अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित कालीघाट क्षेत्र में देवी काली (Gad Kalika Mata, Ujjain) का एक अति प्राचीन मंदिर है जो ‘गढ़ कालिका’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्राचीन मंदिर में माता के दर्शनों के लिए हर दिन हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है। तांत्रिकों के लिए अराध्य माने जाने वाली देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर के पौराणिक महत्व के विषय में कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी। लेकिन कहा जाता है कि इसमें देवी काली की आज जो पवित्र मूर्ति है वह उस समय की नहीं है।
लिंग पुराण में गढ़ कालिका माता के इस मंदिर के विषय में बताया गया है कि जिस समय भगवान रामचंद्रजी युद्ध में विजयी होकर वापस अयोध्या की ओर जा रहे थे, वे रुद्रसागर तट के निकट रात्रि विश्राम के लिए ठहरे थे। जबकि इसी रात्रि में देवी कालिका भी भक्ष की तलाश करते-करते इस स्थान पर आ पहुंचीं थीं।
उज्जैन में स्थित गढ़ कालिका माता (Gad Kalika Mata, Ujjain) के इस मंदिर के बारे में लिंग पुराण के अनुसार कहा जाता है कि अपने भक्ष के रूप में देवी काली ने जब हनुमान को पकड़ने का प्रयास किया तो हनुमान ने भी अपना भीषण रूप धारण कर लिया। जिसके बाद देवी ने अपना इरादा बदल लिया और वहां से चलीं गईं। लेकिन कहा जाता है कि उस समय देवी का एक अंग गलित होकर वहां गिर गया था। और जिस स्थान पर वह अंग गिर गया था, वही स्थान देवी स्थान बन गया और कालिका के नाम से विख्यात हो गया।
प्राचीन काल से ही वैदिक तथा तान्त्रिक साधना एवं क्रियाओं के विषय में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्धों का बखान करने वाले प्रमुख ग्रन्थ ‘‘त्रिपुरा रहस्य महात्म्य’’ के अनुसार गढ़ कालिका माता का यह मंदिर आज जिस जगह पर है, वहां पुरानी अवंतिका नगरी हुआ करती थी। लेकिन कालांतर में यहां प्राकृति आपदा के रूप में एक ऐसा अति भयंकर धूल का गुबार आया जिसके नीचे वह प्राचीन अवंतिका नगरी दब गईं लेकिन यह मंदिर इसलिए बचा रह गया क्योंकि यह मंदिर उस स्थान से कुछ दूरी पर स्थित गढ़ क्षेत्र में था। कहा जाता है कि गढ़ की देवी होने के कारण ही देवी काली को गढ़ कालिका नाम दिया गया।
वैसे तो संपूर्ण उज्जैन क्षेत्र ही तंत्र साधकों और सिद्धियों के लिए गढ़ माना जाता है लेकिन यहां का गढ़ कालिका क्षेत्र इसके लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। नवरात्रि के दिनों में यहां देशभर से कई साधक तंत्र और मंत्र की साधना के लिए आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। इसलिए तांत्रिकों और तंत्र साधकों के लिए भी उज्जैन एक महत्वपूर्ण और प्रमुख तीर्थ माना गया है।
सम्राट विक्रमादित्य स्वयं देवी काली के पूजन-दर्शन करने आया करते थे, और उनके नव रत्नों में से एक महाकवि कालीदास देवी काली (Gad Kalika Mata, Ujjain) के परमभक्तों में से एक थे। कालीदास के बारे में कहा जाता है कि बचपन में वह एक सामान्य बालक की तरह ही थे। लेकिन जब से वे इस मंदिर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना करने लगे तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा। माता काली की नियमित आराधना से ही कालीदास सरस्वती पुत्र कहलाए और सम्राट विक्रमादित्य के नव रत्नों में शामिल हुए। और इसीलिए उन्हें कालीदास नाम भी दिया गया।
उज्जैन क्षेत्र में माता हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस मंदिर की मान्यता और महत्व बढ़ जाता है।
कालीदास द्वारा रचित और देवी काली को समर्पित ‘श्यामला दंडक‘ नामक महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना मानी जाती है और यह भी माना जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। इसीलिए आज भी यहां विद्या प्राप्ति के इच्छुक सैकड़ों विद्यार्थी इस मंदिर में आराधना करने आते हैं। और इसीलिए कवि कालीदास की याद में यहाँ प्रत्येक वर्ष कालीदास समारोह के आयोजन के समय माता कालिका की आराधना भी की जाती है।
मान्यता है कि जो भी विद्यार्थी सच्चे मन से यहां प्रार्थना करता है मां उसका कल्याण अवश्य करती है।
मंदिर में विराजित माता गढ़ काली का दिव्य प्रतिमास्वरूप अपने भक्तों पर सदा कृपा बरसाने वाला और प्रसन्नतादायक है जो सदा मुस्कुराती हुई ही दिखतीं हैं। सिंदूरवर्णी माता की मूर्ति में चांदी के दांतों का भी आकर्षक प्रयोग किया गया है। पंडितों द्वारा हर दिन प्रातःकाल से ही माता का स्नान, अभिषेक व श्रृंगार किया जाता है। इसमें देवी गढ़ काली की दिव्य प्रतिमा के दाएं व बाएं महालक्ष्मी व महासरस्वती की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा माता को विशेष रूप से श्रृंगार समग्री चढ़ाई जाती है।
हालांकि, देवी गढ़ काली का यह मंदिर शक्तिपीठों में शामिल नहीं है, लेकिन, उज्जैन क्षेत्र में माता हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस मंदिर की मान्यता और महत्व बढ़ जाता है। प्रत्येक नवरात्रि के अवसर पर इस क्षेत्र में भी लगने वाले मेले के अलावा और भी कई अवसरों पर धार्मिक उत्सवों और यज्ञों का आयोजन होता रहता है।
बड़ा गणेश मंदिर में आज भी जिंदा है हजारों वर्षों की परंपरा
गढ़ कालिका माता के इस मंदिर को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि समय-समय पर किए गए मंदिर के जीर्णोद्धार और रखरखाव के जो आंकड़ें उपलब्ध हैं उनके अनुसार आज से लगभग चैदह सौ साल पहले सम्राट हर्षवर्धन द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाये जाने का उल्लेख मिलता है। इसके बाद बताया जाता है कि चैदहवीं शताब्दी में परमार शासन काल के दौरान भी बड़े पैमाने पर इस मंदिर का जिर्णोद्वार हुआ था। वर्तमान मंदिर की संरचना मराठा शासन काल में सिंधिया राजघराने द्वारा बनवाई गई इमारत है।
मराठा शैली में बना श्री गढ़ कालिका का यह मंदिर और इसका परिसर हालांकि बहुत बड़ा और विशाल आकार वाला नहीं है लेकिन देखने में बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगता है। मुख्य मंदिर के प्रवेश-द्वार के ठीक आगे माता के वाहन, यानी सिंह की आकर्षक प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के आस-पास के दोनों तरफ के भागों में दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दो धर्मशालाएं भी बनीं हुईं हैं। मंदिर परिसर में 108 दीपों वाले आकर्षक अतिप्राचीन दो दीप स्तंभ भी हैं जो विशेषकर नवरात्रि के अवसर पर रोशन होते हैं।
माता गढ़ कालिका (Gad Kalika Mata, Ujjain) के इसी मंदिर के पास ही में एक अन्य मंदिर भी है जो स्थिरमन गणेश नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर भी अति प्राचीन और पौराणिक महत्व का बताया जाता है। इसमें गणेशजी की जो प्रतिमा है वह एक प्राचीन और पौराणिक प्रतिमा बताई जाती है। जबकि गणेश जी के सामने ही पुरातन हनुमान मंदिर भी है, और इस हनुमान मंदिर से लगी हुई विष्णु की एक भव्य चतुर्भुज प्रतिमा है जो अद्भुत और दर्शनीय है। इसके अलावा नाथ परंपरा की भर्तृहरि गुफा और मत्स्येन्द्र नाथ की समाधि भी इसी क्षेत्र में है। गणेशजी के इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर पर शिप्रा नदी के दर्शन भी हो जाते हैं।
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शिप्रा नदी के इस घाट के पास माता गढ़ कालिका के इस मंदिर के अलावा वैसे तो अनेक अनेकों देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर और मूर्तियां हैं लेकिन उनमें सती की मूर्तियों की संख्या ज्यादा है। कहा जाता है कि किसी समय में उज्जैन में जो स्त्रियां सति होती थीं यहां उनको स्मारक और मंदिर के तौर पर स्थान दिया जाता था। जबकि यहां नदी के ठीक दूसरे किनारे पर पौराणिक और प्राचीनकाल के समय की प्रसिद्ध श्मशान-स्थली है।
महाकाल की नगरी उज्जैन में अनेकों धार्मिक एवं पौराणिक महत्व के मंदिर, आश्रम और भवन हैं, जिनमें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, चैबीस खंभा देवी, गोपाल मंदिर, काल भैरव, नगरकोट की रानी, हरसिद्धि माता शक्तिपीठ का मंदिर, मंगलनाथ का मंदिर, सिद्धवट, राजा भर्तृहरि की गुफा, जन्तर मंतर, चिंतामन गणेश और क्षिप्रा नदी घाट आदि प्रमुख हैं। इनमें से अधिकतर का निर्माण या जिर्णोद्धार सिंधिया शासन के दौरान किया गया था। इन स्थानों पर पहुँचने के लिए महाकालेश्वर मंदिर या रेल्वे स्टेशन से आसानी से बस व टैक्सी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
उज्जैन के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई हवाईअड्डा है जो यहां से 65 कि.मी. दूर इंदौर में है। उज्जैन का रेलवे स्टेशन और बस अड्डा भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।
उज्जैन में रेलवे स्टेशन और बस अड्डे के पास ही यात्रियों के ठहरने के लिए बजट के अनुसार अनेकों किफायती होटल और धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। बच्चों और बुजूर्गों सहीत पूरे परिवार के साथ उज्जैन दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अक्टूबर से मार्च के बीच का मौसम सबसे अच्छा कहा जा सकता है।