नीदरलैंड (Netherlands) के 2023 के आम चुनावों में विवादास्पद, कट्टर दक्षिणपंथी और इस्लाम विरोधी नेता, राजनेता गीर्ट वाइल्डर्स (Geert Wilders) की फ्रीडम पार्टी (PVV) ने अप्रत्याशित रूप से जोरदार जीत दर्ज की है और अब वे देश के अगले प्रधानमंत्री होंगे। इस जीत के बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं हैं। भारत के उन हिन्दुओं में भी उनकी इस जीत को लेकर बहुत अधिक ख़ुशी है जो अपने मूल सनातन धर्म का पालन करते हैं और किसी भी तथाकथित हिंदूवादी राजनेता, पार्टी अथवा किसी भी तथाकथित हिंदूवादी संगठन आदि से जुड़े हुए नहीं हैं।
दरअसल, सारी दुनिया के नेता और राजनीतिक पार्टियों सहित भारत की तथाकथित हिंदूवादी भाजपा सरकार स्वयं भी जब नूपुर शर्मा मामले में हिन्दुओं के गले कटने पर मौन रही और उलटा नूपुर शर्मा को ही प्रिंज एलिमेंट कहकर उससे किनारा कर लिया था ऐसे में हज़ारों किलोमीटर दूर नीदरलैंड से सिर्फ नूपुर शर्मा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिन्दुओं और सनातन धर्म के पक्ष में जो आवाज़ उठी थी वो थी राजनेता गीर्ट वाइल्डर्स की। यही कारण है की हिन्दुओं ने खासकर सनातन धर्म के पालन करने वाले हिन्दुओं ने गीर्ट वाइल्डर्स की इस जीत पर अपनी ख़ुशी जाहि की है और उन्हें बधाइयाँ दी हैं।
हालाँकि देखा जाय तो हिन्दुओं के लिए आज भी वही स्थिति है। क्योंकि हिन्दुओं के वोटों से बनी तथाकथित हिंदूवादी राजनीतिक पार्टी के किसी भी नेता ने गीर्ट वाइल्डर्स (Geert Wilders) को न तो बधाई दी है और ना ही उनकी कोई खबर भारत के मीडिया में दिखाई जा रही है।
ख़बरों के अनुसार, जीत पक्की होते ही पूरे यूरोप के दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी नेता इस कट्टर-दक्षिणपंथी गीर्ट वाइल्डर्स राजनेता को बधाई देने के लिए दौड़ पड़े। गीर्ट वाइल्डर्स वही हैं जिन्हें उनकी प्रसिद्ध फायरब्रांड बयानबाजी के लिए डच का ट्रम्प भी कहा जाता है।
ख़बरों के अनुसार, गीर्ट वाइल्डर्स (Geert Wilders) के सार्वजनिक रूप से ऐसे कई व्यक्त विचार हैं जिसमें मुस्लिम कट्टरपंथ को आतंकवाद से जोड़ना और मस्जिदों और कुरान पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान शामिल है। उनके कुछ भाषण और बयान तो इतने उत्तेजक हैं कि कई बार उनको धमकियाँ भी मिल चुकी हैं और सन 2004 से वे कड़ी पुलिस सुरक्षा में हैं।
ख़बरों के अनुसार, कट्टरपंथियों ने गीर्ट वाइल्डर्स को कानूनी तौर पर भेदभाव भड़काने का दोषी ठहराया था, हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया और 2009 में उन्हें यूके में प्रवेश से मना कर दिया गया।
– राजेंद्र रंजन, पटना