अजय सिंह चौहान || केदारनाथ, यानी भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में 5वें स्थान पर माने जाने वाले भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग मंदिर हिमालय की पर्वतमालाओं में बसे भारत के उत्तरांचल राज्य के केदारनाथ नाम के एक छोटे से कस्बे में स्थित है। यह मंदिर हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों में है जिसके कारण यहां के मौसम का कोई निश्चित पूर्वानुमान नहीं होता। इसीलिए यहां अचानक मौसम खराब हो सकता है और तेज बारिश भी हो सकती है। कभी-कभी भयंकर ठंडी हवाएं चलने लगती हैं जिसके कारण सबसे अधिक परेशानी उन यात्रियों को होती है जो मैदानी क्षेत्रों से यहां दर्शन करने जाते हैं।
ऊंचे और दूर्गम पहाड़ी इलाकों में लगातार होने वाली बर्फबारी के बाद पड़ने वाली भयंकर ठंड और ठंडी हवाओं के चलते वहां किसी भी आम इंसान का पहुंचना आसान नहीं होता है। इसके अलावा पहाड़ी इलाकों की तेज बारिश अक्सर परेशानी का कारण बनती है और ऐसे में मंदिर तक जाने वाले रास्ते लगभग बंद हो जाते हैं या फिर मिट्टी और पत्थरों केे धंसने या रास्तों के टूट कर बर्बाद हो जाने के कारण मैदानी इलाकों से संपर्क टूट जाता है, ऐसे में वहां तत्काल किसी भी प्रकार की सहायता का पहुंचना लगभग नामुमकिन-सा हो जाता है। यही कारण है कि भगवान केदारनाथ के इस ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शनों के लिए जाने के लिए एक सही मौसम का ही इंतजार करना पड़ता है।
इसके अलावा अगर कोई हवाई मार्ग से जाना चाहे तो उनके लिए भी यही समस्या आती है क्योंकि हवाई अड्डा भी यहां से लगभग 260 किलोमीटर दूर देहरादून में है और ऐसे में यहां तक पहुंचने के लिए सड़क के रास्ते ही जाना होता है। केदारनाथ जी के दर्शन करने जाने वाले यात्रियों को यहां एक और बात ध्यान रखनी होगी कि जैसे ही आप सड़क के रास्ते दुर्गम पहाड़ों में प्रवेश करेंगे, उन पहाड़ों में कभी भी और कहीं भी आपको खराब मौसम का सामना करना पड़ सकता है जिसके कारण यात्रा को वहीं रोका जा सकता है। जिसके कारण कई सारी परेशानियां उठानी पड़ सकती है। हालांकि, सरकार की ओर से हर संभव प्रयास होते हैं कि ऐसे समय में तीर्थ यात्रियों को हर तरीके से सुविधाएं दी जाएं। लेकिन, यात्रियों का भी फर्ज बनता है कि वे इसमें सावधानियां बरतें और सहयोग करें।
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भगवान केदारनाथ जी का यह ज्योतिर्लिंग मंदिर हिमालय की दुर्गम पर्वत श्रंखलाओं में समुद्रतल से लगभग 3,553 मीटर, यानी करीब 11,657 फिट की ऊँचाई पर है इसलिए इस मंदिर के एक दम नजदीक तक किसी भी वाहन का जाना संभव नहीं है। इसके लिए मंदिर से लगभग 18 किलोमीटर पहले गौरीकुंड नामक एक स्थान पर जाकर सड़क खत्म हो जाती है। गौरीकुंड से आगे मंदिर तक का रास्ता पैदल ही पार करना पड़ता है। गौरीकुंड से पालकी और घोड़े-खच्चर की सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन उसका खर्च हर कोई नहीं उठा सकता। पैदल चलने के लिए 18 किलोमीटर के इस रास्ते को हर साल यात्रा शुरू होने से पहले तैयार किया जाता है।
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बारीश के मौसम में भगवान केदारनाथ जी की ओर जाने वाला रास्ता हर बार टूटकर बह जाता है। यह रास्ता हालांकि, बहुत सुविधाजनक और साफ-सुथरा बनाया जाता है, लेकिन इस पैदल रास्ते में अचानक बारिश भी आ सकती है जिसके कारण रास्ते में बारीश का पानी और कीचड़ होने से पैदल चलने में परेशानियां होती हैं और पहाड़ों के धंसने का खतरा बढ़ जाता है। यही कारण है कि इस मंदिर में अन्य ज्योतिर्लिंग मंदिरों की तरह साल के बारहों महीने जाना बिल्कुल भी संभव नहीं है और इसी के चलते यह मंदिर साल के 12 महीनों में से लगभग 6 महीनों तक बंद ही रहता है और इसके दोबारा खुलने के लिए एक निश्चित और साफ मौसम का इंतजार करना पड़ता है।
जो श्रद्धालु भगवान केदारनाथ जी के दर्शनों के लिए जाना चाहते हैं उनके लिए यहां यह जान लेना आवश्यक होता है कि इस मंदिर के कपाट खुलने का समय और तिथि हर साल अक्षय तृतीय पर ही निर्भर करता है। यानी लगभग अप्रैल के अंत या मई के प्रारंभित दिनों में यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खुलता है। जबकि इसके कपाट बंद होने की तिथि हर साल दिवाली के बाद आने वाली भाई दूज पर यानी अक्टूबर-नवम्बर के कार्तिक माह के सप्ताह में ही तय होती है। भाई दूज की सुबह भगवान केदारनाथ जी की पूजा अर्चना के बाद मंदिर के इस मंदिर के कपाट बंद किये जाते हैं।
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जिस समय भगवान केदारनाथ जी के मंदिर के कपाट बंद किये जाते हैं उस समय तक यहां बारिश और बर्फबारी का मौसम लगभग शुरू हो चुका होता है और इस दौरान यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मौसम से होने वाली कई प्रकार की परेशानियां शुरू हो जाती हैं। जबकि इसके कपाट बंद होने का समय आते-आते इस मंदिर और यहां की संपूर्ण केदार घाटी बर्फ की चादर में बदल जाती है।
भारी बर्फबारी के कारण केदारनाथ में रहने वाले मूल निवासी भी सर्दियों में यहां नहीं रह पाते हैं और उन्हें भी यहां से पलायन करना पड़ता है। जबकि इसके अलावा इस ज्योतिर्लिंग मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और वहां किसी को भी जान की अनुमति नहीं होती।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मंदिर के कपाट अगले 6 महीने तक बंद रहने के कारण भगवान केदारनाथ जी की पूजा-अर्चना नहीं होती। दरअसल, इस दौरान यहां के पुरोहितों के द्वारा पूरे आदर और सम्मान के साथ भगवान केदारनाथ जी की पंचमुखी प्रतिमा को उनकी दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे यानी निचले इलाके ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले आते हैं जो केदारनाथ मंदिर से लगभग 40 किलोमीटर नीचे पड़ता है। ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में इस प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।
महाशिवरात्री के अवसर पर केदारनाथ मंदिर खोलने की तिथि घोषित की जाती है और लगभग 6 माह बाद फिर से बड़ी ही धूम धाम से अप्रैल और मई के महीने के बीच केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलते हैं और तब फिर से यहां की यात्रा आरंभ हो जाती है। इस दौरान मंदिर के कपाट सभी तीर्थ तीर्थयात्रियों के खुले रहते हैं और यहां तक भारत के लगभग हर हिस्से से आने वाले सभी तीर्थ यात्रियों के मन में एक यही आस होती है कि जल्दी से जल्दी उनको भगवान केदारनाथ जी के दर्शन हो जाएं।
कपाट खुलने के बाद शुरुआती दिनों में जब यहां हजारों तीर्थयात्री केदारनाथ मंदिर के लिए जाते हैं उस समय यहां केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में दिन का तापमान 15 से 20 डिग्री तक रहता है, जबकि रात में यहां कंपकपाने वाली ठंडी हवाएं चलने लग जाती हैं और मौसम काफी ठंडा हो जाता है। इसलिए ध्यान रखें कि यात्रा पर जाने से पहले कुछ गरम कपड़े और एक बरसाती साथ में जरूर रखें।