
अजय सिंह चौहान || देश में हजारों ही नहीं बल्कि लाखों सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं लेकिन, फिर भी कुछ ऐसे मंदिर हैं जो सनातन प्रेमियों के लिए सबसे अलग और सबसे विशेष आस्था रखते हैं। उन्हीं में से कुछ विशेष मंदिर उत्तराखंड राज्य के अलग-अलग स्थानों पर स्थित भगवान शिव के वे पांच मंदिर जो ‘‘पंचकेदार’’ के नाम से पहचाने जाते हैं। उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित इन पांच केदार मंदिरों में सबसे पहले नाम आता है भगवान शिव के केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का, दूसरा नाम है मधमहेश्वर, तीसरा तुंगनाथ, चैथा रुद्रनाथ, और पांचवा नाम है कल्पेश्वर महादेव मंदिर।
सबसे पहले तो हम ये जान लें कि हर एक सिद्ध और प्रसिद्ध देव स्थान की अपनी एक अलग मान्यता होती है और उसी प्रकार से मध्यमहेश्वर महादेव जी के इस मंदिर की भी पौराणिक मान्यता ये है कि यहां पंच केदारों में से एक मध्यमहेश्वर महादेव जी स्वयं प्रकट हुए थे और पांडवों को दर्शन दिये थे। मान्यता के अनुसार इस मंदिर में भगवान शिव की नाभी की पूजा की जाती है।
तो यहां ये भी जान लेना चाहिए कि उत्तराखण्ड की इस संपूर्ण चारधाम यात्रा जिसमें की इन पंच केदार को भी माना जाता है उन सभी मंदिरों के पट खुलने का समय और तीथियों की जानकारियां हमें सोशल मीडिया और अन्य खबरों के माध्यम से मिलती ही रहती हैं।
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हालांकि, ये संपूर्ण चारधाम यात्राएं हर वर्ष लगभग अप्रैल के अंतिम सप्ताह या फिर मई के पहले सप्ताह के बीच एक शुभ मुहुर्त के अनुसार प्रारंभ हो ही जाती हैं। और इस वर्ष भी संभवतः यही समय रहेगा। भगवान शिव ने चाहा तो इस वर्ष कोरोना महामारी से पूरी तरह से छूटकारा मिल सकता है और यदि ऐसा होता है तो इन यात्राओं में और भी अधिक आनंद आने वाला है।
यहां हम भगवान शिव के इसी मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा के विषय में जानेंगे कि यदि कोई यहां दर्शन करने जाना चाहते हैं तो मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं।
मध्यमहेश्वर जी का यह मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में आता है और समुद्रतल से इसकी ऊंचाई करीब 3,289 मीटर है। चारों और से हिमालय के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरे इस दिव्य और पवित्र स्थान की सुंदरता देखते ही बनती है।
मध्यमहेश्वर मंदिर तक कैसे पहुंचे?
अगर आप भी मध्यमहेश्वर केदार के दर्शन करने जाना चाहते हैं तो आपको देश के किसी भी हिस्से से पहले हरिद्वार-ऋषिकेश या फिर देहरादून तक पहुंचना होता है। हरिद्वार-ऋषिकेश या फिर देहरादून तक किसी भी साधन जैसे हवाई जहाज और रेल आदि से आप आना-जाना कर सकते हैं। लेकिन, यहां से आगे यानी मध्यमहेश्वर मंदिर से करीब 16 किमी पहले पड़ने वाले रांसी नाम के एक छोटे से पहाड़ी गांव तक सड़क के रास्ते ही आना-जाना करना होता है। जबकि रांसी से आगे यानी कि श्री मध्यमहेश्वर केदार मंदिर तक करीब 16 किमी की पैदल यात्रा करके ही पहुंचा जा सकता है।
तो सबसे पहले तो यहां हम बता दें कि – अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो, दिल्ली से मदमहेश्वर महादेव मंदिर की यह दूरी करीब 430 किमी है। जबकि, देहरादून से 241 किमी, ऋषिकेश से 202 किमी, हरिद्वार से 222 किमी, औली से 156 किमी, जोशीमठ से 148 किमी, गोपेश्वर से 90 किमी, चोपता से 80 किमी, रुद्रप्रयाग 54 किमी, ऊखीमठ से 20 किमी और उनैना गांव से यह दूरी करीब 21 किमी है।
तो यात्रा के पहले दिन जब आप हरिद्वार-ऋषिकेश या फिर देहरादून से चलते हैं तो ऊखीमठ तक सीधी बस मिल जाती है। यहां के पहाड़ी रास्तों में थोड़ा अधिक समय लग ही जाता है इसलिए हरिद्वार-ऋषिकेश या फिर देहरादून से सुबह जल्द ही निकलने पर शेयरिंग जी, टैक्सी या रोडवेज की बस इस दूरी में करीब 7 से 8 घंटे का सफर करने के बाद 2 से 3 बजे तक ऊखीमठ पहुंचा देती है।
हरिद्वार से ऊखीमठ तक इस करीब 222 किमी की दूरी के बीच का किराया रोडवेज की साधारण बसों में कम से कम 500 रुपये तक लग जाता है। जबकि ऊखीमठ से रांसी के बीच, 20 किमी की दूरी के लिए शैयरिंग जीप का किराया करीब 70 रुपये है।
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ऊखीमठ एक पहाड़ी कस्बा है जो पर्यटन और धार्मिक यात्राओं के चलते अब शहर का रूप ले चुका है। इसलिए आप चाहें तो रात को यहां भी ठहर सकते हैं। लेकिन, अधिकतर यात्री यहां आगे यानी रांसी गांव तक इसी दिन पहुंचना चाहते हैं। ऊखीमठ से रांसी गांव के बीच की यह दूरी करीब 20 किमी रह जाती है और इस दूरी के लिए यहां से शेयरिंग जीप या प्राइवेट टैक्सी की सवारी बहुत आसानी से मिल जाती है।
रान्सी एक छोटा-सा पहाड़ी गांव है इसलिए पर्यटकों के लिए यहां कोई खास या आलीशान या बहुत अधिक महंगी सुविधाएं नहीं हैं। यही कारण है कि पर्यटक यहां बहुत ही कम ठहरना पसंद करते हैं, लेकिन, मदमहेश्वर की यात्रा पर जाने और आने वाले यात्रियों में से अधिकतर श्रद्धालु इसी रांसी गांव में ठहरना पसंद कते हैं। इसका एक कारण तो ये है कि अगली सुबह इसी रांसी गांव से आगे यानी मदमहेश्वर मंदिर तक जाने के लिए पैदल यात्रा की शुरूआत होती है। दूसरा कारण यह भी है कि रांसी में रात को ठहरना और भोजन करना ऊखीमठ के मुकाबले थोड़ा सस्ता भी पड़ता है।
रान्सी में पहुंच कर मदमहेश्वर की यात्रा पर जाने वाले सभी यात्रियों को रात्रि विश्राम करना होता है और अगली सुबह यहीं से पैदल यात्रा की शुरूआत करनी होती है।
मदमहेश्वर की पैदल यात्रा का यह रास्ता खतरनाक पहाड़ियों वाला है इसलिए यहां संभलकर चलना होता है और अपने साथ कम से कम सामान रखना होता है, इसलिए अगर आपके पास सामान अधिक है तो आप यहां रांसी गांव में ही किसी भी होटल या होम स्टे में उस सामान को जमा करवा सकते हैं और अपने पिट्ठू बैग में कुछ जरूरी सामान लेकर यात्रा शुरू कर दें।
रान्सी से पैदल यात्रा शुरू करने पर दूसरे दिन की इस यात्रा के पैदल मार्ग में कुछ छोटे-छोटे गांव भी आते हैं जहां के निवासियों के लिए श्री मध्यमहेश्वर केदार मंदिर एक प्रकार से जीविका का माध्यम है। एकदम सरल और सौम्य स्वभाव के कारण इन गांवों के लोग यात्रियों का दिल जीत लेते हैं।
इन्हीं छोटे-छोटे गांवों में पैदल यात्रियों और पर्यटकों के लिए रात्रि विश्राम के तौर पर होम स्टे और भोजन की व्यवस्था भी होती है। ‘होम स्टे’ वाली इस व्यवस्था में वे लोग 300 रुपये से लेकर 500 रुपये तक प्रति व्यक्ति का खर्च लेते हैं, जबकि इसी खर्च में भोजन की भी व्यवस्था हो जाती है।
इसी कारण अधिकतर यात्री इन्हीं होम स्टे की सुविधाओं का अनुभव और लाभ लेते हुए इस यात्रा में कुछ दिन अतिरिक्त लगाते हुए भी देखे जा सकते हैं। लेकिन, अगर आप यहां ठहरना नहीं चाहते हैं तो चलते रहें और जब दूसरे दिन की इस यात्रा में आप रान्सी से अगली सुबह मदमहेश्वर के लिए अपनी पैदल यात्रा यानी कि ट्रैकिंग शुरू करते हैं तो शाम होते-होते मदमहेश मंदिर तक आराम से पहुंच जाते हैं। यहां का पैदल रास्ता खतरनाक पहाड़ियों वाला है इसलिए यहां आपको आराम से और संभलकर चलना होता है।
अगर आप यहां इस 16 किमी के मदमहेश्वर ट्रेक में पैदल चलने में सक्षम नहीं हैं तो यहां आपको घोड़े और खच्चर की सवारी की सुविधा भी मिल जाती है। लेकिन घोड़े और खच्चर वाले यहां इस यात्रा में सिर्फ एक तरफ का किराया कम से कम 2500/- रुपये तक लेते हैं।
करीब 16 किमी लंबे इस मदमहेश्वर यात्रा में दूसरे दिन की इस यात्रा के दौरान पैदल मार्ग में जब सुबह से शाम तक चलेंगे तो आपको यहां कई जगहों पर रूकने की व्यवस्था के अलावा, छोटे-छोटे ढाबे और टी स्टाॅल भी देखने को मिल जाते हैं।
लेकिन, अगर आप यहां होम स्टे नहीं करना चाहते हैं तो यात्रा जारी रखिए और शाम तक मदमहेश मंदिर पहुंच जाइए। शाम के करीब 4 बजे तक इस मदमहेश ट्रैक को आराम से पूरा कर आप दर्शन करीए और शाम 6 बजे की आरती का भी आनंद लीजिए और रात को वहीं मंदिर के पास ही में बने आश्रय स्थलों में या फिर होम स्टे में आराम कीजिए। मदमहेश मंदिर के पास आपको 10 से 12 छोटे-छोटे होटल और होम स्टे के बोर्ड दिख जायेंगे।
तीसरे दिन की उस वापसी की यात्रा से पहले यदि आप चाहें तो मदमहेश्वर महादेव मंदिर से करीब 3 किमी और आगे की ओर एक अन्य मंदिर भी जा सकते हैं जो ‘‘बूढ़ा मध्यमहेश्वर’’ के नाम से पहचाना जाता है। अधिकतर श्रद्धालु वहां तक भी पहुंचते हैं इसलिए अगर आप भी उस ‘बूढ़ा मध्यमहेश्वर’’ तक जाना चाहें तो सुबह जल्दी उठ कर यात्रा शुरू कर दें और वहां पहुंच जायें, दर्शन करें और फिर उसी मार्ग से शाम तक रांसी पहुंचने का प्रयास करें।