अजय सिंह चौहान || देश की राजधानी दिल्ली में बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब, सिख और हिन्दू धर्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों और पूजास्थलों में से एक है। अपने स्वर्ण मंडित गुम्बद और इसके प्रांगण में लगे निशान साहिब यानी ऊंची धर्मध्वजा की वजह से यह गुरुद्वारा दूर से ही पहचान में आ जाता है। इसके अलावा इस गुरुद्वारे के परिसर में मौजूद विशाल आकार और पवित्र सरोवर के लिये भी जाना जाता है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब परिसर में प्रवेश करते ही वहां मौजुद अध्यात्मिक शक्तियों के द्वारा हर श्रद्धालु को अपने आप यह एहसास होने लगता है कि किस प्रकार से हमारे धर्मगुरुओं ने मुगल आक्रांताओं के उस कठीन दौर की परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए अपने धर्म, देश और समाज-व्यवस्था को अपनी सच्ची सेवा, समर्पण, त्याग, बलिदान और कर्मों के द्वारा देश और धर्म के प्रति आस्था को बनाए रखने के लिए संषर्घ किया होगा और लड़ने-मरने का जज्बा सिखाया होगा।
इस गुरुद्वारे का नाम बंगला साहिब कैसे पड़ा इस विषय में गुरुद्वारे का इतिहास बताता है कि इससे पहले इस स्थान पर मूल रूप से सत्रहवीं सदी के महाराजा जय सिंह से संबंधित एक बंगला हुआ करता था जो उस समय जयसिंह पैलेस या जयसिंह बंगले के रूप में पहचाना जाता था। जबकि सिखों के आठवें गुरु, गुरु हर किशन सिंह जी अपने दिल्ली प्रवास के दौरान मेहमान नवाजी के तौर पर इसी बंगले में रह रहे थे।
गुरु हर किशन सिंह जी को बहुत छोटी उम्र में यानी महज 5 वर्ष की उम्र में ही गुरु की गद्दी प्राप्त हो गई थी जिसका मुगल बादशाह औरंगजेब ने विरोध भी किया था। लेकिन, उसके लगभग 2 साल बाद ही दिल्ली और इसके आस-पास के क्षेत्रों में स्माल पाॅक्स और हैजा जैसी भयंकर महामारियां फैलने लगी।
बताया जाता है कि गुरु हर किशन सिंह जी महाराज ने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान इसी जयसिंह बंगले से कई प्रकार की दवाइयां और बंगले में स्थिल कुएं का शुद्ध जल उन सभी धर्मों के मरीजों के इलाज के लिए उपलब्ध कराया था। उन्होंने बिना किसी जाती और धर्म में भेद किये असंख्य लोगों का इलाज किया। उनके इसी सेवाभाव से प्रभावित होकर मुस्लमानों ने उनको ‘बाला पीर’ नाम दिया था।
गुरु हर किशन सिंह जी महाराज की सच्ची सेवा और यहां के स्वास्थ्य वर्धक व रोगनाशक पवित्र जल से कई मरीजों को आराम मिल रहा था। लेकिन, माना जाता है कि मरीजों की सेवा करते-करते गुरु हर किशन सिंह जी महाराज को भी उन महामारियों ने घेर लिया था जिसके बाद अचानक 30 मार्च 1664 को मात्र 8 वर्ष से भी कम आयु में उन्होंने यहां अपनी देह त्याग दी थी।
माना जाता है कि देह त्यागते समय उनके मुंह से बाबा बकाले शब्द निकले थे, जिसका अर्थ यह निकाला गया कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में ढूंढा जाए। साथ ही उन्होंने वहां उपस्थित सभी लोगों को यह भी निर्देश दिया था कि कोई भी उनके देह त्यागने पर रोयेगा नहीं। गुरु हर किशन सिंह जी महाराज ने अपनी छोटी सी उम्र में ही अन्य सभी धर्मों के लोगों भी को अपने कर्मों, विचारों और अपनी वाणी के दम पर अपनी ओर आकर्षित कर लिया था।
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इस घटना के बाद राजा जयसिंह ने उनकी याद में यहां पानी का एक छोटा टैंक बनवा कर यह बंगला गुरु हर किशन सिंह जी महाराज की स्मृति में सिख धर्म को समर्पित कर दिया। तभी से यह स्थान सिखों और हिन्दूओं के लिए पूजा स्थल और प्रार्थना स्थल के रूप में पहचाना जाने लगा। लेकिन, क्योंकि उस समय यहां मुगलों का साम्राज्य था इसीलिए वे अपने धर्मस्थलों के अलावा अन्य किसी भी धर्म को पनपने नहीं देना चाहते थे इसीलिए यह पवित्र स्थान उतना प्रसिद्धि नहीं पा सका था।
हालांकि, इस घटना के लगभग 119 वर्ष बाद यानी, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के शासनकाल के दौरान सन 1783 में उस समय के सिख जनरल सरदार बघेल सिंह ने मुगल शासकों द्वारा विरोध करने के बावजुद दिल्ली में कई सिख और हिन्दू धर्म स्थलों का जिर्णोद्धार अपनी देखरेख में करवाया था जिसमें से गुरु हर किशन सिंह जी महाराज की स्मृति के रूप में यह बंगला भी एक था। सरदार बघेल सिंह जी ने इस बंगले का जिर्णोद्धार करवा कर इसे एक छोटे मंदिर के रूप में मान्यता दी।
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वर्तमान में गुरुद्वारा बंगला साहिब हिन्दू और सिख धर्म के लिए आस्था का केन्द्र और धर्मस्थल बन चुका है। कई प्रमुख गुरुद्वारों की तरह यहां भी दूर-दूर से आने वाले देशी-विदेशी और स्थानीय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है जिसमें प्रतिदिन लगभग पांच से सात हजार लोग दर्शन करने आते हैं। जबकि रविवार और अन्य विशेष अवसरों पर यहां दर्शनार्थियों संख्या दस से बारह हजार तक भी पहुंच जाती है।
दर्शनार्थियों की सहायता के लिए यहां विशेष स्वयंसेवी गाइड भी हैं, जो बिना शुल्क लिए लोगों की सहायता करते हैं। इसके अलावा गुरुद्वारे में कई स्वयंसेवक दिन-रात दर्शनार्थियों की सेवा और गुरूद्वारे की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए अपनी निःशुल्क सेवाएं देते देखे जा सकते हैं। गुरुद्वारे में चलने वाले लंगर की विशेषता यह है कि यहां हर धर्म और हर जाति के लिए निःशुल्क व्यवस्था है और यह चैबीसों घंटे और सातों दिन चलता रहता है। इस लंगर में प्रतिदिन लगभग पांच से सात हजार लोगों की भूख मिटती है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब के परिसर में दूर-दराज से आने वाले यात्रियों के ठहरने के लिए विशेष यात्री निवासों का भी प्रबंध है। इसके अलावा यहां छोटा अस्पताल, बाबा बघेल सिंह म्यूजियम, एक लाइब्रेरी भी है। निजी वाहनों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए गुरुद्वारा परिसर ही में मल्टी-लेवल पार्किंग की विशेष सुविधा भी की गई है।
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गुरुद्वारा बंगला साहिब के परिसर में ही एक वल्र्ड क्लास म्यूजियम भी बनाया गया है जिसमें सन 1783 में दिल्ली फतह करते हुए देशवासियों को आजादी का अहसास कराने वाले बाबा बघेल सिंह जी की यादों को इस म्यूजियम में दर्शाया गया है। इस म्यूजियम में सिख धर्म, इतिहास और संस्कृति की अनेकों जानकारियां मिलती हैं। यहां न सिर्फ सिख इतिहास के बारे में जानकारी मिलेगी, बल्कि संत कबीर और अन्य कई महान लोगों के बारे में भी पता चलता है। यहां एक 3-डी थिएटर भी बनाया गया है जिसमें रोजाना शाम को धार्मिक फिल्म दिखाई जाती है। इस म्यूजियम और थिएटर के लिए भी कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
दुनियाभर की कई मशहूर ट्रैवल वेबसाइट्स ने दिल्ली के धार्मिक स्थानों में गुरुद्वारा बंगला साहिब को भी महत्व दिया है, इसीलिए यहां विदेशी मेहमानों की संख्या भी अच्छी-खासी देखी जा सकती है। विदेशी सैलानियों के लिए गुरुद्वारे में विशेष इंतजामों के तहत फाॅरेन टूरिस्ट लाउंज के नाम से सुविधा के विशेष इंतजाम किया गया है।
दिल्ली के अन्य ऐतिहासिक गुरुद्वारों में से एक बंगला साहिब की देखरेख दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी ही करती है। गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के अनुसार गुरुद्वारे में मिलने वाली हर प्रकार की निःशुल्क सुविधा और इसके रख-रखाव का खर्च पुरी तरह से सेवाभाव और दान में मिली सामग्री और धन के आधार पर ही चलता है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब में स्थिल कुएं का शुद्ध जल आज भी उतना ही पवित्र माना जाता है इसलिए विश्व भर के सिख और हिन्दु श्रद्धालु यहां से यह जल अपने साथ ले जाते है।