अजय सिंह चौहान || सोशल मीडिया के माध्यम से अब धीरे-धीरे यह बात उठने लगी है कि नरेंद्र मोदी भारत को इस्लामिक स्टेट बनाने की ओर ले जा रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये तो एक बहुत बड़ा मजाक है। भला कोई इस प्रकार का आरोप मोदी जी पर कैसे लगा सकता है? क्योंकि जिस नरेंद्र मोदी को सारी दुनिया हिंदू हरदय सम्राट के रूप में जानती है भला वो पीएम अपने ही धर्म और अपने ही देश को इस्लामिक स्टेट की ओर कैसे ले जा सकते हैं। उनकी सोच तो कट्टर हिंदुत्ववादी है। इतनी कट्टर की उन्होंने हिंदुत्व के साथ-साथ देश को भी राष्ट्रवाद की एक नई परिभाषा दी है। वे इतने कट्टर हिंदू हैं कि उन्होंने तो सबके सामने जालीदार टोपी पहनने से भी मना कर दिया था।
नरेंद्र मोदी ने तो कश्मीर से धारा 370 को एक झटके में हटा दिया, राम मंदिर का निर्माण करवाया, काशी में कोरिडोर बनवाया। प्राचीन योग विद्या को वैश्विक मंच पर पहुंचा दिया। पाकिस्तान पर दो बार सर्जिकल स्ट्राइक कर उसका अहंकार तोड़ दिया। ऐसे-ऐसे महान और असंभव को संभव करने वाले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भला भारत को इस्लामिक स्टेट कैसे बना सकते हैं।
लेकिन, यह मजाक नहीं बल्कि एक ऐसी हकीकत है जो बहुत जल्द साकार हो सकती है। क्योंकि मोदी जी जिस आरएसएस यानी संघ की विचारधारा से आते हैं उसके अनुसार वे वही कर रहे हैं जो संघ चाहता है, यानी सेक्युलरवाद को बढ़ावा देना और भाईचारे का काम करते हुए हिंदुओं को चारा बनाये रखना, दोहन करना और शोषण करना।
यहां मुझे याद आता है कि हमारे देश के प्रमुख इतिहासकार और पूर्व सांसद स्व. श्रीमान सीताराम गोयल जी का वो वक्तव्य जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘‘यह कितनी भयंकर चेतावनी है कि जिस हिन्दू समाज ने सदियों तक इस्लामी साम्राज्यवाद को झेल कर हरा दिया, जिस ने चर्च और मिशनरियों के आघात सहकर भी उन्हें विफल रखा, वही हिंदू समाज आज संघ-परिवार के चक्कर में नष्ट हो सकता है।’’ सीताराम गोयल जी ने इतनी गंभीर बातें किसी क्षणिक आवेश या बदले की भावना में नहीं कही थी बल्कि कुछ सोच-समझ कर ही कही थी।
श्रीमान सीताराम गोयल जी ने एक बार चेतावनी भी दी थी कि ‘‘आर.एस.एस. हिन्दू समाज को ऐसे फन्दे की ओर ले जा रहा है जिस से इसका निकल सकना संभव ही न हो सकेगा।’’ आज भी उनके वे शब्द हमारे सामने पंक्तिबद्ध हैं, लेकिन, या तो हम उन्हें पढ़ना ही नहीं चाहते हैं या फिर हमने उनका मजाक बना कर रख दिया गया है। दरअसल, हमारी आज की भाजपा सरकार और इसके कर्ताधर्ता पीएम श्रीमान नरेंद्र मोदी जी के सच से जब पर्दा हटेगा तो एक आम हिंदू को न सिर्फ बहुत अधिक पीढ़ा होगी, बल्कि तब तक बहुत देर भी हो चुकी होगी। क्योंकि मोदी अब तक कुछ ऐसे कार्य कर भी चुके हैं जिनसे हमारा न सिर्फ भविष्य बल्कि वर्तमान तक भी खतरे में आ चुका है। इसके पीछे के उदाहरणों में यदि जायेंगे तो हमें अपनी ही गलतियां नजर आयेंगी।
पीएम नरेंद्र मोदी संघ परिवार से आते हैं ऐसे में जाहिर सी बात है कि वे संघी हैं। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी घोर संघी ही रहे हैं। आज के कई भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारों के मुख्यमंत्रियों में से अधिकतर भी संघी ही हैं। तभी तो उदाहरण के रूप में इन राज्यों में रामनवमी के दिन इतने दंगे और आगजनी हुई हैं। लेकिन, बात अगर राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस शासित सरकारों और पश्चिम बंगाल की करें तो वहां तो इस विषय पर सवाल उठाना कोई बड़ी बात ही नहीं है। लेकिन, जिन राज्यों में भाजपा का शासन है वहां अगर राम नवमी पर ये हालात देखने को मिलते हैं तो ऐसे में आप क्या कहेंगे?
यहां आपको इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा कि, योगी आदित्यनाथ और हेमंता विश्वशर्मा संघी नहीं हैं, यानी वे संघ परिवार से निकल कर भाजपा में नहीं आये हैं इसलिए उनकी कार्यशैली राष्ट्रवाद से कहीं ऊपर यानी शत प्रतिशत स्पष्ट और हिंदूत्ववादी है।
आज भले ही शिवराज सिंह चैहान गुजरात माॅडल को आधार मान कर मध्य प्रदेश में विकास के कार्य कर रहे हैं, लेकिन, खरगौन जिले में चल रहा उनका आज का बुलडोजर किसकी देन है, संघ की या योगी की?
यहां सीताराम गोयल जी के विचारों से हमें इसलिए भी सहमत होना चाहिए क्योंकि कांग्रेस जिस कार्य और जिस तुष्टीकरण को पिछले सत्तर साल में नहीं कर सकी उसी को संघ की मोदी सरकार ने पिछले सात वर्षों में कर के दिखा दिया है। कांग्रेस जिस प्रकार से उस विशेष मजहब को रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े दिखाकर लालच देती रहती थी, मोदी सरकार ने तो उसके आगे पूरी की पूरी रोटियां ही परोस कर रख दी है। यानी सीताराम गोयल जी ने आम ंिहंदुओं को इस बात की पहले ही चेतावनी दे दी थी कि, ‘‘आर.एस.एस. हिन्दू समाज को ऐसे फन्दे की ओर ले जा रहा है जिस से इस का निकल सकना शायद संभव न हो सकेगा।’’
अब यहां प्रश्न उठता है कि यदि संघी विचारों वाले भाजपा शासित केन्द्र में और राज्यों की सरकारों के कार्यकाल में हिंदुओं की हालत अच्छी हो चुकी है तो इसमें सबसे पहले तो ये जान लें कि एक आम हिंदू ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिंदू समाज आज मुर्खों की भांति, गुजरात को ही सबसे बड़ा और पहला हिंदुत्व और विकास का माॅडल मान कर चल रहा है, लेकिन आज इसी माॅडल से आम हिंदुओं को पलायन भी करना पड़ रहा है।
आज भले ही गुजरात के इस हालात के लिए हम पिछले 70 वर्षों के परिणमों को दोषी मान लें, लेकिन इससे भी भयावह स्थिति तो आसाम और उत्तर प्रदेश में हो चुकी थी। उत्तर प्रदेश में तो मुस्लिम आबादी देश अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। आसाम में भी यह आबादी करीब 35 प्रतिशत तक पहंुच चुकी है। लेकिन, इन दोनों ही राज्यों में ऐसा क्या है कि वहां मात्र कुछ ही दिनों में स्थिति शत-प्रतिशत काबू में आ चुकी है और कोई चूं तक भी बोलने की हिम्मत नहीं करता।
गुजरात में तो हिंदू हरदय सम्राट यानी मोदी जी की सरकार बहुत पहले से लगातार चली आ रही है, और आज भी वहां एक प्रकार से मोदी ही कर्ताधर्ता के रूप में कहे जा सकते हैं। तो फिर अपने हरदय सम्राट के राज्य और शासनकाल में से ही हिंदू को पलायन क्यों करना पड़ रहा है?
पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और अब गुजरात जैसे राज्यों से हिंदुओं की पीढ़ा और पलायन को लेकर संघ की ओर से क्यों कोई प्रतिक्रिया नहीं आई? मोदी जी इसको लेकर एक भी ट्वीट क्यों नहीं कर पा रहे हैं? क्या गुजरात से जिन हिंदुओं का पलायन जो हो रहा है वह सही है? क्या इसके लिए उस विशेष समुदाय के साथ-साथ हिंदू हरदय सम्राट की मौन स्वीकृति मिल रही है?
आज भले ही हिंदू समाज यह मानता है कि देश में मोदी जी के आने के बाद हालात सुधरे हैं और कई महत्वपूर्ण विकास के कार्य भी हुए हैं, लेकिन, सच तो ये है कि विकास और डवलपमेंट तो उस सड़क का भी हुआ था जिस पर एक वर्ष तक किसान बैठे रहे और वहां से खुलेआम खालिस्तान के नारे लगते रहे और आप मुस्कुराते रहे। कभी-कभी तो ऐसा लगता है मानो, संघ और मोदी कह रहे हैं कि, जिस झंडे को लाल किले से उखाड़ फेंक दिया गया हो उस झंडे का मान क्या और अपमान क्या?
डवलपमेंट तो शाहीनबाग की उस सड़क का भी हुआ था जिस पर बैठ कर चिकन नेक को दबाने की खुलेआम कसमें खाई जाती रहीं। सच तो ये है कि संघ और मोदी यदि राष्ट्रवादी होते तो उस झंडे को गिरने नहीं देते, संघ और मोदी यदि हिंदुत्ववादी होते तो मोदी गौरक्षकों को गुंडे कह कर संबोधित नहीं करते। देश में आज हिंदु विरोधियों और राष्ट्र द्रोहियों के द्वारा खुले आम यह बात साबित की जा रही है कि ‘‘मोदी है तो मुमकिन है’’, ‘‘संघ है तो मुमकिन है’’।
सीताराम गोयल जी ने संघ की नीतियों को लेकर जो लिखा है आज हमें उनको जान लेना भी बहुत जरूरी हो जाता है। इस लेख में जितना भी विस्तार से लिखा है उसको सबसे कम और आसान शब्दों में सीताराम गोयल जी ने पहले ही लिख दिया था, जिसके अनुसार, ‘अपने’ लोगों के कर्म, विकर्म, अकर्म की निंदा कैसे करें? इसका फायदा उठा कर हिन्दू-विरोधी तत्व चुपचाप नई-नई स्कीमों, योजनाओं की माँग करते हैं। जिसे खुशी-खुशी मान कर संघ-सत्ताधारी (यानी आज की भाजपा) अपनी उदारता दिखाने में लगे रहते हैं, जो कहलाना उनकी उत्कृष्ट चाह है। इसके लिए वे हिन्दू-हितों की उसी तरह बलि देते रहते हैं जो गाँधी ने किया था।’’
इसमें किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए कि यहां हम जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के बारे में बात कर रहे हैं यह वही संघटन है जिसके वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक खुले मंच से इस बात को कहा है कि हिंदुओं और मुस्लिमों का डीएनए एक है इसलिए हमें भी मूर्तिपूजा को छोड़ देना चाहिए।
सच तो ये है कि सीताराम गोयल ने संघ के इस वैचारिक खतरे को बहुत पहले ही भांप लिया था, तभी तो वे बहुत पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के बारे में एक खुले मंच से सीधे-सीधे कह चुके थे कि ‘‘पूरे विश्व के इतिहास में, महामूर्खों और डफर्स का सब से बड़ा एकत्रित संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस है।’’
यानी सीधे-सीधे कहें तो सीताराम गोयल जी ने एक आम हिंदू को इस बात की चेतावनी पहले ही दे दी थी। तभी तो उन्होंने कहा था कि ‘‘आर.एस.एस. हिन्दू समाज को ऐसे फन्दे की ओर ले जा रहा है जिस से इस का निकल सकना शायद संभव न हो सकेगा।’’