अजय सिंह चौहान || भारत में अब तक सन 1947 के बंटवारे के बाद से न जाने कितने ही लोगों ने विवादास्पद बयान दिये होंगे। कुछ बयानों पर बवाल भी हुए हैं तो कुछ बयानों पर गिरफ्तारियां भी हुई हैं। लेकिन, वास्तव में विवादास्पद बयान होता क्या है और इसका पैमाना क्या है? यह कौन तय करेगा कि किसका बयान विवादास्पद है और किसका नहीं?
यदि हम इतिहास में बहुत अधिक पीछे न जायें तो हमारे सामने आज-कल, यानी पिछले मात्र 10 से 15 वर्षों के ही बयानों पर गौर करने पर पता चलता है कि तमाम कांग्रेसियों ने और अन्य विपक्षी पार्टियों ने अब तक सबसे अधिक बयानवीर पैदा किये, लेकिन उनमें से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया। हां कांग्रेस के या अन्य विपक्षी पार्टियों के उन बयानवीरों ने अपनी ही थालियों में छेद जरूर किये है।
विवादास्पद बयानों की एक लंबी सूची है। उसी सूची में कुछ मर्यादीत भी हैं तो कुछ अमर्यादित भी। अमर्यादित बयानों में से ज्यादातर तो तमाम कांग्रेसियों ने और अन्य विपक्षी पार्टियों ने ही दिये हैं। इस बात को वे स्वयं भी मानते और समझते भी हैं। लेकिन, आजकल कालीचरण महाराज के अब तक के एक सबसे महत्वपूर्ण और सबसे अलग बयान को विवादास्पद क्यों कहा जा रहा है?
दरअसल वर्तमान राजनीतिक अखाड़े में न सिर्फ कांग्रेस या उसके अन्य सहयोगी विपक्ष की भूमिका में हैं बल्कि, तमाम मीडिया घरानों के अखबार और न्यूज चैनल्स भी खुलकर सामने आ चुके हैं। रही बात कुछ सोशल मीडिया के तथाकथितों की तो उनमें भी ये सब तो हैं ही, साथ ही साथ कुछ स्वतंत्र या यूं कहें कि ऐसे भी हैं जिनके अपने न्यूज चैनल्स या अखबार नहीं हैं वे भी सीधे-सीधे विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। इसका कारण क्या है ये तो कोई बड़ा समझदार या फिर ये खुद ही बतायेंगे, या फिर आपको खुद भी इनकी विचारधाराओं से समझना होगा।
यहां मैं सीधे-सीधे देश के गद्दारों की सूची में किसी को भी नहीं डाल सकता। क्योंकि गद्दारों में तो फिर देश की करीब-करीब 40 प्रतिशत आबादी को गिना जा सकता है। और इन 40 प्रतिशत में सीधे-सीधे उन लोगों की गिनती आती है जो लाल और हरे झंडे वाले पड़ौसी देशों का नमक खाते हैं और उनका गुणगान करते हुए अपने आप को हिंदुस्तानी बताते हैं। लेकिन, सच तो ये है कि एक ‘हिन्दुस्तानी’ सिर्फ गांधीवादी ही हो सकता है और ‘भारतीय’ भारतभूमि का ही होता है। फिर चाहे वह नरेंद्र मोदी या मोहन भागवत ही क्यों न हो।
देश के गद्दारों यानी ‘हिन्दुस्तानियों’ की हिम्मत तो देखिए कि जहां ओसामा बिन लादेन को कुछ लोग ‘‘जी’’ लगाकर सार्वजनिक मंच से संबोधित करते हैं वहीं कालीचरण महाराज के लिए सिर्फ और सिर्फ ‘कालीचरण’ शब्द का ही संबोधन करते हैं। ऐसे गद्दार एक या दो नहीं बल्कि सैकड़ों की संख्या में मौजूद हैं।
तमाम न्यूज चैनल्स और अखबारों ने इस ‘कालीचरण’ संबोधन को प्रमुखता दी है। इंटरनेट पर जायें तो इन चैनलों और अखबारों ने भी अपनी-अपनी वेबसाइट्स पर ‘कालीचरण’ से ही संबोधित किया है। जबकि उस गांधी को जो मात्र एक गांधी से अधिक कुछ नहीं है उसे ‘महात्मा’ के संबोधन से प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन सच तो ये है कि महात्मा कोई भीख में दिया हुआ संबोधन या पदवी नहीं होता।
देश के एक प्रमुख न्यूज चैनल और वेबसाइट ‘आजतक’ ने अपनी खबर में कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी को जो हेडिंग दी है उसके अनुसार – ‘‘कालीचरण खजुराहो से गिरफ्तार, रायपुर धर्म संसद में महात्मा गांधी पर की थी अमर्यादित टिप्पणी’’। इसी तरह से एबीपी न्यूज ने भी अपने चैनल की वेबसाइट पर कालीचरण महाराज को सिर्फ कालीचरण ही लिखा है, जबकि गांधी को महात्मा बताया गया है। आजतक और एबीपी न्यूज चैनल्स की बात तो समझ में आती है लेकिन उनका क्या जो अपने आप को राष्ट्रवादी कह कर लोगों को मूर्ख बना रहे हैं।
अब आते हैं उन न्यूज चैनल्स और उनकी वेबसाइट्स पर जो अपने आप को महान और राष्ट्रवादी बताकर लोगों को भ्रमित करते हैं। इसमें सबसे पहले हम ‘जी न्यूज’ और उसकी वेबसाइट को ही देखें तो यहां हमें कालीचरण महाराज के विषय में संबोधन के नाम पर भले ही महाराज लिखा गया हो लेकिन, विवादास्पद बता कर प्रस्तुत किया गया है। इसी प्रकार से एक अन्य प्रमुख न्यूज चैनल ‘टीवी9’ की वेबसाइट ने भी अपनी हेडिंग में सिर्फ ‘कालीचरण’ शब्द का ही उपयोग किया है। ये हाल उस न्यूज चैनल का है जो अपने आप को राष्ट्रवादी बताता है।
कुछ लोग सोच रहे होंगे कि भला न्यूज चैनलों और वेबसाइट्स का नाम आये और एनडीटीवी का नाम न हो ऐसे कैसे हो सकता है। तो बता दें कि एनडीटीवी ने अपने चैनल के माध्यम से कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी पर क्या-क्या कहा होगा ये बताने की आवश्यकता ही नहीं है, लेकिन उसकी वेबसाइट पर भी अगर हम गौर करते हैं तो पता चलता है कि कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी से जुड़ी खबर में उसने कहीं महाराज तो कहीं सिर्फ कालीचरण का ही संबोधन किया है।
एनडीटीवी की खबर इस ओर साफ-साफ इशारा करती है कि महाराज जैसे संबोधन को वह एक तांत्रिक, बाबा या फिर ढोंगी मान रही है। इसके अलावा सबसे खास बात जो देखने को मिली है उसमें एनडीटीवी ने कालीचरण महाराज के लिए अपनी खबर में सीधे-सीधे अमर्यादित भाषा या शब्दों का प्रयोग किया है।
मोहनदास करमचंद गांधी यानी ‘तथाकथीत महात्मा गांधी’ की सच्चाई तो यह है कि जिन भारतियों ने उन्हें अपना नेता माना था उसी गांधी ने सिर झुकाकर जिन्ना की मांगों को मानकर भारत का बंटवारा स्वीकार कर लिया और इसके खिलाफ एक आंदोलन तक नहीं किया, जबकि उसकी आधी जिंदगी आंदोलनों में ही गुजर गई।
जिसे आज तथाकथित ‘‘राष्ट्रपिता’’ के नाम से संबोधित किया जाता है उस राष्ट्रपिता शब्द की सच्चाई तो ये है कि, आज तक हजारों-लाखों ऋषि-मुनियों और महात्माओं और संतों ने इस भूमि की रक्षा की और इसको सम्मान दिया, लेकिन, किसी को भी सनातनियों ने ‘‘राष्ट्रपिता’’ कहने का अधिकार नहीं दिया है। न ही तब और न ही आज। जिस भीष्म को इतिहास में पितामह कहा गया उन्हें भी ‘‘राष्ट्रपिता’’ नहीं कहा जा सकता है तो फिर गांधी को क्यूं? हां, यदि पाकिस्तान या बांग्लादेश के लोग उन्हें अपना ‘‘राष्ट्रपिता’’ मानें तो बात समझ में भी आती है, क्योंकि, गांधी ने इन्हीं दोनों देशों को जन्म दिया है। इस नाते वे इन्हीं दोनों देशों के पिता हुए, न कि भारत के।
अंत में यही कहा जा सकता है कि एक आम भारतीय जो आज मात्र सरकारी हिंदू बन कर रह गया है उसका अल्पज्ञान ही आज की इस स्थिति का जिम्मेदार कहा जा सकता है, जबकि बाकी बस का तो एजेंडा एक दम सीधी लाइन में चल रहा है। जिस दिन हिंदू मात्र हिंदू न रह कर ‘सनातनी’ बन जायेगा उसी दिन यह देश ‘राष्ट्र’ बन कर उभरेगा। अन्यथा तो डीएनए तो हम सब का एक है ही।