उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार कटारमल गांव में स्थित कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) सूर्य देव को समर्पित भारत का दूसरा सबसे प्रसिद्ध और विशाल मंदिर है। तथ्यों के अनुसार कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माणकाल 13वीं सदी का है, जबकि कत्यूरी राज्यवंश के शासक कटारमल द्वारा निर्मित यह कटारमल सूर्य मंदिर उससे भी करीब 200 वर्ष पूर्व का निर्मित बताया जाता है।
हालांकि, कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) के खंभों पर लिखे शिलालेखों और वास्तुकला की विशेषताओं के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी के आस-पास का ही माना जाता है। जानकार बताते हैं कि इस मंदिर समूह का जिर्णोद्धार कई बार हो चुका है जिसके कारण इसके निर्माणकाल का सही आंकलन करने वालों में मतभेद है। इनमें से कई मंदिरों के अवशेष तो आज भी यहां बिखरे हुए मिल जाते हैं।
भगवान सूर्य देव को समर्पित यह कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) पूर्वामुखी है। यहां मात्र यही एक मंदिर नहीं बल्कि, छोटे-बड़े कुल 45 मंदिरों का एक समूह है। हालांकि मुख्य मंदिर के अलावा यहां का दूसरा कोई भी मंदिर विशाल आकार में तो नहीं है, लेकिन, इनकी मान्यताएं अन्य मंदिरों से कुछ कम भी नहीं है।
कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) अलमोड़ा शहर से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर कोसी नदी के तट पर कटारमल गांव में स्थित है। यह प्राचीन मंदिर समूह समुद्रतल से 2,116 मीटर, यानी करीब 6,945 फिट ऊंचे पर्वत की ढलान पर वर्गाकार चबूतरे के आकार वाले स्थान पर बनाया गया है। मंदिर के प्रांगण से देखने पर ठीक सामने कोसी नदी घाटी का सुंदर प्राकृतिक दृश्य नजर आता है। पूर्वामुखी मंदिर होने के कारण सूर्य की सबसे पहली किरणें इस समूह के मुख्य मंदिर पर पड़ती हैं।
पूर्वाभिमुखी इस कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) समूह के मुख्य मंदिर के गर्भगृह के ठीक सामने बने एक अन्य मंदिर में एक विशेष झरोखा रखा गया है। उस झरोखे में से बाहर देखने पर सामने पर्वत दिखाई देता है। लेकिन, बताया जाता है कि 22 अक्टूबर और 22 फरवरी को सूर्य की पहली किरण इस झरोखे से होकर सीधे गर्भगृह में स्थापित भगवान सूर्य देव की ध्यान मुद्रा में विराजित प्रतिमा पर पड़ती है। इस विशेष चमत्कार को देखने यहां आम पर्यटक ही नहीं बल्कि कई पुरातत्वविद और इतिहासकार आते हैं।
हालांकि, मुख्य रूप से यह सूर्य मंदिर है इसलिए इसको भगवान सूर्य मंदिर के नाम से ही पहचाना जाता था, लेकिन क्योंकि इस मंदिर समूह का निर्माण
‘कत्यूरी राजवंश’ के ‘कटारमल शासक’ (Katarmal Sun Temple) के द्वारा करवाया गया था इसलिए आज इसे उनके नाम पर सबसे अधिक पहचान मिली हुई है। कत्यूरी राजवंश के बारे में माना जाता है यह एक मध्ययुगीन राजवंश था जो कि अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज से आते हैं, इसीलिए वे सूर्यवंशी कहलाते हैं, और संभवतः यही कारण है कि उन्होंने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
यह वही कत्यूरी राजवंश है जिसका शासनकाल 7वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य हुआ करता था और इस वंश के नरेशों का शासन चमोली के पश्चिम में सतलुज नदी के तट से लेकर दक्षिण के मैदान तक फैला हुआ था। जबकि पूरब में भारत-तिब्बत की वर्तमान सीमा पर बसे कुछ गांवों तक हुआ करता था। वर्तमान दौर के काशीपुर, पीलीभीत और संपूर्ण रूहेलखंड के क्षेत्र तक भी कत्यूरी राजवंश का शासन चलता था।
अपने शासनकाल के दौरान कत्यूरी वंश के राजाओं ने उत्तराखंड में छोटे-बड़े कई मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसीलिए यहां बनने वाले ‘नागर शैली’ के मंदिरों को बाद में ‘कत्यूर शैली’ का भी कहा जाने लगा। कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल द्वारा स्थापित और निर्मित यह कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) भी कुमाऊं के उन्हीं प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर शिल्प कला का अद्भुत नमूना है जो इसकी सौन्दर्यता को और निखारता है। हालांकि, मंदिर के मुख्य भवन का शिखर भाग काफी समय से क्षतिग्रस्त पड़ा हुआ है।
कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) के वर्तमान हालातों और स्थितियों की बात करें तो तस्करों द्वारा यहां से 10वीं शताब्दी की एक प्रतिमा को चूरा लेने के बाद से इन मंदिरों की बची हुई अन्य प्रतिमायों को मुख्य मंदिर के गर्भग्रह में सुरक्षित रखा गया है। स्थानीय लोगों के अनुसार वर्ष 1974 में यहां से लगभग 50 किलो वजन की अस्टधातु की प्रतिमा चोरी हो गई थी, उस प्रतिमा की कीमत उस समय के अनुसार लगभग 12 करोड़ बताई जा रही थी।
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चोरी की उस घटना के बाद से इस मंदिर के गर्भगृह के उस प्राचीन और महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार को भी अपने मूल स्थान से निकाल कर दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखवा दिया गया। गर्भगृह का यह प्रवेश द्वार लकड़ी पर की गई ऊच्चकोटि की नक्काशी की कला को दर्शाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार आकार में बड़ा होने के कारण इस प्रवेश द्वार की चोरी करना आसान नहीं था संभवतः इसलिए उस समय वे इसे नहीं ले जा सके।
कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) मुख्यरूप से नागर शैली में निर्मित है। इसके प्रत्येक खम्भों पर खूबसूरत नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर के हर एक हिस्से में की गई नक्काशी न सिर्फ इसके इसके महत्व को दर्शाती है बल्कि इसको खूबसूरती भी प्रदान करती है। मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही मनमोहक, प्राकृतिक और शांत है, इसलिए दर्शन के साथ-साथ लोग यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव लेने भी आते हैं।
कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) के इस स्थान से जुड़े पौराणिक उल्लेखों के अनुसार सतयुग के उस दौर में द्रोणगिरी पर्वत की कन्दराओं में तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियों पर अधर्मियों ने अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया था, जिसके कारण वे सभी ऋषि-मुनि कौशिकी के इसी तट पर आकर सूर्य देव की स्तुति करने लगे। यह वही कौशिकी नदी है जो अब कोसी नदी के नाम से पहचानी जाती है।
ऋषि-मुनियों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला में समाहित कर यहां स्थापित कर दिया था, जिसके बाद वे सभी ऋषि-मुनि उस उस पर बैठ कर तपस्या करने लगे। कहा जाता है कि उसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने ‘बड़ादित्य तीर्थ स्थान’ के रूप में इस सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया, जो अब कटारमल सूर्य मन्दिर (Katarmal Sun Temple) के नाम से प्रसिद्ध है।
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आम लोगों के लिए वर्ष के बारहों मास खुला रहने वाले इस मंदिर की देखभाल भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही है, लेकिन, भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित होने के बाद से इसमें अब हिंदुओं की वह परंपरागत आस्था नहीं रही जो पहले कभी हुआ करती थी। यह स्थान अब मंदिर कम और एक स्मारक, पर्यटन स्थल और पिकनिक स्पाॅट अधिक लगने लगा है।
सबसे अच्छा मौसम –
कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) या फिर अल्मोड़ा शहर के लिए जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से नवंबर के बीच का होता है। हालांकि, पर्यटन के हिसाब से यहां सर्दियों में भी जाया जा सकता है, लेकिन भारी बर्फबारी के कारण यहां ठंड बहुत अधिक हो जाती है इसलिए इस मौसम में कुछ अधिक ही गरम कपड़े ले कर जाना होता है। इसके अलावा बारिश के मौसम में भी यहां या फिर अन्य किसी भी पहाड़ी क्षेत्र की यात्रा पर जाने से बचना चाहिए।
कैसे पहुंचे –
कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple) अलमोड़ा शहर से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर कोसी नदी के तट पर कटारमल गांव में समुद्रतल से 2,116 मीटर, यानी करीब 6,945 फिट ऊंचे पर्वत पर स्थित है। मंदिर तक जाने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत के मार्ग के समीप अधेली सुनार कटारमल गांव में जाना होता है।
अगर आप दिल्ली में हैं तो यह मंदिर दिल्ली के आनन्द विहार आईएसबीटी से लगभग 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रोडवेज बसों के माध्यम से आपको आनन्द विहार आईएसबीटी से अल्मोड़ा के लिये उत्तराखंड परिवहन की नियमित रूप से चलने वाली बसें उपलब्ध हो जाती हैं। इन बसों में करीब-करीब 10 से 12 घंटों का समय लग जाता है।
इसके अलावा अगर आप यहां अपने वाहन से जाना चाहते हैं तो राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से हापुड़, गजरौला, मुरादाबाद, काशीपुर, हलद्वानी तथा भवाली से अल्मोड़ा पहुंचना होता है। अल्मोड़ा-रानीखेत मार्ग पर कटारमल सूर्य मंदिर के लिए करीब 3 किलोमीटर का एक अलग मार्ग कट जाता है।
अगर आप यहां हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो उसके लिए यहां का निकटतम हवाई अड्डा रामनगर व हल्द्वानी के मध्य में मंदिर से लगभग 135 किलोमीटर की दूरी पर पंतनगर में स्थित है। यहां से सुविधानुसार टैक्सी, कार अथवा रोडवेज बसों के द्वारा पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग से मंदिर तक जाने वाले यात्रियों के लिए यहां का सबसे नजदीकी रेलवे जंक्शन काठगोदाम में है जो कि मंदिर से लगभग 107 किलोमीटर की दूरी पर, तथा दूसरा रेलवे जंक्शन 130 किलोमीटर की दूरी पर रामनगर में है। दोनों स्थानों से सुविधानुसार उत्तराखण्ड परिवहन की बसों अथवा टैक्सी कार द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।