अजय सिंह चौहान || निमाड़ मध्य प्रदेश का एक ऐसा पश्चिमी क्षेत्र है जिसकी भौगोलिक सीमाओं में एक तरफ़ विन्ध्य पर्वत और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा हैं, जबकि मध्य में पवित्र नर्मदा नदी बहती है। यही निमाड़ पौराणिक काल में ‘अनूप जनपद’ के नाम से पहचाना जाता था। हालांकि समय परिवर्तन के साथ आज इसे निमाड़ के नाम से पहचाना जाता है। सनातन परम्पराओं और मान्यताओं के अनुसार प्रकृति के अनमोल ख़ज़ानों में से एक इस निमाड़ में अनेकों प्रकार की क्षेत्रीय और पौराणिक मान्यतायें आज भी जस की तस मनाई जाती हैं।
उन्हीं क्षेत्रीय और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ‘जिरोती’ (Jiroti an ancient traditional art) भी है जिसको निमाड़ की बेटी माना जाता है। जबकिकुछ लोग जिरोती को माता भी मानते हैं। जिरोती को निमाड़ क्षेत्र में एक परम्परागत पर्व के रूप में हर्षोलास के साथ मानाया जाता है।
प्राचीन लोक कथाओं के अनुसार प्रति वर्ष सावन के महीने की हरियाली आमावस्या के दिन ‘जिरोती’ (Jiroti an ancient traditional art) अपने मायके आती थी, और उसके आने से मायके में यानी की सम्पूर्ण निमाड़ में रौनक आ जाती थी, और चारों और हरियाली छा जाती थी। इसलिए यहाँ के लोग हरियाली आमावस्या के इस दिन को उनके सम्मान में एक विशेष त्योहार के रूप में मनाने लगे।
जिरोती निमाड़ का एक प्राचीन परंपरागत पर्व है। इस दिन सम्पूर्ण निमाड़ की महिलायें अपने घरों के पवित्र स्थानों जैसे पूजास्थलों और रसोई की दीवारों पर गेरू और चाक मिट्टी के रंगों से एक प्रकार की कलात्मक आकृति को बनाती हैं जो ‘जिरोती माता’ के रूप में पहचानी जाती है।
निमाड़ का पौराणिक इतिहास और सांस्कृतिक महत्व | History of Nimad-MP
इस अवसर पर जिरोती बनाने के पहले घर की उन दीवारों को गंगा जल से शुद्ध करके उसपर गाय के गोबर से लीपा जाता है। उसके बाद गेरू और चाक मिट्टी के रंगों से आकर्षक जिरोती माता बनाई जाती।
जिरोती माता बन जाने के बाद सपरिवार मिलकर उसको पारंपरिक ‘पूरणपोली’ नाम के एक विशेष व्यंजन का भोग लगाकर उसकी पूजा-अर्चना कर परिवार की सुख समृद्धि की कामना की जाती है।
जिरोती माता की इस आकृति में, जिरोती माता को पालने में झूलते बच्चे, चांद-सूरज, तुलसी, बृंदावन, पेड़-पौधे, नाग देवता, मही या छाछ बिलोती महिलाएं, गणगौर नृत्य करते लोग, घर की रसोई और कई प्रकार की गृहस्थ आकृतियां बनाई जाती हैं।
हालांकि जिरोती (Jiroti an ancient traditional art) प्रकृति से जुडी एक प्राचीन परंपरा है इसलिए यह सिर्फ निमाड़ तक ही सीमित नहीं है बल्कि बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में भी मनाया जाता है। जबकि, वर्तमान में तो यह एक ‘परंपरागत कला’ के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध होती जा रही है।
इस प्राचीन और पौराणिक परंपरा एवं त्यौहार के पीछे मुख्य कारण प्रकृति प्रेम, हरियाली और परिवारों की सुख तथा समृद्धि है। यह त्योहार बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए मनाते तो मानते ही हैं साथ ही साथ इस दिन घर में एक पौधा भी जरूर लगाते हैं। इसके पीछे का मूल उद्देश्य भी यही है कि हरियाली अमावस्या पर पौधारोपण को अधिक महत्व दिया जाए।
हमारे विभिन्न शास्त्रों में भी यही कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। इसलिए पेड़ लगाने के सुख भी दस पुत्रों के बराबर होते हैं। तभी तो सनातन को धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली माना जाता है जो सभी प्रकार के मत, पंथ, और मजहबों में सबसे ऊपर है।