अजय सिंह चौहान || माना जाता है कि देश की राजधानी दिल्ली में पांच ऐसे पौराणिक और धार्मिक स्थल हैं जो महाभारत काल के या उससे भी प्राचिन काल के हैं। इसलिए इन सभी मंदिरों को पांडवों की इन्द्रप्रस्थ नगरी के परंपरागत इतिहास से जोड़ कर देखा जाता है। और इन पांच प्रमुख मंदिरों में से एक है योगमाया मंदिर जो महरौली में स्थित है। दूसरा देवी कालिकाजी का मंदिर जो कालिका जी क्षेत्र में है। तीसरा भैरव मंदिर है जो महाभारतकालीन पुराने किले के पास स्थित है। चैथा है प्राचिन बाल हनुमान मंदिर जो कनाट प्लेस में है और और पांचवा है मरघट वाले बाबा हनुमान जी का मंदिर जो जमुना बाजार में स्थित है।
दिल्ली में स्थित इन सभी मंदिरों के विषय में माना जाता है, कि ये सभी तीर्थ स्थल पांडवकालीन हैं और इन सभी की प्रतिमाएं स्वयंभू हैं। इसके अलावा इस मंदिर का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि पांडवों ने अपनी राजधानी इन्द्रप्रस्थ में जिन पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी यह मंदिर उनमें से एक है।
कहां स्थित है यह मंदिर –
प्राचिन श्री बाल हनुमान जी का यह मंदिर जंतर-मंतर के नजदीक और दिल्ली के दिल कनाट प्लेस में बाबा खड़्ग सिंह मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ बताया जाता है और इस मंदिर में विराजित बाल हनुमान की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है। माना जाता है कि यह मंदिर दिल्ली के सबसे पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है और इसमें विराजित भगवान हनुमान की मूर्ति की प्राण प्रतिस्ठा महाभारत काल में की गई थी।
बाल हनुमान के रूप में दर्शायी गई हनुमान जी की इस मूर्ति का मुख दक्षिण दिशा की ओर है। इसमें बाल हनुमान के बांये हाथ में गदा और दांया हाथ सीने पर पुजा की मुद्रा में है। मूर्ति में हम उनकी एक आंख को ही देख सकते हैं। मूर्ति का बाल रूप बहुत ही मनमोहक लगता है। इसमें हनुमान जी का मुख बालक के मुख जैसा दिखाई देता है।
हनुमान जी के इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है इसके शिखर पर फहराई जाने वाली धर्म ध्वजा। जहां सभी हिंदू मंदिरों के शिखरों के ऊपर फहराई जाने वाली धर्म ध्वजा के ऊपर सामान्यतः प्रतीक चिन्ह के रूप में ओम या सूर्य चिन्ह होते है, वहीं हनुमान जी के इस मंदिर के शिखर फहराई गई धर्म ध्वजा पर अर्धचन्द्र का प्रतीक चिन्ह अंकित है।
मंदिर का इतिहास –
ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर कहा जाता है कि तौमर एवं चैहान राजाओं के समय में जिर्णोद्धार किए गए और बनवाये गये बहुत से मंदिरों को मुस्लिम विजेताओं ने नष्ट कर दिया दिया था और उनमें से कई मंदिरों को तो मस्जिदों का रूप दे दिया ताकि हिन्दू धर्म उन स्थानों को भूल जाये।
कनाट प्लेस के इस प्राचीन बाल हनुमान मंदिर ने भी मुगलों की उन विनाश लीलाओं को कई बार झेला था। और उन्हीं आक्रमणों और विनाशकारी शक्तियों से इस मंदिर को बचाने के लिए इस पर अर्धचन्द्र का यह प्रतीक चिन्ह अंकित किया गया था।
अर्धचन्द्र का यह प्रतीक चिन्ह कब और किसके द्वारा अंकित करवाया गया, इसका स्पष्ट रूप से तो किसी को नहीं पता, लेकिन, इसके पीछे माना जाता है कि चन्द्रमा को इस्लामी संस्कृति का प्रतीक माना जाता है और अर्धचन्द्र का यह प्रतीक चिन्ह ही है जो समय-समय पर मुगल आक्रमणों से इस मंदिर को बचाता रहा।
चमत्कार के रूप में मंदिर के रहस्य –
मंदिर से जुड़ी एक अन्य ऐतिहासि घटना के अनुसार कहा जाता है कि एक बार मुगल बादशाह ने तुलसीदास जी को अपने दरबार में बुलाकर चमत्कार दिखाने को कहा। तुलसीदास जी ने हनुमान जी के आशीर्वाद से जब चमत्कार कर दिखाया तो बादशाह ने प्रसन्न होकर मंदिर के शिखर पर इस्लामी चंद्रमा सहित किरीट कलश लगवाया दिया। और संभवतः यही कारण रहा कि कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस्लामी चंद्रमा का मान रखा और कभी भी इस मंदिर को क्षति नहीं पहुंचाई।
मंदिर से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार माना जाता है कि आमेर के महाराजा मान सिंह प्रथम ने सोलहवी सदी के मध्य में इस मंदिर की ईमारत को एक भव्य रूप में बनवाया था। उसके बाद सन 1724 ईस्वी के आस-पास राजा जय सिंह द्वारा इस मंदिर में कुछ बदलाव किए गए। बताया जाता है कि मंदिर के निर्माण में कई बार छोटे-बड़े परिवर्तन हुए, लेकिन हनुमानजी की मूर्ति वहीं पर स्थापित है, जहां शुरू में थी।
नवनिर्मित मंदिर संरचना –
मंदिर की वर्तमान इमारत का नवनिर्माण सत्तर के दशक में किया गया था। इसके प्रवेश द्वार पर कुशल शिल्पकारों ने उद्कीर्ण चित्रकारी करके भगवान के प्रति श्रद्धा का प्रमाण दिया है। मंदिर के मुख्य हाॅल की छत पर महाकाव्य रामायण के विभिन्न दृश्यों को बहुत ही सुन्दर और आकर्षक ढंग से चित्रित किया गया है।
मंदिर में बाल हनुमानजी के अलावा श्रीराम-सीता और लक्ष्मण, श्रीराधा कृष्ण, श्री हनुमानजी महाराज, संतोषी माता, शिव शंकर पार्वती, शिवलिंग, नंदी, माता दुर्गा, लक्ष्मी नारायण, भगवान गणेश, माता सरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं। हनुमान जी के इस मंदिर के पास ही में एक दक्षिण भारतीय शैली में बना प्राचिन और ऐतिहासिक शनि मंदिर और शिव मंदिर भी है।
मंदिर का परिसर हालांकि बहुत बड़े आकार में नहीं है लेकिन, धार्मिक गतिविधिओं के लिए दिल्ली का प्रमुख केन्द्र माना जाता है। नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् ने मंदिर परिसर का विकास कार्य बड़ी सुंदर एवं सावधानी से किया।
मंदिर के ठीक बाहर की ओर परिसर में प्रसाद की कई छोटी-बढ़ी दुकाने हैं। इन दुकानों पर बिकने वाला शुद्ध देशी घी का प्रसाद काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा मंदिर के बाहर हाथों पर मेहंदी लगाने वाली कई महिलाएं भी बैठती हैं।
दर्शनों के लिए कब जायें –
वैसे तो मंदिर में हर दिन चहल-पहल रहती है लेकिन, हर मंगलवार और शनिवार को यहां दर्शनार्थियों की लंबी-लंबी लाईनें लग जाती हैं। मंदिर में हनुमान जयंती की धूम देखने लायक रहती है। इस मंदिर में हनुमान जी को भोग के रूप में चढ़ने वाला देसी घी से बना पेड़े का प्रसाद प्रसिद्ध है।
यह मंदिर दिल्ली में बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर स्थित है। और अगर आप नई दिल्ली रेलवे स्टेशन या पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन या फिर दिल्ली के किसी भी बस अड्डे पर हैं तो वहां से इस मंदिर तक आने के लिए राजीव चैक मेट्रो स्टेशन पर आना होता है।
राजीव चैकर मेट्रो स्टेशन से यह मंदिर चंद मिटर की दूरी पर ही है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए दिल्ली के किसी भी कोने से हर प्रकार की सवारी जैसे डीटीसी बस, मेट्रो, टेक्सी, आॅटो आदि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
इसके अलावा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से यह मंदिर मात्र 8 किलोमीटर दूर है। नई दिल्ली स्टेशन से इस मंदिर की दूरी मात्र डेढ़ किलोमीटर ही है। जबकि इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 18 किलोमीटर दूर है।