अजय सिंह चौहान || उत्तराखण्ड राज्य के उत्तर काशी में स्थित गंगोत्री धाम सनातन धर्म के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थान है और उत्तराखण्ड की छोटा चार धाम के पवित्र चार धामों में से एक तीर्थ स्थान है। यह स्थान इस सृष्टि के आरंभ से ही सनातन धर्म के कई साधू-संतों और सन्यासियों की तपस्या स्थली रहा है और आज भी है। इसलिए अगर आप लोग भी गंगोत्री धाम की यात्रा पर जाना चाहते हैं तो आज मैं आप लोगों को इस लेख के माध्यम से बताऊंगा कि किस तरह से और कैसे आप लोग भी गंगोत्री धाम की इस यात्रा पर सड़क मार्ग के द्वारा, बहुत ही कम खर्च में और आसानी से जा सकते हैं।
तो सबसे पहले तो हम सब के मन में एक ही बात आती है कि इस यात्रा की असली शुरूआत कहां से होती है और अपने कम से कम बजट के हिसाब से हमें कब जाना चाहिए या किस मौसम में इस यात्रा पर जाना चाहिए ताकि ज्यादा खर्च ना करना पड़े। वहां क्या-क्या दिक्कतें आ सकती हैं, और उन दिक्कतों से बचने के लिए आप वहां अपने साथ क्या-क्या सामान लेकर जा सकते है। इसके अलावा इस यात्रा का अनुमानित खर्च कम से कम कितना हो सकता है। खाने-पीने का खर्च कितना लग सकता है, कहां रूकना सबसे अच्छा रहेगा, वगैरह-वगैरह….।
यहां हमें यह भी अच्छी तरह से जान लेना चाहिए कि किसी भी यात्रा में खर्च करने की कोई सीमा नहीं होती। हालांकि, हमारा खर्च का ये अनुमान अनुभवों के आधार पर है। और यहां हम कम से कम खर्च की बात कर रहे हैं। लेकिन, ध्यान रखें कि समय और घटनाओं के आधार पर खर्च कम या अधिक होता रहता है। इसलिए आपके अपने बजट या हमारे अनुमान से भी कहीं अधिक खर्च हो सकता है। इसलिए कोशिश करें कि आप अपने साथ बजट से भी अधिक खर्च के आधार पर पैसा या साधन रखने का प्रयास करें।
सबसे पहले तो हम बात करते हैं कि अगर आप देश के किसी भी भाग में रहते हैं और आप गंगोत्री धाम की यात्रा पर जाना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले आपको आना होता है हरिद्धार। हरिद्वार देश के सभी हिस्सों रेल और सड़क मार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है इसलिए यहां तक आने या जाने में कोई परेशानी नहीं होती।
तो सबसे पहले तो ध्यान रखना होगा कि अगर आप हरिद्वार में दोपहर तक या फिर शाम तक भी पहुंच जाते हैं तो यहां आप रात गुजार सकते हैं। और यहां से अगली सुबह ही इस गंगोत्री धाम की या फिर इन चारों ही धामों में से किसी भी धाम की यात्रा का आरंभ करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हरिद्वार से होकर ही यहां से इन धामों का रास्ता जाता है। इसीलिए हरिद्वार को छोटा चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यहां से आगे की यात्रा में आपको लगातार ऊंचे-नीचे पहाड़ी रास्तों पर लगभग 10 से 11 घंटे का, यानी पूरे एक दिन का सफर करना पड़ता है। हरिद्वार से इसकी यानी गंगोत्री धाम की दूरी लगभग 280 किलोमीटर की है।
यह स्थान, यानी गंगोत्री धाम समुद्रल से लगभग 10,200 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां गंगोत्री धाम में मुख्यरूप से भागीरथी नदी के तट पर गंगा मईया का एक भव्य मंदिर बना हुआ है। मान्यताओं के अनुसार यह पवित्र मंदिर स्थान ही गंगा नदी का उद्गम स्थान है। इसलिए हर साल मई से अक्टूबर के बीच यहां इसी मंदिर में दर्शन करने और भागीरथी नदी में डुबकी लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु देशभर से यहां आते हैं। इसके अलावा यहां का प्राकृतिक सौंदर्य मन मोह लेता है। जबकि दिपावली के बाद यहां मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
इसके लिए सबसे पहले तो मैं आपको बता दूं कि अगर आप लोग भी इस यात्रा के लिए निकल रहे हैं तो ध्यान रखें कि यहां के, यानी उत्तराखण्ड के चारों ही धामों में यानी यमुनोत्री, गंगोत्री केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम में या फिर यहां तक जाने वाले सभी रास्तों में किसी कंपनी के मोबाईल का नेटवर्क आसानी से मिल जाता है। चाहे फिर वो प्रिपेड नंबर हो या फिर पोस्टपैड नंबर हो। यानी आप यहां इस यात्रा के दौरान किसी कंपनी का मोबाईल नंबर या सिमकार्ड इस्तेमाल कर सकते हैं।
तो सबसे पहले तो ध्यान रखें कि अगर आप गंगोत्री के लिए रोडवेज की बस से जाना चाहते हैं तो उसके लिए आपको हरिद्वार के बस अड्डे से उत्तराखंड रोडवेज की बसें मिलती हैं। लेकिन उसके लिए इस बात का भी ध्यान रखें कि हरिद्वार के बस अड्डे से सुबह-सुबह कुछ चुनिंदा बसें ही यहां के लिए जाती हैं। और इसके लिए भी आपको हरिद्वार के बस अड्डे से एक या दो दिन पहले ही टिकट बुक करना पड़ता है।
और क्योंकि यह रास्ता काफी लंबा है और इसको तय करने में पूरा एक दिन लग जाता है इसलिए यहां से गंगोत्री धाम के लिए सीधे बस सेवा में बहुत ज्यादा बसें नहीं हैं। लेकिन, अगर यात्रियों ने यहां पहले से बुकिंग करवा रखी हो और ये बुकिंग एक या दो बसों की सवारी से भी ज्यादा की हों तो फिर यहां उन यात्रियों की सुविधा के लिए बसों की संख्या भी बढ़ा दी जाती है।
और अगर हम बात करें हरिद्वार के बस अड्डे से गंगोत्री धाम के लिए जो रोडवेज बस का किराया है उसकी तो यह किराया लगभग 350 रुपये के आसपास है।
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लेकिन अगर आपको बस की सवारी नहीं मिल पाती है तो यहां से शेयरिंग में चलने वाली प्राइवेट टेक्सी और जीप की सवारी भी मिल जाती है। या फिर मिनी बस की सुविधा भी मिल जाती है। हालांकि इन सुविधाओं का किराया बस की तुलना में कुछ ज्यादा ही होता है। इसके अलावा अगर आपका बजट ठीक-ठाक है तो आप यहां से पर्सनल टेक्सी भी बुक कर सकते हैं।
इसके लिए छोटी टेक्सी जैसे इंडिका या डिज़ायर जैसी 4 सीटों वाली टेक्सी का किराया आने और जाने का लगभग 6 हजार या 6,500 तक के आस-पास हो सकता है। इसमें कुछ मोलभाव या बारगैनिंग भी किया जा सकता है। यानी अगर आप 4 सदस्य हैं तो इसमें आपको 6,500 रुपये टेक्सी का आने-जाने का किराया देने पर हर सदस्य के हिस्से में लगभग 1,600 रुपये आता है। यानी एक तरफ का किराया माने तो यह लगभग हर सदस्य के हिसाब से 8,00 रुपये तक लगता है।
और अगर आप, अपने परिवार के साथ या फिर दोस्तों के साथ हैं या फिर आपके ग्रुप मेंबरर्स की संख्या 5 या 6 है तो यहां आप टवेरा या फिर ज़ायलो जैसी 6 सीटों वाली बड़ी टेक्सी भी बुक कर सकते हैं। और इसका किराया भी यही कोई 9 हजार के लगभग हो जाता है। यानी अगर आप कुल 6 सदस्य हैं तो इसमें भी आपके आने-जाने का किराया लगभग हर सदस्य के हिसाब से 15 सौ रुपये या इससे भी कुछ कम या ज्यादा हो सकता है।
इसमें ध्यान रखने वाली सबसे खास बात होती है कि यहां चलने वाली इन टेक्सियों के नियमों के हिसाब से किसी भी टेक्सी की बुकिंग 587 किलोमीटर तक के सफर तक के लिए ही होती है। और अगर आप ने 587 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा कर ली तो आपको उसके लिए छोटी कार का 10 प्रति किलोमीटर के हिसाब से और बड़ी टेक्सी के लिए 15 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से अधिक राशि देनी होगी।
अगर आपके ग्रुप मेंबरर्स की संख्या 10 या 12 है या फिर इससे भी ज्यादा है तो फिर आपको यहां से टेम्पो ट्रैवलर जैसी मिनी बस की बुकिंग करना चाहिए। और इसके लिए भी यहां हरिद्वार के बस अड्डे पर या फिर ऋषिकेश में भी कई सारी निजी टेªवल एजेंसी के बुकिंग काऊंटर बने हुए हैं।
लेकिन अगर हम बात करें सबसे सस्ते या सबसे कम खर्च में इस यात्रा की तो उसके लिए सिर्फ और सिर्फ रोडवेज की बसों से ही इसकी सुविधा उपलब्ध होती है और यह सुविधा आपको हरिद्वार के बस अड्डे से ही मिलती है। और इसके लिए आपको एक या दो दिन पहले ही टिकट बुक करवानी होगी। क्योंकि अगर आप वहां उसी दिन पहुंचकर टिकट बुक करवाने की सोचेंगे तो हो सकता है कि बस में सीटें खाली ना होने के कारण आपको यह सुविधा ना मिल पाये।
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इसके अलावा यह भी ध्यान रखना है कि ये बसें यहां से सुबह-सुबह लगभग 5 या फिर 6 बजे ही यहां से, यानी हरिद्वार के बस अड्डे से गंगोत्री धाम के लिए निकल लेतीं हैं। और जैसा कि मैंने पहले ही बताया है कि इन बसों में किराया लगभग-लगभग 350 के आसपास होता है।
तो इन बसों का जो रूट है उसके अनुसार हरिद्वार से निकलकर ये बसें चंबा, टिहरी, उत्तरकाशी जैसे कुछ प्रमुख शहरों से होते हुए गंगोत्री धाम तक पहुंचती हैं। इस रास्ते में आपको प्रकृति के बहुत ही मनमोहक दृश्य देखने को मिलते हैं। इन रास्तों पर पड़ने वाले सभी छोटे-बड़े शहरों में आपको खाने-पीने की सारी सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं।
अगर आप चाहे तो सीधे गंगोत्री धाम ना पहुंच कर रात को ठहरने के लिए रास्ते में आने वाले किसी भी छोटे या बड़े शहर में रात गुजार सकते हैं। इसमें अधिकतर यात्री तो यही करते हैं कि उत्तरकाशी में ही रात को ठहरना पसंद करते हैं। हालांकि इसकी जरूरत नहीं होती है और अगर आप हरिद्वार से सुबह-सुबह निकलते हैं तो शाम को लगभग 4 या 5 बजे तक गंगोत्री धाम तक आसानी से पहुंच सकते हैं और वहां भी रात को ठहर सकते हैं।
गंगोत्री धाम पहुंचने के बाद यात्री यहां पवित्र भागीरथी नदी में स्नान करते हैं। यह वही भागीरथी नदी है जो आगे जाकर गंगा नदी कहलाती है। इसमें स्नान के बाद श्रद्धालुजन यहां से जल लेकर जाते हैं और पास ही में बने हुए प्राचीन मंदिर में जल अर्पित कर करते हैं और पूजन-दर्शन करते हैं।
गंगोत्री धाम का यह मंदिर रात को लगभग 9 बजे तक ही खुला रहता है। उसके बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। इसके अलावा दोपहर में भी 2 बजे से 3 बजे तक इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
अगर आप गंगोत्री धाम में एक या दो दिन अतिरिक्त रूकना चाहते हैं तो यहां गंगोत्री धाम के पास ही में लगभग 1.5 (डेढ) किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसी गुफा भी है जिसे पांडवों की गुफा कहा जाता है। आप यहां भी जा सकते हैं। लगभग डेढ किलोमीटर की यह दूरी आपको पैदल चल कर ही पार करनी होती है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने यहां आकर इस गुफा में कुछ समय बिताया था और तपस्या भी की थी।
अगर आप गंगोत्री में रात को ठहरना चाहते हैं तो उसके लिए यहां कई सारे निजी होटल बने हुए हैं। लेकिन यहां आने से पहले एक खास बात का ध्यान रखना होगा कि यहां मई और जून के महीनों में भीड़ बहुत ही ज्यादा ही हो जाती है इसलिए इन होटलों में कमरों के किराये भी बहुत ज्यादा ही हो जाते हैं।
और उसके बाद जैसे-जैसे यहां भीड़ कम होने लगती है इनके किराये भी कम हो जाते हैं। यानी मई और जून के महीनों में यहां जिस एक कमरे का किराया लगभग 5 या 6 हजार रुपये तक भी हो सकता है उसी कमरे का किराया आपको बाकी के दिनों में यानी भीड़ कम होने पर कम से कम 1 हजार या उससे भी बहुत कम किराये में मिल जायेगा। इसके अलावा यहां गढवाल विकास मंडल के गेस्ट हाऊस भी बने हुए हैं जिनकी बुकिंग पहले से ही करवाई जा सकती है।
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गंगोत्री धाम में खाने-पीने की काफी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं और किसी भी प्रकार की कोई खास परेशानी नहीं देखने को मिलती। कम से कम बजट वाले यात्रियों के लिए भी यहां अच्छा से अच्छा खाना-पीना मिल जाता है। हालांकि मैदानी इलाकों के मुकाबले यहां हर चीज थोड़ी महंगी ही होती है। लेकिन, फिर भी आपको यहां एक व्यक्ति के लिए एक दिन में चाय-नाश्ता, दोपहर का खाना और फिर रात के खाने-पीने के लिए कम से कम 500 से 600 रुपये में ठीकठाक खाना-पिना मिल जाता है।
तो गंगोत्री में दर्शन करने के बाद, अगर आप रात को गंगोत्री में नहीं ठहरना चाहते हैं तो फिर आप उसी दिन शाम को वहां से वापस भी निकल सकते हैं और वापसी में लगभग 100 किलोमीटर आने के बाद उत्तरकाशी में भी रात को ठहर सकते हैं।
उत्तरकाशी एक बड़ा शहर है और जिला मुख्यालय भी है इसलिए यहां आपको बजट के अनुसार छोटे या बड़े, महंगे या सस्ते हर प्रकार के होटल और खाने-पीने की सुविधाओं के अलावा अन्य प्रकार की सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं। यहां रात को ठहने के लिए कम से कम 1 हजार रुपये से लेकर 1500 रुपये तक में ठीक-ठाक किराये वाला कमरा मिल जाता है। लेकिन ध्यान रखने वाली बात है कि यहां भी या फिर इस यात्रा में कहीं पर भी आपको मई और जून के महीनों में यानी भीड़भाड वाले समय में किसी भी प्रकार के कमरे का किराया बहुत महंगा ही मिलेगा।
लेकिन, अगर आप रात को गंगोत्री में ही रूकते हैं और पहाड़ों में ट्रेकिंग करने के शौकिन हैं, या फिर पहाड़ों में लगातार 2 या 3 दिनों तक पैदल चल सकते हैं तो फिर आपके लिए यहां एक बहुत ही अच्छा मौका है कि आप यहां से 18 किलोमीटर आगे जाकर यानी गौमुख जाकर दर्शन करें। और इसके लिए यहां से यानी गंगोत्री से 2-3 दिनों का पैदल टैªकिंग का एक बहुत ही अच्छा अनुभव हो सकता है। क्योंकि गौमुख तक जाने और आने में कम से कम 2 दिन तो लग ही जाते हैं।
गौमुख की यात्रा पर जाने से पहले खास तौर से ध्यान रखें कि अपने साथ एक अच्छी क्वालिटी का रैन कोट यानी बरसाती, एक टाॅर्च, गरम कपड़े, कुछ जरूरी दवाईयां और कुछ हल्का-फुल्का खाना-पीना भी साथ में लेकर जरूर जायें। और गौमुख की यात्रा पर यानी पैदल टैªकिंग पर जाने से पहले ध्यान रखना होगा कि यहां जाने वाले रास्ता इतना आसान नहीं होता है जितना की एक आम आदमी सोच कर चलता हैं। दूसरी बड़ी बात ध्यान रखना होता है कि गंगोत्री से गौमुख के बीच मोबाईल फोन भी ठीक से काम नहीं कर पाता है।
तो सबसे पहले तो गौमुख की यात्रा पर जाने से पहले यहां डीएफओ से यानी उत्तरकाशी के डिस्ट्रीक्ट फाॅरेस्ट आफिसर से रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है, उसके बाद ही आपको गौमुख तक जाने की अनुमति मिलती है। इसमें भी ध्यान रखने वाली बात यह है कि गौमुख जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी यहां एक दिन में सिर्फ 150 लोगों को ही यहां अनुमति मिल पाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक बहुत ही दुर्गम और खतरनाक पहाड़ी क्षेत्र है। इसलिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं होता है।
इस यात्रा में पैदल चलते समय जरा सी चूक हो जाने पर गहरी खाई में गिर सकते हैं, जिसके कारण कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है। इसके अलावा इस रास्ते में गौमुख से लगभग 12 किलोमीटर तक आगे जाने के बाद एक गीला पहाड़ नाम का बहुत ही खतरनाक और डरावना सा दिखने वाला पहाड़ पार करना पड़ता है।
गीला पहाड़ की मिट्टी और पत्थर कभी भी यहां से निकलने वाले यात्रियों का रास्ता रोक देते हैं या फिर यात्रियों के ऊपर इसका मलवा गिर सकता है। इस गीला पहाड़ के पास से निकलते वक्त यात्रियों को बिना रूके चलते रहना होता है और जितना जल्दी हो सके यहां ये पार करना होता है।
यहां ध्यान देने वाली बात होती है कि अगर गौमुख जाने के लिए अकेले हैं या फिर आपके साथ एक या दो या फिर 5 या 10 लोग हैं, यानी जितने भी लोग होते हैं कोशिश करनी चाहिए कि साथ मिल कर ही इस रास्ते पर चलें। क्योंकि यहां के इन सूनसान पहाड़ी रास्तों में और घने जंगलों में ऊंचे-ऊचे देवदार के पेड़ों, झरनों, नदियों और छोटे-बड़े पत्थरों के अलावा और कुछ भी नजर नहीं आता।
अगर कुछ नजर आता भी है तो आप के साथ या आपके आगे या पीछे चलने वाले इक्का-दूक्का यात्री। इसके अलावा वहां के इस पैदल रास्ते में दूर-दूर तक कोई भी नजर नहीं आता। लेकिन, यहां यह भी देखने को मिल जाता है कि कई बार कुछ यात्री ऐसे भी होते हैं जो एक दम अकेले ही इस यात्रा में आये होते हैं और निडर होकर इस यात्रा को पूरा करते हैं।
क्योंकि इस यात्रा में आपके साथ गंगा मईया के प्रति आपकी सच्ची श्रद्धा, आपका विश्वास और मां गंगा का आशीर्वाद होता है। तभी तो यहां जाने वाले यात्रियों को किसी भी प्रकार की कोई बड़ी परेशानी नहीं होती। इस रास्ते में कब बारिश शुरू हो जाये कहा नहीं जा सकता, लेकिन आपको आगे की ओर चलते ही रहना होता है।
चार धाम यात्रा पर जाने से पहले कुछ जरूरी सुझाव | Char Dham Yatra
इस गीला पहाड़ को पार करने के बाद लगभग 4 किलोमीटर और आगे जाने पर एक मुख्य पड़ाव मिलता है जिसका नाम है भोजबासा। गंगोत्री से भोजवासा तक पहुंचने में लगभग 7 से 8 घण्टे का वक्त तो लग ही जाता है।
गौमुख की यात्रा पर जाने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए भोजबासा में गढवाल विकास मंडल की ओर से गढवाल विकास मंडल का एक गेस्ट हाऊस बना हुआ है। इस गेस्ट हाऊस में यात्रियों की सुविधा और रात को ठहरने के लिए और खाने-पीने के लिए एक छोटे रेस्टारेंट की सुविधा भी है। इसके लिए यहां लगभग 300 से 400 रुपये में बहुत ही अच्छी सुविधा मिल जाती है।
यहां तक आने वाले यात्री रात को इस स्थान पर विश्राम करते हैं और अगली सुबह अपनी दूसरे दिन की इस पैदल यात्रा में यहां से आगे की यात्रा शुरू कर देते हैं और यहां से लगभग 4 किलोमीटर और आगे, यानी गौमुख के लिए निकल लेते हैं।
गौमुख वही स्थान है जहां से पवित्र गंगा नदी का जन्म हुआ है। गौमुख पहुंचकर और यहां पूजन-दर्शन करने के बाद यात्री यहां से जितना जल्दी हो सके वापस गंगोत्री के लिए निकल लेते हैं। क्योंकि शाम तक आपको इस 18 किलोमीटर के रास्ते को पार करना पड़ता है।
लेकिन अगर कोई यात्री एक बार फिर से भोजवासा में रात को ठहना चाहें तो ठहर सकते हैं। और अगर कोई यात्री यहां से और आगे यानी, तपोवन के लिए भी जाना चाहे तो जा सकते हैं। लेकिन, अधिकतर श्रद्धालु यहां से वापसी में सीधे गंगोत्री के लिए निकल लेते हैं।
तपोवन वही पवित्र तीर्थ स्थान है जहां हजारों वर्षों से सनातन धर्म के कई महान साधू-संतों और महान ऋषियों तथा मुनियों ने अपने जीवनकाल में सैकड़ों वर्षों तक कठोर तप किया और वही सिलसिला आज भी यहां देखा जा सकता है। यानी महान ऋषियों और सन्यासियों के लिए यह आज भी तप और ध्यान साधना का एक प्रमुख केन्द्र है।
तपोवन में आज भी कई साधू-संत हमेशा, हर मौसम में तपस्या करते हुए पाये जाते हैं। तपोवन यहां गौमुख से भी लगभग 6 किलोमीटर आगे है और यहां तक पहुंचना किसी आम व्यक्ति के बस की बात नहीं है। तपोवन तक पहुंचने के लिए कई छोटे-बड़े ग्लेशियरों को पार करके वहां तक जाना होता है। जबकि कई लोग तो वहां तक जाने-आने में रास्ता ही भटक जाते हैं।
और क्योंकि यह अत्यधिक ऊंचाई वाला स्थान है और यहां आॅक्सिजन की कमी महसूस होती है और सुविधाएं भी इतनी अच्छी नहीं होती हैं। इसके अलावा यहां बारिश भी अक्सर होती रहती है, ठंड भी बहुत ज्यादा रहती है, जिसके कारण मैदानी इलाके से आने वाले यात्रियों के लिए यहां बीमार होने का खतरा बना रहता है।