देवों के देव, यानी भगवान महादेव, अपने दिव्य एवं चमत्कारी शिवलिंग के रूप में जिस स्थान पर भी विराजमान हुए हैं, वह स्थान सनातन हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति में सदा-सदा के लिए 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में सबसे प्रसिद्ध और पवित्र स्थान बन गये हैं।
भगवान शिव के ऐसे ही 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग को इन प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में अंतिम यानी 12वें ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त है।
घुश्मेश्वर महादेव का यह ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से करीब 11 किलोमीटर दूर है।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
दरअसल, शिवमहापुराण के अनुसार, यह ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव की परम भक्त रही एक घुश्मा नाम की युवती की भक्ति का परिणाम है, और उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुश्मेश्वर पड़ा था।
शिवमहापुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का विस्तार से वर्णन मिलता है। शिवमहापुराण के अनुसार घुश्मेश्वर में आकर शिव के इस स्वरूप के दर्शन करने से श्रद्धालुओं की सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के विषय में शिवमहापुराण की कथा के अनुसार भारत के दक्षिण प्रदेश के देवगिरि पर्वत के निकट सुकर्मा नामक एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी सुदेहा निवास करते थे। पति-पत्नी दोनों ही भगवान शिव के परम भक्त तो थे परंतु फिर भी वे बहुत दुखी रहते थे। कारण यह था कि उनकी कोई संतान सन्तान नहीं थी।
उस ब्राह्मण सुकर्मा की पत्नी उससे दूसरा विवाह करने का बार-बार आग्रह करती रहती थी। जिसके बाद उसने पत्नी के जोर देने पर सुकर्मा ने अपनी पत्नी की बहन घुश्मा के साथ विवाह कर लिया।
घुश्मा भी शिव भगवान की परम भक्त थी। कुछ दिनों के बाद भगवान शिव की कृपा से घुश्मा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र प्राप्ति से परिवार में घुश्मा का मान-सम्मान भी बढ़ गया। यह देख कर उसकी पहली पत्नी सुदेहा को घुश्मा से ईष्या होने लगी। जब पुत्र बड़ा हो गया और उसका विवाह कर दिया गया तो सुदेहा के मन में और भी अधिक ईष्र्या पैदा हो गई।
अब तो ईष्र्या इतनी अधिक बढ़ गई कि उसने उस पुत्र का अनिष्ट करने तक की ठान ली। उसका परिणाम यह हुआ कि एक दिन रात्रि में जब सब सोए हुए थे तब सुदेहा ने अवसर मिलते ही घुश्मा के पुत्र की किसी धारदार हथियार से हत्या करके उसके शरीर के टुकड़े कर दिए। और उन टुकड़ों को एक सरोवर में फेंककर वह आराम से घर में आकर सो गई।
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अब अगली सुबह, हर दिन की तरह ही जब सभी लोग अपने कार्यों में व्यस्त हो गए और नित्यकर्म में लग गये तब सुदेहा भी आनन्दपूर्वक घर के काम-काज में जुट गई। परंतु जब बहू नींद से जागी तो बिस्तर को खून में सना पाया तथा मांस के कुछ टुकड़े भी दिखाई दिए। यह भयानक दृश्य देखकर बहू व्याकुल हो गई और विलाप करती हुई अपनी सास घुश्मा के पास जाकर उसने यह किस्सा बताया और पूछा कि मेरा पति कहां है?
विलाप की आवाजें सुन कर उधर से सुदेहा भी उसके साथ विलाप में शामिल हो गई। ताकि किसी को भी उस पर संदेह न हो। लेकिन, अपनी बहू को इस प्रकार दूखी होकर विलाप करते देखने के बाद भी घुश्मा जरा भी दुखी नहीं हुई और अपने नित्य पूजन व्रत में लगी रही।
उधर, घर का मुखिया यानी सुकर्मा नामक वह ब्राह्मण भी अपनी नित्य पूजा में लगा रहा। दोनों पति-पत्नि भगवान का पूजन भक्ति के साथ बिना किसी विघ्न, चिन्ता के करते रहे। और कुछ देर के बाद जब उनकी पूजा-पाठ समाप्त हो गई तब घुश्मा ने अपने पुत्र की रक्त से भीगी शैय्या को देखा।
लेकिन, यह विभत्स दृश्य देखकर भी उसने किसी प्रकार का विलाप नहीं किया। और बहू को सांत्वना देते हुए कहा कि जिसने मुझे पुत्र दिया है वही भगवान शिव उसकी रक्षा भी करेंगे। क्योंकि वह तो स्वयं कालों के भी काल हैं, वही हमारे संरक्षक हैं, वही हम भक्तों के तारणहार हैं। इसलिए, हमें इस बारे में व्यर्थ की चिन्ता नहीं करना चाहिए।
और इसी प्रकार के भक्ति-भाव से भरे विचारों को अपने मन में धारण करके घुश्मा भगवान शिव को याद करती रही और शोक से मुक्त हो गई।
घुश्मा भगवान शिव के मंत्र – ऊँ नमः शिवाय का उच्चारण करती रही और प्रति दिन भगवान शिव के जिन पार्थिव लिंगों को अपने हाथों से बना कर उनकी पूजा करती थी, उन पार्थिव शिव लिंगों को अगली सुबह सरोवर के तट पर जाकर पानी में प्रवाहित करती रही।
एक दिन, अचानक जब हमेशा की भांति घुश्मा भगवान शिव के मंत्र – ऊँ नमः शिवाय का उच्चारण करती हुई सरोवर के तट पर जाकर भगवान शिव के पार्थिव लिंगों को तालाब में प्रवाहित कर ही रही थी, कि तभी उसने देखा कि उसका पुत्र सरोवर के किनारे खड़ा हुआ उसकी प्रतिक्षा कर रहा है।
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अपने पुत्र को देखकर घुश्मा प्रसन्नता से भर गई। उसने भगवान शिव को धन्यवाद दिया। इतने में ही स्वयं भगवान शिव भी उसके सामने प्रकट हो गये।
भगवान शिव घुश्मा की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। भगवान शिव ने कहा कि यदि वो चाहे तो उसकी बहन को त्रिशूल से मार कर उसके पाप का दण्ड दे सकते हैं। परंतु घुश्मा ने श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव को प्रणाम करके कहा कि सुदेहा मेरी बड़ी बहन है। मैंने उसे क्षमा कर दिया है। अतः आप से विनती है कि आप उसकी रक्षा करें और उसे क्षमा कर दें।
घुश्मा के भक्तिपूर्ण विचारों को सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हो उठे और घुश्मा से कहा कि तुम कोई भी मनचाहा वरदान मांग सकती हो। इस पर घुश्मा ने कहा कि, हे महादेव, यदि आप मुझे वरदान देना ही चाहते हैं तो मेरी आप से प्रार्थना है कि इस संसार की रक्षा और इसके कल्याण के लिए आप यहीं, इसी स्थान पर सदा-सदा के लिए स्थापित हो जायें।
घुश्मा की निःस्वार्थ और सच्चे मन से की गई प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने घुश्मा को आशिर्वाद दिया और कहा कि आज से मैं इसी तालाब के किनारे पर सदैव के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित रहूंगा। आज के बाद यह संपूर्ण संसार मेरे साथ-साथ तुम्हें भी सदैव याद रखेगा। इसलिए आज से इस ज्योतिर्लिंग का नाम तुम्हारे ही नाम पर यानी घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम पर पहचाना जायेगा और पूजा जायेगा और यह सरोवर शिवालय के नाम से जाना जायेगा।
इस तरह आज भी घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास ही में स्थित सरोवर भी शिवालय सरोवर के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के साथ जो भक्त इस सरोवर के भी दर्शन करते हैं भगवान शिव उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।
पौराणिक साक्ष्य बताते हैं कि शिवालय नामक यह वही तालाब है जहां पर घुश्मा प्रतिदिन बनाए गए पार्थिव शिवलिंगों का विसर्जन करती थी, और इसी के किनारे पर उसे अपना पुत्र जीवित मिला था।
हर साल यहां सावन माह के दौरान देशभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। आम दिनों में भी यहां दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी लाईनें लगी रहती हैं।
– अनूप सिंह चौहान, गाजियाबाद (उ.प्र.)