आज के भारत की भौगोलिक, राजनैतिक, नैतिक, धार्मिक, व्यापारिक, आर्थिक, शैक्षिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक स्थिति इतनी अच्छी क्यों नहीं है इस विषय पर जब कभी भी बहस होती है तो मन में एक सवाल आता है कि काश एक बार फिर से हम विश्वगुरु बन जायें। हालांकि यह संभव तो नहीं है लेकिन, यदि इसे संभव बनाना है तो इसके लिए हमें सबसे पहले तो अपने राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों और फिल्मी कलाकारों को आदर्श मानने से परहेज करना होगा और उससे दूरी बनानी होगी और न सिर्फ दूरी बल्कि उनका बहिस्कार भी करना होगा।
सच है कि भारत यदि अपने मूल धर्म के आधार पर चलता तो आज यह स्थिति नहीं होती। लेकिन जबसे भारत अपने मूल धर्म पर आधारित सत्ता को छोड़ कर राजसत्ता के पीछे चलने लगा है तभी से यहां का मूल धर्म और इसके मूल निवासियों के गले कटते जा रहे हैं और आबादी घटती जा रही है। यह सच है कि भारत और भारतीय आज अपने मूल धर्म और मूल विषय पर बात नहीं कर सकता। आज भारत का मूल धर्म क्या है? यह प्रश्न यदि किसी से पूछा जाता है तो किसी भी भारत निवासी का यही जवाब होता है कि ‘सर्व धर्म समभाव’ और ‘गंगा, जमुना तहजीब’ है। लेकिन, असल में न तो यह सर्व धर्म समभाव और न ही गंगा, जमुना तहजीब भारत का मूल धर्म है और न ही भारत भूमि की यह तासीर है कि वो प्रकार के शब्दों को सहन कर सके।
आज भी भारत के अनेकों गांव ऐसे हैं जहां एक भी मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन, सिख या बौद्ध आदि कोई परिवार या व्यक्ति नहीं रहता। ऐसे गांव आज भी 5जी के युग में एक दम शांत, मिलनसार, धर्मपरायण और मोहमाया से दूर खुशहाल जीवन जी रहे हैं। लेकिन, जिस किसी भी दिन ऐसे गांवों में एक भी मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन, सिद्ध या बौद्ध आदि कोई परिवार या व्यक्ति बस जायेगा उसी समय से वह गांव अपना मूल धर्म छोड़ कर सर्व धर्म समभाव और गंगा, जमुना तहजीब की चपेट में आकर अपनी प्राकृतिक तासीर को छोड़ देगा और फिर वहां मारकाट मचनी प्रारंभ हो जायेगी।
दरअसल, भारत को किसी भी धर्म या मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन, सिख या बौद्ध आदि परिवारों या इनके सदस्यों से कोई समस्या नहीं है। समस्या है तो इनकी विचारधारा और इनकी उस कट्टरता आदि से जो इनके पास पश्चिम के राजनीतिज्ञों, सभ्यता और संस्कृति के द्वारा थोपी जा रही है। उदाहरण के लिए जिस प्रकार से क्रिश्चियनिटी ने मेघालय को भारत से आज लगभग विभाजित कर दिया है, मुस्लिमों ने बंगाल, केरल, तमिलनाडु आदि को भी लगभग भारत से विभाजित कर ही दिया है। सिख समुदाय के कारण पंजाब भी आज अलग होने के कगार पर है। बौद्ध अपना मूल धर्म छोड़कर अंधे कुंऐ में कुदते जा रहे हैं और जैन समुदाय को घमंड है कि वो ही इस देश को आर्थिक स्तर पर चला रहे हैं।
जरा सोचिए इसमें हिंदू धर्म, यानी भारतभूमि का अपना मूल धर्म कहां है। कहने के लिए तो मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन, सिख या बौद्ध आदि भी भारतीय ही हैं लेकिन, समय आने पर ये सभी अलग-अलग हो जाते हैं। उस समय ये धर्म हिंदू को भूल जाते हैं और अपने हक की मांग करने लग जाते हैं। अपने हक की लड़ाइयों में वे लोग न तो हिंदू को शामिल करते हैं और न ही उसमें हिस्सा देते हैं, बल्कि हिंदुओं के हिस्से में से ही अपना हक मांगते हैं, जिसके कारण न सिर्फ भारत की संपूर्ण भौगोलिक सीमा के भीतर रहने वाले तमाम हिंदू आज इन्हीं मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन, सिख, बौद्ध आदि की उपेक्षा के शिकार होते जा रहे हैं बल्कि हिंदुओं में एक निराशा का माहौल भी बनता जा रहा है।
चाहे मेघालय में रहने वाले मात्र कुछेक बचे हुए हिंदू हो, पंजाब में रहने वाले हिंदू हों, तमिलनाडु में, बंगाल में, उत्तर प्रदेश में, बिहार में या देश के किसी भी राज्य, जिला या गांव में रहने वाले हिंदू ही क्यों न हों। भारत की संवैधानिक संस्थानों, सरकारों, न्यायालयों, कानून व्यवस्था, चिकित्सा, राशन की दुकान, परिवहन या फिर सड़क से लेकर घर के भीतर तक, हर जगह आज हिंदुओं को एक तुच्छ समझ कर उसका न सिर्फ अपमान किया जा रहा है बल्कि जानबुझ कर उसका ये हाल किया जा रहा है ताकि यहां का मूल निवासी हिंदु अपना मूल धर्म छोड़ कर अन्य धर्म धारण कर ले या फिर वो भी अपने समाज, देश और अपनी मात्रभूमि का द्रोही बन जाये और किसी भी तरह से उस पर आतंकवादी का ठप्पा लग जाये।
आज तक का इतिहास रहा है कि जहां कहीं भी भारतभूमि पर यदि किसी भी प्रकार की सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान या तोड़फोड़ आदि हुआ है उनमें एक भी मूल हिंदू या मूल भारतीय मानसिकता ने कभी हिस्सा नहीं लिया। हालांकि, सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान और तोड़फोड़ आदि तो आज देश के हर क्षेत्र में आम बात हो चुकी है। इसका सीधा-सा मतलब है कि भारत के मूल नागरिक यानी मूल हिंदू अब धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं और उनके स्थान पर एक विशेष प्रकार के डीएनए वाले समुदाय ने अपनी पकड़ मजबूत बना ली है। सोचने वाली बात है कि भला एक मूल हिंदू या मूल भारतीय अपने घर में तोड़फोड़ क्यों करेगा?
आज भारतभूमि पर इसके मूल निवासियों और मूल धर्म की एक बार फिर से आवश्यकता महसूस की जा रही है। अन्यथा यह भूमि तो बची रहेगी मगर इससे जुड़े धार्मिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासतों का मूल सर्वनाश हो जायेगा। डवलपमेंट के नाम पर भले ही हिंदुओं को सम्मोहित किया जा रहा है, लेकिन, इस प्रकार के डवलपमेंट किसी भी काम के नहीं हैं जो बाद में उन्हीं के गले कटवा कर उनकी आबादी को खत्म कर दे। हालांकि, ये भी सच है कि इतना सब कुछ जानने के बाद भी हिंदुओं को वही डवलपमेंट पसंद आ रहे हैं जो उनके विनाश का कारण बनने वाला है, फिर भी वे इसे मानने को तैयार ही नहीं हैं।
भले ही आज हिंदुओं को बचाने के खारित, हिंदुओं के नाम पर, हिंदुओं के लिए और हिंदुओं के धन से कई कालनेमि राजनेता, राजनीतिक दल, संगठन और समाजसेवी खड़े होते जा रहे हैं लेकिन, जैसे ही समाज में उनका कद थोड़ा बड़ा होने लगता है वैसे ही वे हिंदुओं को नकारने और दुत्कारने लग जाते हैं और पश्चिमी विचारधारा, पश्चिमी अवधारणा और पश्चिमी इशारों पर चलने लगते हैं और हिंदुओं को अपने पैरों की जूती समझने लगते हैं। जबकि इसमें हैरानी की बात तो ये है कि जो समाज ऐसे तथाकथित हिंदू नेताओं, हिंदू संगठनों और हिंदू कालनेमियों से नफरत करता है और उन्हें वोट तक नहीं देता वही सब तथाकथित हिंदू नेता, हिंदू संगठन और हिंदू कालनेमि एक होकर उन्हीं के लिए हर प्रकार की रेवडियां बांटते फिरते हैं और चुनावी वादे पूरे करते रहते हैं। जबकि हैरानी तो इस बात की होती है कि ये सभी कालनेमि अपने चुनाव हिंदुओं के वोटो से ही जीतते हैं।
हिंदुओं की दुर्दशा का प्रमुख कारण आज भले ही हम किसी अन्य समाज या सत्ता को कह दें, लेकिन, सच तो ये है कि हिंदू न सिर्फ स्वयं को ही ठग रहे हैं, बल्कि अपना गला भी हिंदू स्वयं ही कटवा रहे हैं। इसके पीछे का कारण और उदाहरण देखें तो वर्तमान का एक तथाकथित हिंदुवादी संगठन जो अपने आप को दुनिया का सबसे बड़ा संगठन कहता है और उससे निकले प्रमुख राजनीतिक दल और उसके तमाम छोटे-बड़े कर्ताधर्ताओं की कथनी और करनी को देख सकते हैं।
हिंदू आज तक भी यह नहीं समझ पाया है कि उसका भला किसी राजनीति दल, व्यक्ति या संगठन में नहीं बल्कि उसके अपने धर्म और धार्मिक दिनचर्या में ही है। अपने मूल धर्म पर अडिग रह कर हिंदू आज किसी भी स्तर के राजनेता, राजनीतिक दल और संगठन आदि को न सिर्फ झुका सकता है बल्कि अपने पीछे चलने को विवश कर सकता है। लेकिन, सब कुछ जानते हुए भी हिंदू आज भी उन्हीं के पीछे चलने और उन्हीं के चप्पल चाटने को तैयार है। हिंदू यदि किसी भी एक चुनाव में वोट डालने के लिए घर से न निकलें या फिर सिर्फ ‘नोटा’ पर ही बटन दबा दें तब भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है, लेकिन, क्योंकि हिंदुओं को चाटूकारिता करने और करवाने की आदत लग चुकी है इसलिए अब यह संभव नहीं है कि भारत फिर से हिंदू राष्ट्र या विश्व गुरु बन सकता है।
हिंदुओं के पास आज ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिनमें वो देख सकता है कि बौद्ध, सिख, जैन, क्रिश्चियन और इस्लाम आदि अपनी विचारधारा और अपने समाज की एकता के दम पर उन तमाम राजनेताओं को न सिर्फ विवश कर देता है बल्कि अपनी सारी जायज-नाजायज बातें मनवा लेता है। संसद में गृहमंत्री श्रीमान अमित शाह जी ने सीना ठोक कर कहा था कि- ‘‘हम एनआरसी को लाकर रहेंगे, ये हमारा वादा है।’ लेकिन, उस समाज की एकता के आगे यही सरकार झुक गई और दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने भी सीना ठोक कर कह दिया कि- ‘‘हम एनआरसी को लागू नहीं करने वाले हैं।’’
श्रीसम्मेद जी शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के विषय पर केन्द्र सरकार उस छोटे से समुदाय के आगे झूक गयी और अपना प्रस्ताव वापस ले लिया। लेकिन, दूसरी तरफ काशी का उदाहरण देखें तो उसमें ऐसे कितने ही हिंदू मंदिरों को बेरहमी से तोड़ा और हटा दिया, उनमें स्थापित प्राचीन प्रतिमाओं को, शिवलिंगों को कबाड़खानों में फैंक दिया और उन मंदिरों के स्थानों पर ऐसे आलीशान कमरे बना दिये जिनमें वही हिंदू आकर रहेंगे जिनके मंदिरों को तोड़ दिया गया है।
हिंदुओं को तो बस इस बात की खुशी हो रही है कि वहां डवलपमेंट हुआ है, क्योंकि धर्म के नाम पर पर्यटन को खुब बढावा मिलेगा, और आज मिल भी रहा है। काशी कोरीडोर के उस डवलपमेंट के नाम पर आज मंदिर में चढ़ावा भी खुब आ रहा है। लेकिन, किसी भी हिंदू को भी इस बात का एहसास तक नहीं हुआ कि उनके धर्मक्षेत्र को, उनके तीर्थक्षेत्र को, उनकी आस्था को किस प्रकार से अपमानित किया गया और उसे धर्म के नाम पर पर्यटन क्षेत्र बना दिया गया। जबकि जैन समाज के श्रीसम्मेद जी शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने मात्र से ही उस छोटे से समाज ने केन्द्र सरकार के उस गलत फैसले को मात्र अपने दम पर वापस करवा दिया। लेकिन, वहां भी कुछ हिंदू हैं कि उसका श्रेय अपने उपर ले रहे हैं।
हिंदुओं को शर्म आनी चाहिए कि वे आज तक भी इस बात का अंदाजा लगा पाये हैं कि काशी कोरीडोर के डवलपमेंट के नाम पर तैयार हुए उस विशेष क्षेत्र के दम पर अब उस संपूर्ण शहर में न सिर्फ मांस, मदिरा, मसाज पार्लर, हनीमुन कपल, विदेशी पर्यटकों के लिए नशे का कारोबार और न जाने क्या-क्या हो रहा होगा? हिंदुओं की आस्था का के साथ हिंदुत्ववादी सरकार ही यदि इस प्रकार से खेल कर सकती है तो सोचिए कि अन्य सरकारें या राजनेता क्या-क्या कर रहे होंगे? हैरानी तो इस बता की है कि, अभी तो सिर्फ काशी और उज्जैन में ही इसकी झांकी देखने को मिल रही है। जबकि अभी तो ऋषिकेश, केदारनाथ धाम और न जाने कहां-कहां इस प्रकार के प्रोजेक्टस शुरू किये जा रहे हैं।
सन 2014 के पहले तक एक बात तो थी उस कांग्रेस में कि उसकी नीतियों और गतिविधियों के बारे में कम से कम एक आम हिंदू इस बात की जानकारी तो रखता था या ये बात जानता कि यह उनके विचारों और उनके धर्म के विरोधी विचारधारावादी पार्टी की सरकार है, इसलिए जो कुछ भी होगा उसमें हिंदू धर्म का कुछ न कुछ नुकसान जरूर होगा, देश का विकास होगा तो विनाश भी होगा, एक धर्म का सम्मान होगा तो दूसरे का अपमान भी होगा। लेकिन, सन 2014 के बाद से इतने बड़े भ्रम की स्थिति हो चुकी है कि कौन अपना है और कौन पराया कुछ भी कहा नहीं जा सकता। कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधारा के आम लोग कहते हैं कि हमारे लिए तो कांग्रेस ही ज्यादा अच्छी सरकार थी। कम से कम हमें शत्रुबोधा तो रहता था। लेकिन, आज तो उसके ठीक उल्टा हो रहा है।
हिंदुत्ववादी वोटरों के समर्थन से बनी कट्टर हिंदू हृदय सम्राट, हिंदुओं की सबसे प्रिय सरकार का राज है और काज हो रहा है उन विशेष लोगों के लालन-पालन का, उनके विकास का, उनके उत्थान और सम्मान का। हमें कोई कोई समस्या नहीं, वे भी इसी देश के नागरिक हैं, हमारे अपने हैं। लेकिन, हिंदूओं के लिए भी तो कुछ कीजिए, आपने हमारे वोट लिए हैं और अब हमें ही आंख भी दिखा रहे हो। गले भी हिंदुओं के ही कटवा रहे हो और मंदिर भी हमारे ही तुड़वा रहे हो। पत्थर भी हम पर ही फिंकवा रहे हो और कब्जे भी हमारी ही भूमि पर करवा रहे हो।
हिंदुओं को तो बस इस बात की खुशी हो रही है कि देश में डवलपमेंट हो रहा है। लेकिन, इस बात की जानकारी ही नहीं है कि इस डवलपमेंड की आड़ में आखिर हो क्या रहा है। डवलपमेंट के शौकिन हिंदुओं को अब आंखे खोल कर देखना होगा, कि भारतीय मीडिया जो दिखा रहा है वो असल में कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है। भारतीय मीडिया पर भरोसा करने वाले हिंदुओं को इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि यह मीडिया कोई निष्पक्ष मीडिया नहीं है, बल्कि यह तो एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है। यानी ऐसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जिसको चलाने वाले सिर्फ अपना मुनाफा देखते हैं।
बंगाल विधानसभा 2021 के नतीजों के आते ही वहां फैली हिंसा के बाद बंगाल के हिंदूओं की स्थिति को सब ने देखा, सूना और दूख भी जताया। आज सब लोग उसे भूल भी चूके हैं। उस दौर की हिंदू विरोधी लहर के बाद से आज तक बंगाली हिंदूओं की आबादी में से करीब एक लाख से भी कहीं अधिक संख्या पलायन करके असम में रहने रह रही है। हिंदूओं का यही देश, यही कट्टर हिंदुत्ववादी केन्द्र सरकार और हिंदुओं का ऐसा हाल, संघ का डीएनए और मोहन भागवत जी का सैक्युलरवादी एजेंडा, मोदी जी का मुफ्त राशन, जेपी नड्डा जी का भाजपा मतलब हिंदुत्व नहीं और हिंदुत्व मतलब भाजपा नहीं। हिंदुओं संभल जाओ, 2024 के चुनावों की तैयारी शुरू हो चुकी हैं, जिन हिंदुओं को अपनी जेबें भरनी हैं वे लोग कृपया अपने संगठन, पार्टी और अपने नेताओं की चप्पलों को चाटना शुरू कर दें। यह स्कीम पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर है।
– गणपत सिंह, खरगौन (मध्य प्रदेश)