पिछले लेख के माध्यम से मैंने बताया था कि ऋषिकेश से गोविंदघाट तक की इस यात्रा के लिए कब निकल सकते हैं और किस समय इस यात्रा की शुरूआत होती है। और आज हम गोविंदघाट से आगे की यात्रा के बारे में बात करेंगे कि कैसे हम यहां से श्री हेमकुड साहिब की यात्रा पर जा सकते हैं और कितना समय और खर्च लग सकता है।
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अजय सिंह चौहान || सबसे पहले तो यहां मैं यह बता दूं कि गोविंदघाट से श्री हेमकुंड साहिब तक की कुल दूरी करीब 16 किमी तक है। जबकि, आप इस प्रकार की किसी भी यात्रा के लिए जब पैदल चलना शुरू करते हैं तो ये दुरियां और भी लंबी लगने लगती हैं। लेकिन, ऐसी यात्राओं पर जाने वाले यात्रियों के मन में जब तक उस स्थान को लेकर धर्म, आस्था और पूरा विश्वास ना हो तब तक वे इस यात्रा को ठीक से पूरा नहीं कर पाते हैं।
सबसे पहले तो आप यह जान लें कि, अगर आप के पास पहाड़ी इलाकों में इस प्रकार की कोई दूसरी यात्रा करने का पहले से ही अनुभव है तो आपको यहां कोई परेशानी नहीं होने वाली है। चाहे फिर आप अकेले ही इस यात्रा में जा रहे हैं या फिर आप अपने दोस्तों के साथ या अपने परिवार के अन्य सदस्यों या फिर किसी भी ग्रुप के साथ हों।
इसके अलावा, यहां यह भी ध्यान रखें कि ऐसी दुर्गम स्थानों वाली यात्राओं में अक्सर बी.एस.एन.एल. का सिम या फोन नंबर ही चल पाता है। शायद ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे स्थान आम शहरों या रिहायशी क्षेत्रों से बहुत दूर और अलग-थलग होते हैं इसलिए यहां प्राइवेट आपरेटरों के द्वारा लगभग ना के बराबर ये सुविधा दी जाती है।
अब अगर हम हेमकुंड साहिब के पैदल यात्रा वाले रास्ते की बात करें तो यह रास्ता करीब 16 किमी लंबा है और शुरूआत का करीब 8 किमी का यह रास्ता इतना कठीन नहीं है जितना कि इस यात्रा का अगला 8 किमी लंबा रास्ता है। यानी कि अगले दिन की यात्रा में आने वाले 6 किमी के बाकी रास्ते में भी आप जैसे-जैसे ऊपर की ओर चढ़ते जाते हैं यह और भी अधिक कठीन होता जाता है।
गोविंदघाट से ही इस पैदल यात्रा की शुरूआत होती है और गोविंदघाट से चलने पर 10 किमी आगे घांघरिया नाम की वह जगह आती है जो इस यात्रा में दूसरा सबसे खास पढ़ाव है। घांघरिया को यहां गोविंद धाम के नाम से भी पहचाना जाता है।
अगर आपके साथ इस यात्रा में परिवार के छोटे बच्चे और महिलाएं भी हैं तो फिर आपको गोविंदघाट से सुबह करीब 7 बजे तक इस पैदल यात्रा की शुरूआत कर देनी चाहिए, ताकि आप करीब-करीब 7 से 8 घंटे में घांघरिया के अगले पड़ाव तक आराम से पहुंच जायें।
आप चाहें तो यात्रा की शुरूआत में गोविंदघाट से 3 किमी आगे पुलना तक जीप की सवारी करके भी जा सकते हैं, लेकिन उसके लिए आपको करीब 40 से 45 रुपये एक सवारी का किराया देना होता है। वैसे, ज्यादातर यात्री यहां भी पैदल चलना ही पसंद करते हैं।
अगर आप यहां पालकी, घोड़ा, खच्चर या अपने सामाान के लिए कुली की मदद लेना चाहते हैं तो वह सुविधा भी यहां उपलब्ध है लेकिन, यह आपके लिए बहुत महंगी साबित हो सकती है और आपके बजट से बाहर भी हो सकती है। इसके अलावा, अगर आपके पास सामान थोड़ा ज्यादा है तो आप यहां कुली, यानी पिट्ठू की सहायता भी ले सकते हैं, लेकिन इसके लिए पिट्ठू आपसे 800 से 900 रुपये तक ले लेगा। इसमें आप चाहें तो सामान के साथ बच्चे को भी पिट्ठू की पीठ पर बैठा सकते हैं।
अगर आप खुद भी यहां घोड़े या खच्चर की सवारी करना चाहते हैं तो 10 किमी की इस दूरी में आपको करीब-करीब 1500 से 1700 रुपये तक देने पड़ सकते हैं। घोड़े या खच्चर की सवारी करने पर यह रास्ता लगभग दो से ढाई घंटे में आराम से पार हो जाता है।
हालांकि, यहां पैदल यात्रियों की संख्या ज्यादा देखने को मिलती है। जबकि घोड़े की सवारी बहुत ही कम लोग करते हैं। मात्र इतना ही नहीं बल्कि यहां पैदल चलने वाले यात्रियों के साथ 10 से 12 साल तक की उम्र के बच्चों को भी उत्साह और जोश के साथ पैदल चलते देखा जा सकता है।
गोविंदघाट से थोड़ा आगे चलने के बाद यहां एक चैक पोस्ट मिलती है। जहां से अगर आप घोडे की सवारी करते हुए निकलते हैं या फिर आपके साथ पिट्ठू है तो आपको इस चैक पोस्ट पर 100 रुपये की एक पर्ची कटवानी होगी। आपके ये 100 रुपये यहां पर्यावरण के लिए सहयोग राशि के नाम पर होती है। इसके अलावा, इस पैदल रास्ते में कई जगहों पर चाय-नाश्ता या खाने-पीने की सुविधाओं के अनुसार ढाबे और रेस्टारेंट भी देखने को मिल जाते हैं। लेकिन इनमें खाने-पीने का हर सामान करीब-करीब डबल कीमत में मिलता है।
तो, गोविंदघाट से इस 10 किमी लंबी पैदल यात्रा की शुरूआत होती है और घांघरिया नाम के एक गांव में पहुंच कर इस यात्रा में दूसरा सबसे खास पढ़ाव आता है। घांघरिया को यहां गोविंद धाम के नाम से भी पहचाना जाता है। इसके अलावा यहां घांघरिया का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इस स्थान के आस-पास पहाड़ों पर ट्रेकिंग के दिवानों और अन्य पर्यटकों को भी देखा जा सकता है।
घांघरिया में आपको बजट के अनुसार कई सारे छोटे-बड़े होटल और रेस्टोरेंट मिल जाते हैं। घांघरिया समुद्रतल से करीब 3,049 मीटर यानी करीब 10,003 फीट की ऊंचाई पर स्थित है इसलिए यात्रा के दिनों में यहां का तापमान करीब-करीब 15 डिग्री तक रहता है जबकि सुबह और शाम के समय यहां सर्द हवाओं के कारण ठंड बढ़ जाती है।
यह वही घांघरिया है जहां से फूलों की घाटी के लिए भी 4 किमी लंबा पैदल रास्ता जाता है। अगर आप यहां से फूलों की घाटी के लिए भी जाना चाहते हैं तो मैं आपको सलाह दूंगा कि पहले आपको हेमकुंड साहिब की यात्रा का लाभ लेना चाहिए।
क्योंकि वेली आफ फ्लावर, यानी फूलों की घाटी के लिए जाने वाला रास्ता भी बहुत दुर्गम है और वहां भी आपको पैदल ही चल कर जाना होता है और उसी दिन शाम होेेने से पहले वापसी में घांघरिया आकर रात गुजारना पड़ता है। ऐसे में अगर आप पहले दिन फूलों की घाटी हो कर आ जाते हैं तो आपको थकान हो सकती है और फिर अगले दिन श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा का आनंद नहीं ले पायेंगे।
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इसके अलावा यहां एक और बात का ध्यान रखना होगा कि अगर आप हेमकुंड साहिब की यात्रा के साथ-साथ इस फूलों की घाटी भी घूमना चाहते हैं तो फिर तो आपको यहां 15 अगस्त से 30 सितंबर के बीच का ही समय चुनना होगा।
घांघरिया में करीब-करीब हर बजट के अनुसार होटल का कमरा मिल जाता है। लेकिन, फिर भी अगर आपका बजट कम या बहुत कम है तो आप यहां श्री गोविन्दधाम गुरुद्वारे में भी आराम से रात गुजार सकते हैं। वैसे अधिकतर यात्री श्री गोविन्दधाम गुरुद्वारे में ही रात को ठहरना पसंद करते हैं।
इसके अलावा यहां जी.एम.वी.एन. यानी गढ़वाल विकास मंडल की ओर से गेस्ट हाऊस भी उपलब्ध हैं जिनमें करीब 1400 रुपये से 3000 हजार रुपये तक में अच्छी सुविधाओं वाले कमरे मिल जाते हैं। और अगर आप का बजट इससे भी कम है तो आप यहां डोरमेटरी में भी रह सकते हैं। डोरमेटरी में रहने के लिए आपको यहां करीब 300 रुपये तक में जगह मिल जायेगी।
घांगरिया गांव में यानी गोविन्दधाम में पहुंच कर यहां के गुरुद्वारा श्री गोविन्दधाम में मत्था टेकने के बाद सभी यात्री यहां लंगर प्रसाद का आनंद लेते हुए देखे जा सकते हैं। लेकिन, अगर आप यहां अपनी पसंद के अनुसार भोजन लेना चाहते हैं तो उसके लिए भी यहां बजट के अनुसार कई सारे रेस्टारेंट और ढाबे उपलब्ध हैं।
तो, घांघरिया यानी गोविंद धाम इस यात्रा का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है। यहां हम यह भी बता दें कि श्री हेमकंुड साहिब में रात को ठहरने की व्यवस्था नहीं है। और दूसरी बात यह कि यहां से श्री हेमकुंड साहिब की एक तरफ की दूरी करीब 6 किमी है और आपको घांघरिया से चलकर हेमकुंड साहिब के दर्शन करके वापस उसी दिन इस पड़ाव पर लौटना भी होता है। ऐसे में आपकी यह यात्रा कुल 12 किमी की हो जाती है। इसलिए अगर आप घांघरिया से सुबह करीब 4 से 5 बजे तक भी पैदल यात्रा शुरू कर देते हैं तो आप हेमकुंड साहिब तक आराम से करीब-करीब 4 से 5 घंटे में पहुंच सकते हैं।
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अगर आप घांगरिया से घोड़े की सवारी कर के भी जाना चाहते हैं तब भी आपको यहां से करीब 4 किमी के बाद आगे का करीब-करीब 2 किमी बर्फ से ढंका रास्ता पैदल चल कर ही पार करना होता है। श्री हेमकंुड साहिब पहंुचने से करीब 1 किमी पहले यहां दो अलग-अलग रास्ते देखने को मिलते हैं जिनमें से एक रास्ता थोड़ा छोटा लेकिन सीढ़ियों वाला है इसलिए इस रास्ते का उपयोग कम ही यात्री कर पाते हैं।
जैसे ही इस यात्रा का यह पैदल रास्ता खत्म होता है चारों तरफ से बर्फिली चोटियों से घीरा श्री हेमकुंड साहिब का पवित्र गुरुद्वारा और वह सरोवर जिसे अमृत कुंड भी कहा जाता है नजर आते ही ऐसा लगता है मानो यात्रियों सारी थकान अपने-आप ही मिट जाती है। यहां पहुंचते ही महसूस होने लगता है कि अगर कोई ब्रहमांड की दिव्य और पवित्र आत्माओं को अपने आस-पास महसूस करना चाहता है तो वह भी अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार तो यहां अवश्य पहुंचे।
श्री हेमकुंड साहिब की ऊंचाई समुद्रतल से करीब 15,000 फिट है यानी करीब 4572 मीटर है। इसलिए, जिन दिनों मैदानी क्षेत्रों में भीषण गमी और लू का प्रकोप होता है उन दिनों में भी श्री हेमकुण्ड साहिब का न्यूनतम तापमान 13 से 15 डिग्री तक होता है जबकि अधिकतर तापमान 21 से 24 डिग्री तक होता है।
श्री हेमकुण्ड साहिब पहंुचकर कई यात्रियों को सबसे पहले उस पवित्र अमृत सरोवर या हेमकुंड के बर्फिले पानी में डुबकी लगाते हुए भी देखा जा सकता है और उसके बाद दरबार साहिब के दर्शन करने के लिए लाइनों में लग जाते हैं। दरबार साहिब के दर्शन करने के बाद संगत यानी यात्री, लंगर हाॅल में पहुंच जाते हैं, प्रसाद चखते हैं और गर्मागरम चाय पीते हैं।
श्री हेमकुण्ड साहिब पहुंच कर दरबार साहिब के दर्शन करने के बाद आपको इतना समय मिल जाता है कि आप वहां थोड़ा सुस्ता लें और फिर वहां से करीब-करीब 2 बजे तक श्री गोविन्दधाम यानी घांघरिया के लिए वापस भी हो लें। क्योंकि अक्सर देखने को मिलता है कि श्री हेमकंुड साहिब का मौसम दोपहर के बाद अचानक बिगड़ने लगता है और बर्फिली हवाएं भी चलने लग जाती हैं।
अगर आपके साथ बच्चे और बुजुर्ग भी इस यात्रा में शामिल हैं तो जितना जल्दी हो सके वहां से घांघरिया के लिए निकल लेना चाहिए वर्ना बदलते मौसम के कारण परेशानी हो सकती है। इसलिए आपको शाम के करीब-करीब 6 बजे तक गोविन्दधाम यानी घांघरिया के पड़ाव तक पहुंच जाना चाहिए।
यहां एक ओर बात का ध्यान रखें कि अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ों में मौसम कभी भी खराब हो सकता है। जिसके कारण आप रास्ते में कहीं फंस सकते हैं और अंधेरा भी हो सकता है। ऐसे वक्त के लिए आपको अपने साथ एक टार्च और अच्छी क्वालिटी की बरसाती भी रखनी चाहिए।