघरानों में, बल्कि, ग्रामीण क्षेत्रों के आम और साधारण जनजीवन में भी इन देवियों का महत्व कम नहीं है। तभी तो यहां के हर गांव और कस्बे में देवी को ‘ग्राम देवी‘ विशेष दर्जा देकर पूजा जाता है।
पारिवारिक हो या फिर सामाजिक, यहां के हर प्रकार के शुभ अवसरों पर ‘ग्राम देवी‘ को आदर पूर्वक न्योता देने की प्रथा का पालन किया जाता है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में भुखमरी, महामारी, अकाल या अन्य किसी भी प्रकार की आपदा के समय में विशेष तौर पर ग्राम देवी की पूजा-अर्चना की जाती है।
छत्तीसगढ़ के लोगों का मानना है कि उनके के पारिवारिक तथा सामाजिक सुख-दुखः में इन देवियों की पूजा-अर्चना करने से उनकी तमाम बाधाएं दूर हो जाती जाती हैं और उनका जीवन सदैव आत्मशक्ति से भरपूर रहता है।
कई गावों में तो आज भी इन ग्राम देवियों की पूजा-पाठ के दौरान पशु बलि दिये जाने की परंपरा देखी जाती है। इसके अलावा न सिर्फ किंवदंतियों में बल्कि यहां के प्राचीन साहित्य में इन ग्राम देवियों को नर बलि दिये जाने का भी उल्लेख मिलता है।
छत्तीसगढ़ में वैसे तो अनगिनत देवी मंदिर हैं, जो प्राचीनकाल में स्थापित किये गये थे, जिनमें से डोंगरगढ़ में देवी बमलेश्वरी मंदिर, चंद्रपुर में देवी चंद्रहासिनी मंदिर, महासमुन्द जिले में खल्लारी माता मंदिर, रायपुर में देवी महामाया मंदिर और दंतेवाड़ा में देवी दंतेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर स्थित हैं। इसके अलावा यदि यहां के उन तमाम प्राचीन और प्रसिद्ध देवी मंदिरों की सूची दी जाये तो संभवतः उनकी संख्या सैकड़ों में हो सकती है। उनमें से कुछ ऐसे देवी स्थान भी हैं जो प्रमुख शक्तिपीठों में माने जाते हैं।