मध्य प्रदेश के सतना जिले में चित्रकूट के नजदीक और मैहर शहर में स्थित मैहर की माँ शारदा का शक्तिपीठ मंदिर (Maihar Sharda Peeth) देवी सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ मंदिर के विषय में माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती की देह से उनके गले का हार गिरा था, और क्योंकि यहां माता के गले का हार गिरा था, इसलिए इस शक्तिपीठ के साथ-साथ इस क्षेत्र को भी मैहर यानी ‘मैया का हार’ के नाम से जाना जाने लगा, जो बाद में मैहर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
इस पवित्र तीर्थस्थल और माता मैहर देवी (Maihar Sharda Peeth) की उत्पत्ति के बारे में यहां प्रचलित एक अन्य रोचक दन्तकथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार- बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले मैहर में एक महान ज्ञानी राजा शासन करता था। वह राजा मां शारदा का परम भक्त था। उसी राजा के राज्य का एक चरवाहा गाय चराने के लिए जंगल की उन पहाड़ियों पर जाया करता था। इस भयावह और सुनसान जंगल में वह निडर होकर अपनी गायों को चराया करता था।
Maihar Mata Sharda Peeth : मैहर शारदा शक्तिपीठ की संपूर्ण जानकारी
एक दिन उस चरवाहे ने देखा कि उसकी गायों के झुण्ड के साथ एक सुनहरी गाय भी कहीं से आ गई और शाम होते ही वह गाय अचानक कहीं चली गई। दूसरे दिन वह चरवाहा फिर से जब इस पहाड़ी पर अपनी गायें लेकर आया, तो देखा कि फिर वही गाय इन गायों के झुण्ड में शामिल होकर चर रही है। उस चरवाहे ने निश्चय किया कि आज शाम को जब यह गाय वापस जाएगी तब उसके पीछे-पीछे मैं भी जरूर जाऊंगा और देखूंगा कि आखिर यह गाय आती कहां से है।
गाय का पीछा करते हुए उसने देखा कि वह पहाड़ी की चोटी में स्थित एक गुफा में चली गई और उसके अंदर जाते ही गुफा का द्वार बंद हो गया। वह चरवाहा वहीं द्वार पर बैठ गया। कुछ देर के बाद वह द्वार खुला तो उसमें से एक बूढ़ी महिला के दर्शन हुए। तब चरवाहे ने आश्चर्यचकित होकर उस बूढ़ी महिला से विनती करते हुए कहा कि- माई, मैं आपकी गाय को चराता हूं, इसलिए मुझे पेट के वास्ते कुछ तो दे दो। आज मैं इसी इच्छा से आपके द्वार पर आया हूं।
बूढ़ी माता अंदर गई और जौ के कुछ दाने उस चरवाहे को देते हुए कहा कि अब तू इस जंगल में अकेले न आया कर। इस पर वह चरवाहा बोला कि- माता मेरा तो काम ही जंगल में गाय चराना है, लेकिन आप इस जंगल में अकेली क्यों रहती हैं? क्या आपको यहां डर नहीं लगता? तो बूढ़ी माता ने उस चरवाहे को हंसते हुए जवाब दिया- बेटा यह जंगल, ऊंचे पर्वत-पहाड़ ही मेरा घर है, वर्षों से इसी तरह मैं यहीं निवास कर रही हूं। क्योंकि देवी शारदा यहां मेरी रक्षा करती है इसलिए मुझे यहां किसी बात का डर नहीं है। इतना कह कर वह बुढ़ी महिला उस गुफा में चली गई और गायब हो गई।
सिकंदर शाह मिरी ने शारदा महाशक्ति पीठ (Sharda Peeth) को किया था तबाह
वैदिक पद्धति और शिक्षा का प्रमुख केंद्र था श्री शारदा महाशक्तिपीठ (Sharda Peeth) मंदिर
चरवाहे ने जब घर आकर जौ के दाने वाली उस पोटली को खोला, तो वह हैरान हो गया। उसमें जौ की जगह हीरे-मोती चमक रहे थे। उस चरवाहे ने सोचा- भला मैं इन सबका क्या करूंगा। सुबह होते ही राजा के दरबार में जाऊंगा और उन्हें इस चमत्कार के बारे में सुनाकर ये सारे हीरे-मोती उन्हें दे दूंगा।
अगले दिन वह चरवाहा उन हीरे-मोतियों को लेकर राजा के दरबार में पहुंचा और अपनी उस आपबीती को सुना दिया। चरवाहे की उस आपबीती कहानी को सुनकर राजा ने दूसरे दिन वहां जाने की घोषणा कर दी और अपने महल में सोने चला गया। उसी रात में राजा को सपना में चरवाहे द्वारा बताई उस बूढ़ी माता के दर्शन हुए।
स्वप्न में उस बुढ़ी माता ने महाराजा को वहां मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया और कहा कि मेरे दर्शन मात्र से सभी लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होगी। सुबह होते ही राजा ने माता के आदेशानुसार सारे कार्य करवा दिए। शीघ्र ही इस स्थान की महिमा चारों ओर फैलने लगी। माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालु कोसों दूरे से आने लगे और उनकी मनोकामनाएं भी पूरी होने लगीं। इसके बाद माता के भक्तों ने उस स्थान पर मां शारदा का मंदिर बनवा दिया। और क्योंकि माता का यह मंदिर मैहर नामक राज्य में बना, इसलिए इसे मैहर वाली देवी माँ शारदा (Maihar Sharda Peeth) का नाम दिया गया।
– मनीषा परिहार, भोपाल